फर्जी डॉक्टर को नहीं आती थी एंजियोग्राफी, फोन में मिले फेक डिग्री बनाने वाले 8 एप

दमोह के फर्जी डॉक्टर मामले में बड़ा खुलासा हुआ है। डॉक्टर मंत्री की सिफारिश से भोपाल में सेट होना चाहता था। प्राथमिक जांच में उसकी डिग्री फर्जी पाई गई है, जिसके बाद पुलिस ने उसकी मोबाइल गतिविधियों की भी जांच शुरू की है।

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Rohit Sahu
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दमोह मिशन अस्पताल में ऑपरेशन के दौरान 7 मरीजों की जान लेने वाले फर्जी डॉक्टर नरेंद्र यादव उर्फ एन जॉन केम को पुलिस ने पांच दिन की रिमांड पर लिया है। आरोपी लगातार अपने बयान बदल रहा था, लेकिन जब पुलिस ने सख्ती दिखाई तो उसने असली नाम और सच्चाई स्वीकार कर ली। उसने कबूला कि उसका असली नाम नरेंद्र यादव है और रुतबा बढ़ाने के लिए उसने विदेशी नाम ‘एन जॉन केम’ रखा था।

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एंजियोग्राफी भी नहीं आती थी

एसपी श्रुतकीर्ति सोमवंशी ने बताया कि आरोपी के पास कुल 20 मेडिकल डिग्रियां मिली हैं, जिनमें से कुछ की जांच की जा रही है। फिलहाल आरोपी की कार्डियोलॉजिस्ट डिग्री (2013, पांडिचेरी मेडिकल कॉलेज) और एमडी डिग्री (1999, कोलकाता नेशनल मेडिकल कॉलेज) को फर्जी पाया गया है। मानवाधिकार आयोग और जबलपुर मेडिकल कॉलेज की जांच में पाया गया कि नरेंद्र को एंजियोग्राफी की जानकारी नहीं है, और उसने नागपुर में फर्जी डिग्री हासिल की थी।

जाली डिग्रियां बनाने वाले मोबाइल एप्स से हुआ खुलासा

पुलिस जांच में नरेंद्र के मोबाइल से ऐसे 8 एप्लिकेशन मिले हैं, जिनकी मदद से फर्जी डिग्रियां तैयार की जाती थीं। इन एप्स के जरिए आरोपी अपने लिए विदेशी और स्पेशलिस्ट डिग्रियां बनाता था, जिससे वह खुद को प्रतिष्ठित डॉक्टर साबित कर सके। 

UK और जर्मनी में किए कोर्स

पूछताछ में पता चला है कि नरेंद्र 2011 में जर्मनी गया था और उसने यूके में एमडी-एमआरसीपी कोर्स समेत कुछ अन्य अल्पकालिक कोर्स भी किए थे। हालांकि अभी पासपोर्ट कार्यालय से इसकी पुष्टि नहीं हुई है। आरोपी के परिवार में पिता और एक भाई है, लेकिन पत्नी और बच्चों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है।

चिकन की दुकान से मिला सुराग

दमोह पुलिस आरोपी की तलाश में प्रयागराज पहुंची थी, लेकिन नरेंद्र ने मोबाइल बंद कर दिया। पुलिस ने कॉल डिटेल खंगालते हुए एक चिकन शॉप के नंबर से संपर्क किया। दुकानदार के फोन में नरेंद्र के घर की लोकेशन मिली और इसी आधार पर पुलिस आरोपी तक पहुंची और उसे गिरफ्तार कर दमोह लेकर आई।

मरीजों से विवाद पर रखा बाउंसर

अस्पताल के कर्मचारियों ने बताया कि नरेंद्र का व्यवहार बेहद अजीब था। वह केवल महिला कर्मचारियों को ही नियुक्त करता था और पुरुष स्टाफ से दूरी बनाकर रखता था। जब मरीजों से लगातार विवाद होने लगे तो उसने निजी बाउंसर भी रख लिया था। नर्स स्टाफ लीजो जॉय बहादुर ने बताया कि वह अक्सर कैथ लैब या अपने चेंबर से निकलकर गायब हो जाता था।

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