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NEWS STRIKE : आ देखें जरा किसमें कितना है दम... बीजेपी जिला अध्यक्षों की नियुक्ति के बारे में देखते हैं तो ये गाना मुझे याद आ जाता है। क्योंकि जिला अध्यक्षों की नियुक्ति इस बार बीजेपी में कोई सामान्य इवेंट नहीं रहा। होना तो इसे संगठन स्तर का एक पॉलिटिकल इवेंट चाहिए था लेकिन उसकी जगह ये दिग्गजों के बीच रस्साकशी का गेम बनकर रह गया। जिसमें हर दिग्गज अपनी ताकत का लोहा अपने पसंदीदा को जिला अध्यक्ष बनवा कर साबित करना चाहता था। आपको बता दें कि बीजेपी का कौन सा दिग्गज अपना लोहा मनवा पाया। कौन से दिग्गज की बात नहीं सुनी गई और कौन सा मंत्री लाख कोशिशों के बावजूद अपने पसंदीदा समर्थक को पद नहीं दिलवा सका।
किसका रहा दबदबा
बीजेपी में वैसा ऐसे कम ही देखने को मिलता है कि वहां कोई काम एक बार शुरू हो। फिर बार बार उसमें रुकावटें आई हैं। खासतौर से काम संगठन से जुड़े हों तो किसी की एक नहीं चलती। लेकिन इस बार जिला अध्यक्षों की नियुक्ति के मामले में संगठन में न सिर्फ सत्ता से जुड़े नेताओं की घुसपैठ नजर आई बल्कि दबदबा भी दिखा। इस पद पर नियुक्ति के मामले में बीजेपी में क्या-क्या हुआ। आगे तक देखिए ताकि उसके बाद आप ये जान सकें कि इस लिस्ट के बाद सिंधिया का दबदबा कितना रहा। हितानंद या वीडी शर्मा में से किसकी ज्यादा चली और सीएम मोहन यादव के खाते में कितने जिला अध्यक्ष आए। इस बार जिला अध्यक्ष बनाने में बीजेपी को पूरे एक महीने तक मशक्कत करनी पड़ी। जिसमें जमकर राजनीति भी हुई। जिसका नतीजा ये हुआ कि लिस्ट एक ही बार में जारी नहीं हो सकी। धाकड़ नेताओं के जिले में गुटबाजी और कलह को ठंडा रखने के लिए बीजेपी को एक नहीं दो-दो जिला अध्यक्ष तक नियुक्त करने पड़े। इस सारी खींचतान के चलते बीजेपी को जिला अध्यक्षों की लिस्ट नौ बार में जारी करनी पड़ी। सबसे पहले विदिशा और उज्जैन जैसे जिलों की घोषणा की गई। इंदौर का नंबर सबसे आखिर में आ सका। बीजेपी ने ये कोशिश भी की कि वो सवर्ण और ओबीसी वर्ग को साध सके। हालांकि कांग्रेस ने बीजेपी की पूरी लिस्ट को दलित और आदिवासी विरोधी बताया और कहा कि सिर्फ चार आदिवासी और तीन दलितों को ही मौका दिया गया है।
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महिला नेत्रियों को ठीक ठाक मौका
बीजेपी के लिहाज से भी इस लिस्ट को समझ लेते हैं। बीजेपी ने अपनी लिस्ट में कुल 62 जिला अध्यक्षों के नाम का ऐलान किया है। जिसमें 29 जिला अध्यक्ष सामान्य वर्ग से आते हैं। ओबीसी वर्ग 25 चेहरों को बीजेपी ने मौका दिया। एससी यानी कि अनुसूचित जाति की बात करें तो बीजेपी ने तीन चेहरे मैदान में उतारे हैं। एसटी यानी कि अनुसूचित जनजाति के चार चेहरों को लिस्ट में जगह मिली। इन 62 चेहरों में 17 चेहरे ऐसे हैं जिन्हें रिपीट किया गया है। महिला नेताओं को भी बीजेपी ने ठीकठाक मौका दिया है। इस बार लिस्ट में सात महिलाओं को जिला अध्यक्ष पद पर जगह दी गई है।
नेता डाल-डाल तो बीजेपी नेतृत्व पात-पात
अब बात ऐसे कौन से दिग्गज इस मामले में अपना दम दिखाने में कामयाब रहे और कौन से दिग्गज नेता ने अपने मन के भावों को दबा दिया। सबसे पहले ऐसे दिग्गज नेताओं के नाम जान लेते हैं। सीएम मोहन यादव तो इस मामले में अव्वल होने ही चाहिए थे। उनके अलावा ज्योतिरादित्य सिंधिया, नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल, कैलाश विजयवर्गीय, शिवराज सिंह चौहान जैसे कई नेता अपने पसंदीदा नामों को आगे बढ़ा रहे थे। संगठन की तरफ से हितानंद शर्मा और वीडी शर्मा के समर्थक कतार में लगे थे। इसके अलावा भी कुछ मंत्री थे जो अपने समर्थकों को ये पद दिलाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे थे। तो फिर किसकी कितनी चली। इस सवाल का जवाब ये है कि अगर दिग्गज नेता डाल-डाल थे तो बीजेपी का नेतृत्व भी पात-पात साबित हुआ। बीजेपी ने कुछ इस तरह से लिस्ट जारी की कि हर नेता को बराबर का मौका मिला। और तराजू के सारे पलड़े समान साबित हुए।
छह साल की सक्रियता के क्राइटेरिया को भी ताक पर रखा
राजनीतिक जानकारों का एनालिसिस कहता है कि संगठन ने ये पूरी कोशिश की कि सारे नेताओं को साधा जा सके। इसलिए सीएम के अलावा भी बाकी नेताओं की पसंद को ध्यान में रखा गया। उसका रेशो बेशक कम या ज्यादा हो सकता है। लेकिन बिल्कुल ही वजन न मिला हो ऐसा नहीं है। न सिर्फ सत्ता और संगठन बल्कि संघ की पसंद का भी ध्यान रखा गया जिसके कहने पर 6 नेताओं को जिला अध्यक्ष बनाया गया। इसके थोड़े और डिटेल में जाकर एनालिसिस करें तो आप जान जाएंगे सीएम मोहन यादव की पसंद से उज्जैन संभाग के जिला अध्यक्ष तय हुए। उज्जैन के जिला और शहरी दोनों जिला अध्यक्ष सीएम मोहन यादव की पसंद के हैं। विदिशा की तरफ आए तो यहां पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान अपने समर्थक को पद दिलाने में कामयाब हुए। प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा के क्षेत्र खजुराहो, पन्ना और छतरपुर में उनकी चली। शिवपुरी में ज्योतिरादित्य सिंधिया की बात मानी गई। जिसके चलते पार्टी की छह साल की सक्रियता के क्राइटेरिया को भी ताक पर रखा गया। और उनके पसंदीदा को जिला अध्यक्ष की कमान सौंपी गई। बताया जाता है कि अशोकनगर में सिंधिया ने हितानंद शर्मा की पसंद का समर्थन किया। इसी तरह ग्वालियर में सिंधिया ने वीडी शर्मा की पसंद का साथ दिया। इस तरह सबसे ज्यादा दबदबा वीडी शर्मा और मोहन यादव का ही दिखा। करीब दस जिलों में सीएम की पसंद के जिला अध्यक्ष बनाए गए। वीडी शर्मा उन पर भी भारी दिखते हैं। उनकी टीम के करीब बीस लोग जिला अध्यक्ष पद पर काबिज हुए।
जिला अध्यक्षों की लिस्ट में तालमेल बैठाने की कोशिश
मोहन सरकार के मंत्रियों की भी जहां जरूरत थी वहां सुनवाई हुई। दमोह और जबलपुर ग्रामीण के मामले में प्रहलाद पटेल को सुना गया। जबलपुर शहर की बात करें तो राकेश सिंह के करीबी को मौका दिया गया। डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ल की पसंद रीवा, सतना और मऊगंज में सुनी गई। पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा दतिया में अपना सिक्का मनवाने में कामयाब रहे। सागर में शहरी सीट पर गोविंद सिंह राजपूत तो ग्रामीण सीट पर गोपाल भार्गव की पसंद का ध्यान रखा गया। हालांकि सागर में भूपेंद्र सिंह को तवज्जो नहीं दी गई। सबसे ज्यादा पेंच अटका इंदौर की सीटों पर यहां कैलाश विजयवर्गीय अपनी पसंद को लेकर अड़े थे और तुलसी सिलावट ने भी अपनी पसंद जाहिर की थी। पर, यहां रमेश मेंदोला की पसंद हावी हुई। इस तरह जिला अध्यक्षों की लिस्ट में पूरा तालमेल बैठाने की कोशिश की गई। दिग्गज नेता, सीएम, प्रदेश अध्यक्ष सहित मंत्रियों की पसंद का ध्यान भी रखा गया। कोशिश यही है कि कलह और असंतोष से बच सकें।