BHOPAL. मध्य प्रदेश मेडिकल साइंस की पढ़ाई हिंदी में कराने वाला देश का पहला राज्य है। यहां छात्रों को बीते दो साल से MBBS की पढ़ाई हिंदी में करने की वैकल्पिक व्यवस्था उपलब्ध है। यूजी पाठ्यक्रम यानी स्नातक की कक्षाओं की किताबों का हिंदी अनुवाद भी कराया है। सरकार के तमाम प्रयासों के बाद भी चिकित्सा विज्ञान के छात्र हिंदी में पढ़ाई में रुचि नहीं दिखा रहे हैं। सुविधा उपलब्ध होने के बावजूद छात्रों द्वारा MBBS की पढ़ाई हिंदी में न करने की कई वजह हैं। हिंदी माध्यम से पढ़कर आने वाले छात्र भी मुश्किल उठाकर अंग्रेजी में ही पढ़ाई करना बेहतर मानते हैं।
प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में हिंदी में MBBS की पढ़ाई की सुविधा को दो साल पूरे हो चुके हैं। हिंदी में मेडिकल साइंस की पढ़ाई को लेकर दो साल खूब बयानबाजी होती रही। इसको लेकर सबके अपने-अपने दावे भी रहे। सरकार ने भी हिंदी में MBBS की पढ़ाई कराते हुए डॉक्टर तैयार कराने सभी प्रयास किए। इसके लिए सरकार की पहल पर एक्सपर्ट की टीम ने मेडिकल साइंस के स्नातक पाठ्यक्रम की ज्यादातर किताबों को हिंदी अनुवाद भी कराया गया है। वहीं हजारों किताबें मेडिकल कॉलेजों की लायब्रेरी को उपलब्ध कराई गई हैं। सरकार के आदेश के बाद अब मेडिकल कॉलेज में छात्र हिंदी में परीक्षा दे सकते हैं। इन इंतजाम और सुविधाओं के बाद भी छात्र MBBS की पढ़ाई हिंदी में नहीं करना चाहते।
आखिर MBBS छात्रों के मन में क्या?
सरकार के दावे और MBBS के छात्रों के हिंदी में पढ़ाई से कतराने की वजह जानने के लिए 'द सूत्र' ने प्रदेश के कई मेडिकल कॉलेजों में मेडिकल साइंस के प्रोफेसरों से बात की। द सूत्र की टीम उन छात्रों के पास भी पहुंची जिन्होंने हाल ही में MBBS फर्स्ट इयर की परीक्षा दी है। हिंदी में मेडिकल साइंस की पढ़ाई करने में क्या परेशानी आ रही है? छात्र सुविधा के बावजूद परेशानी उठाकर अंग्रेजी में ही क्यों पढ़ना चाहते हैं, इसको लेकर उनसे बात की तो छात्रों ने अपने मन की बात सामने रखी।
भविष्य की चिंता से परेशान हैं छात्र
भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज यानी जीएमसी के छात्र सीधे तौर पर तो हिंदी में मेडिकल साइंस की पढ़ाई को बुरा नहीं मानते लेकिन हिंदी से MBBS करने के बाद भविष्य के डॉक्टर के रूप में वे संशय में डूबे नजर आते हैं।
छात्रों का कहना है अभी भी केवल स्नातक पाठ्यक्रम ही हिंदी में है। एमपी में तो हिंदी में MBBS की पढ़ाई का अवसर मिल रहा है, लेकिन पीजी कोर्स के लिए ये इंतजाम नहीं हैं। बीएमसी सागर के यूजी छात्रों के अनुसार हम हिंदी से पढ़कर डॉक्टर बन भी गए तो पीजी कोर्स तो अंग्रेजी में ही करना होगा। इसके लिए सिलेबस, किताबें सभी अंग्रेजी में ही हैं। यानी जब पीजी करने जाएंगे तो मुश्किल दोहरी हो जाएगी क्योंकि हमारा बेस तो कमजोर ही रह जाएगा।
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वर्ड-टू-वर्ड ट्रांसलेशन बढ़ा रहा उलझन
वहीं बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज सागर के प्रो. डॉ.सर्वेश जैन चिकित्सा विज्ञान की पढ़ाई हिंदी में कराने से सहमत नहीं है। वे इसके पीछे अहम तथ्य भी रखते हैं। उनका कहना है मेडिकल साइंस की टर्मिनोलॉजी अंग्रेजी में है। ज्यादातर अंग, बीमारी और उनके उपचार की जानकारी अंग्रेजी में ही है। हालत ये है कि लोग बीमारियों और शरीर के अंगों के नाम भी हिंदी में नहीं जानते। प्रोफेसर्स के साथ ये भी समस्या है कि तय समय में कोर्स कवर कराना पड़ता है। क्लास में ज्यादातर बच्चे अंग्रेजी से पढ़ना चाहते हैं तो हिंदी की च्वाइस वाले गिने-चुने छात्र ही है। ऐसे में अंग्रेजी में ही पढ़ाना जरूरी है, वहीं छात्रों को लायब्रेरी में पढ़ना होता है।
सरकार की पहल तो अच्छी है, लेकिन अभी तैयारी अधूरी है। हिंदी में MBBS पाठ्यक्रम की पढ़ाई के लिए फिलहाल ये पर्याप्त नहीं है। वैसे भी चिकित्सा विज्ञान की पढ़ाई को भाषा या दूसरी सीमाओं में नहीं बांधना चाहिए। ऐलोपैथी भारत में नहीं खोजी गई, इसी वजह से इसकी टर्मिनोलॉजी भी हिंदी में उपलब्ध नहीं है। नाम या शब्दों के अनुवाद से चिकित्सा विज्ञान को समझ पाना आसान नहीं है।
क्लासरूम में हिंदी नहीं, इसके लिए लायब्रेरी का सहारा
प्रदेश के सरकारी मेडिकल कॉलेजों की लाइब्रेरी में MBBS कोर्स की 20 में से 15 विषयों की किताबें हिंदी में हैं। जबकि बाकी की पांच किताबें भी जल्द लायब्रेरी तक पहुंचाने के प्रयास सरकार कर रही है। सरकार के इतने प्रयासों के बावजूद चिकित्सा शिक्षा विभाग के फीडबैक के अनुसार केवल 10 फीसदी छात्र की MBBS की पढ़ाई हिंदी में करके डॉक्टर बनना चाहते हैं। यानी सरकार के दावों की जमीनी हकीकत उसके ही विभाग के फीडबैक में कुछ और नजर आ रही है। केवल वाहवाही लूटने के बाद जनप्रतिनिधियों ने इस ओर कोई ध्यान ही नहीं दिया। इस वजह से प्रदेश के पूरे मेडिकल कॉलेजों की जगह केवल सरकारी कॉलेजों में ही हिंदी माध्यम से MBBS की पढ़ाई की व्यवस्था सिमट कर रह गई है। सरकारी मेडिकल कॉलेजों में अध्ययनरत छात्र हिंदी में चिकित्सा साइंस की पढ़ाने की व्यवस्था को नकारते तो नहीं है लेकिन इसकी खामियां जरूर उजागर कर रहे हैं।
अनुवादित किताबों से डॉक्टर बनना आसान नहीं
मध्य प्रदेश में पूर्व की शिवराज सिंह सरकार ने MBBS कोर्स के फर्स्ट इयर के लिए तीन किताबों का हिंदी में अनुवाद कराया था। दो साल पहले 16 अक्टूबर 2022 को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के हाथों से इन किताबों का अनावरण कराया किया गया था। इसके बाद देश के अन्य बीजेपी सरकार वाले राज्यों में भी एमपी की तरह राजस्थान, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, बिहार और उत्तर प्रदेश सरकार भी मेडिकल साइंस की किताबें हिंदी में उपलब्ध कराने लगी हैं। इन राज्यों में भी मेडिकल बुक्स के हिंदी ट्रांसलेशन का प्रशिक्षण एमपी के डॉक्टरों ने दिया है।
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ये हैं सवाल
1. एलोपैथी की टर्मिनोलॉजी के अलावा नए शोध, उपचार के नए तरीके, नई-नई दवा सभी अंग्रेजी में ही प्रकाशित होते हैं। वैश्विक स्तर पर मेडिकल साइंस के अध्ययन और अध्यापन के लिए अंग्रेजी माध्यम सर्वसुलभ है। ऐसे में हिंदी में MBBS की पढ़ाई कर रहे छात्र नए शोध, इलाज और दवाओं की हासिल करने में पिछड़े रहेंगे।
2. MBBS के बाद पीजी कोर्स यानी MD,MS करते हुए स्पेशलाइजेशन में छात्रों को मेडिकल की हर नई जानकारी रखना होगा। हिंदी माध्यम से पढ़ाई करने वाले छात्रों को यहां भी मुश्किल होगी या फिर वे नई अनुवादित पुस्तकों का इंतजार करने मजबूर होंगे।
3. चिकित्सा विज्ञान के छात्रों को हिंदी में पुस्तक उपलब्ध कराने पर किसी को आपत्ति नहीं है। लेकिन उन्हें हिंदी पर आश्रित करने की जगह अंग्रेजी में स्किल डेव्लप करने के लिए प्रेरित करना बेहतर है।
4. हिंदी से एमपी में MBBS करने वाले डॉक्टर जब पीजी करने जाएंगे तो उन्हें अपने ही राज्य या देश के दूसरे राज्यों में हिंदी से अध्ययन करने की सुविधा उपलब्ध नहीं होगी।
छात्रों को अध्ययन के लिए ये किताबें हैं उपलब्ध
फर्स्ट ईयर: फिजियोलॉजी, एनाटॉमी और बायोकेमेस्ट्री
सेकंड ईयर: पैथोलॉजी, फार्मोकोलॉजी, माइक्रो बायोलॉजी, फॉरेंसिक
थर्ड ईयर: सर्जरी, ऑर्थोपेडिक्स, मेडिसिन, आप्थेल्मोलॉजी, ईएनटी, पीएसएम, गायनिक और पीडियाट्रिक
फैक्ट फाइल
MBBS की पुस्तकों के हिंदी ट्रांसलेशन में जुटे 97 डॉक्टर
2 साल में हो सका पाठ्यक्रम की 20 किताबों का अनुवाद
3 विशेषज्ञों ने सभी किताबों की अलग-अलग प्रूफ रीडिंग
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