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Photograph: (the sootr)
मध्यप्रदेश सहित देशभर के निजी अस्पतालों में अब कैशलेस सुविधा बंद नहीं होगी। अस्पतालों और बीमा कंपनियों के बीच समझौता होने के कारण अब निजी अस्पतालों में मरीजों को लगातार कैशलेस इलाज मिलता रहेगा। प्रमुख बीमा कंपनियों और निजी अस्पतालों के संगठनों के बीच कई मुद्दों पर सहमति बनने के बाद यह स्पष्ट हो गया कि 1 सितंबर के बाद भी निजी अस्पतालों में मरीजों को कैशलेस उपचार मिलता रहेगा।
इससे पहले, निजी अस्पतालों ने बीमा कंपनियों द्वारा निर्धारित पैकेज रेट्स और शर्तों का विरोध किया था, क्योंकि इन रेट्स में महंगाई के बावजूद कोई बदलाव नहीं हुआ था। इसके परिणामस्वरूप, 1 सितंबर से कैशलेस इलाज रोकने का ऐलान किया गया था, लेकिन अब यह विवाद सुलझ चुका है और 1 सितंबर से कैशलेस इलाज पहले की तरह जारी रहेगा।
बीमा कंपनियों और अस्पतालों के बीच समझौता
अस्पतालों और बीमा कंपनियों के बीच एक अहम बैठक के बाद यह तय किया गया है कि मध्यप्रदेश सहित देशभर के 15,000 से अधिक अस्पतालों में Cashless Treatment पहले की तरह जारी रहेगा। इस बैठक में यह भी तय हुआ कि पैकेज रेट्स और भुगतान शर्तों की समीक्षा के लिए एक संयुक्त समिति बनाई जाएगी। इसके बाद अस्पतालों और बीमा कंपनियों के बीच दरों पर समझौता होगा और इलाज की गुणवत्ता पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
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बैठक में इन अहम मुद्दों पर की गई चर्चा
नए अस्पतालों को पैनल में शामिल न करना
वर्षों से इलाज दरों में कोई बदलाव न होना
भुगतान में कटौती और अस्पष्ट नियमों का सामना करना
कैशलेस अप्रूवल की अनिश्चित प्रक्रिया
नई टेक्नोलॉजी और दवाओं पर भुगतान को लेकर असहमति
डॉक्टरों के फैसलों में बीमा कंपनियों का हस्तक्षेप
बीमा कंपनियों द्वारा मरीजों से सीधे पैसे वसूलना
Cashless Treatment सुविधा बंद करने की चेतावनियाँ
इन सभी बिंदुओं पर चर्चा करने के बाद, हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स ऑफ इंडिया (AHPI) और बीमा कंपनियों ने फैसला किया कि इस समय तक कैशलेस इलाज बंद नहीं होगा। अस्पतालों और बीमा कंपनियों के बीच फिर से बैठक होगी और इस समस्या का स्थायी समाधान निकाला जाएगा।
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एमपी में 30 लाख के पास हेल्थ इंश्योरेंस कवर
भारत में हेल्थ इंश्योरेंस का बाजार तेजी से बढ़ रहा है। मध्यप्रदेश में 30 लाख लोग हेल्थ इंश्योरेंस कवर से जुड़े हुए हैं, जिनमें 5 लाख से 50 लाख रुपये तक के बीमाधारक शामिल हैं। हालांकि, बीमा कंपनियों के बीच चल रहे विवाद के कारण ज्यादातर बीमाधारकों को 3 से 5 लाख रुपये तक का क्लेम मिलता है।
यहां तक कि बीमा कंपनियों द्वारा उपचार के खर्चों को कम करने की कोशिश की जा रही थी, जिसका सीधा असर अस्पतालों और मरीजों पर पड़ता था। इन मुद्दों को लेकर केंद्र सरकार और बीमा कंपनियों के बीच बातचीत जारी है, ताकि उपचार की गुणवत्ता बनी रहे और अस्पतालों को आर्थिक दबाव का सामना न करना पड़े।
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विवाद का मुख्य कारण
बीमा कंपनियां पुराने कॉन्ट्रैक्ट्स की दरों में वृद्धि करने से इंकार कर रही थीं, जबकि बीमा नियामक संस्था, इरडा (IRDA) ने सभी अस्पतालों के लिए कॉमन इम्पैनलमेंट (Common Impanelment) लागू करने पर जोर दिया था। इसके अलावा, नई दवाओं और उपचारों के लिए भुगतान को लेकर भी बीमा कंपनियों और अस्पतालों में मतभेद थे।
कैशलेस इलाज के फायदे
सुलभता: Cashless Treatment से मरीजों को तत्काल इलाज मिलता है, बिना किसी वित्तीय बाधा के।
सुरक्षा: बीमाधारक को इलाज के दौरान पैसे की चिंता नहीं रहती।
सहयोग: अस्पताल और बीमा कंपनियां मिलकर मरीजों के इलाज में मदद करती हैं।
प्रमुख मुद्दे जिनपर ध्यान दिया जाना चाहिए
Cashless Treatment इलाज की प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और सुलभ बनाने के लिए बीमा कंपनियों और अस्पतालों को एक साथ आकर काम करना होगा। इस बीच, बीमा कंपनियों को भुगतान प्रक्रियाओं को स्पष्ट और आसान बनाना चाहिए, ताकि इलाज में किसी प्रकार की रुकावट न आए।
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