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मध्यप्रदेशबीजेपी संगठन को ज्यादा अनुशासित और सक्रिय दिखाने के लिए, प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल लगातार नए प्रयोग कर रहे हैं। इन नवाचारों के पीछे अब यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या पार्टी में बढ़ती अंदरूनी खींचतान को सिर्फ दिखावटी पहल से संभाला जा सकता है? हर महीने नेताओं का सामूहिक भोजन-संगठनात्मक मजबूती या औपचारिकता?
नवीनतम निर्देश के मुताबिक अब मंत्री, सांसद, विधायक और जिलाध्यक्ष को हर महीने एक ही जगह साथ में भोजन करना होगा। यह भोजन किसी रेस्टोरेंट में नहीं, बल्कि इनमें से किसी एक नेता के घर होगा। दावा है कि इससे एकता बढ़ेगी, लेकिन कार्यकर्ताओं के बीच सवाल है, क्या गहरी जड़ें जमा चुकी गुटबाजी सिर्फ एक दिन के भोजन से खत्म हो सकती है?
पांच महीने के कार्यकाल में बार-बार के प्रयोग
हेमंत खंडेलवाल प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद से लगातार संगठनात्मक प्रयोग कर रहे हैं। पहले सागर में मंत्री गोविंद राजपूत और पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह के बीच चला पुराना विवाद निपटाया गया। अब जिलों में नेताओं को एक साथ बैठाने का नया फार्मूला लागू किया जा रहा है।
नेताओं के घर भोजन करने की परंपरा भाजपा में पहले भी थी, लेकिन समय के साथ यह खत्म हो गई। अब इसे फिर शुरू किया गया है, लेकिन यह कितना प्रभावी होगा, यह आने वाले दिनों में ही साफ होगा।
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आलोचकों के लिए सवाल बरकरार
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल ने टीम गठन तेज किया और तीन महीनों में नई टीम घोषित कर दी। हालांकि पार्टी के अंदर यह चर्चा भी रही कि टीम बनाते समय कई निर्णय शीर्ष नेतृत्व की स्वीकृति के बिना जल्दीबाजी में लिए गए। प्रदेश कार्यसमिति और अन्य समितियों की घोषणा एसआईआर के कारण अटकी थी। अब इस महीने पूरी सूची आने की उम्मीद है।
नेताओं के बीच समन्वय, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और कहती है। प्रदेश दौरे के दौरान खंडेलवाल को पता चला कि जिलों में नेताओं के बीच समन्वय बेहद कमजोर है। सागर और छतरपुर में वर्षों पुराने विवाद उनके हस्तक्षेप के बाद खत्म करवाए गए। साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि यह समाधान स्थायी नहीं, बल्कि अस्थायी ‘मैनेजमेंट’ है। स्थानीय स्तर के कई कार्यकर्ता मानते हैं कि विवाद की जड़ें अभी भी वहीं हैं।
कार्यकर्ताओं को लुभाने का प्रयास कितना कारगर?
एक दिसंबर से मध्य प्रदेश कार्यालय में रोज एक मंत्री और एक राज्यमंत्री की बैठने की व्यवस्था शुरू की गई है। BJP इसे कार्यकर्ता-मंत्री संवाद का बड़ा सुधार बता रही है। कई पुराने कार्यकर्ता कहते हैं कि असल समस्या नेताओं की दूरी नहीं, बल्कि जमीनी मुद्दों पर निर्णय लेने में सुस्ती है।
रूठे नेताओं को सक्रिय करने की कोशिश
खंडेलवाल जिलों में जाकर नाराज और उपेक्षित नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं। कार्यकर्ताओं के बीच भोजन, चर्चा और फोटो-ऑप्स के जरिए यह संदेश दिया जा रहा है कि संगठन सबको साथ लेकर चल रहा है। हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह सक्रियता चुनाव से पहले संगठनात्मक छवि सुधारने की कवायद ज्यादा है।
वरिष्ठ नेताओं के दरबार में भी दिखाया गया सक्रियता का संदेश खंडेलवाल शिवराज सिंह चौहान, उमा भारती और कप्तान सिंह सोलंकी जैसे वरिष्ठ नेताओं से मिलकर मार्गदर्शन लेने की बात कहते हैं। लेकिन पार्टी के भीतर कई आवाजें मानती हैं कि इन मुलाकातों से ज्यादा जरूरी जिलों में कमजोर पड़े ढांचे को दुरुस्त करना है।
नवाचार या सिर्फ दिखावटी एकजुटता?
MP बीजेपी में गुटबाजी, नाराजगी और संवादहीनता लंबे समय से बड़ा मुद्दा रही है। हेमंत खंडेलवाल के नए प्रयोग चर्चा तो जरूर बटोर रहे हैं, पर सवाल यह भी उठ रहे हैं कि क्या ये फैसले गहरी संगठनात्मक समस्याओं को हल कर पाएंगे या सिर्फ सतही समाधान बनकर रह जाएंगे?
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