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पूरी खबर को पांच पॉइंट में समझें-
दतिया में 28 दिसंबर को जिला प्रशासन और राजस्व विभाग के बीच दोस्ताना क्रिकेट मैच हुआ। इसमें कलेक्टर स्वप्निल वानखेड़े की टीम ने 42 रन से जीत दर्ज की।
राजस्व विभाग की टीम ने मैच के दौरान एम्पायर बदलने की मांग की। यह बाद में राजनीतिक और प्रतीकात्मक चर्चा का विषय बन गया।
मैच जीतने के बाद कलेक्टर ने कहा कि भगवा पहनने से कोई संत नहीं बनता और एम्पायर बदलने से कोई मैच नहीं जीतता। यह बयान भगवाकरण और सत्ता पर कटाक्ष माना गया।
कलेक्टर ने एक हल्की-फुल्की कविता भी सुनाई थी। इसमें उन्होंने कहा कि काम से पहचान बनती है, प्रतीकों से नहीं।
कलेक्टर ने अधिकारियों के काम के दबाव और प्रशासनिक जिम्मेदारियों की पीड़ा साझा की, जो यह दर्शाता है कि सिस्टम का दबाव हमेशा रहता है।
Datia. मध्य प्रदेश के दतिया में रविवार, 28 दिसंबर को एक दोस्ताना क्रिकेट मैच हुआ। यह मैच अचानक प्रशासनिक और राजनीतिक चर्चा का विषय बन गया। इस मैच में जिला प्रशासन और राजस्व विभाग के बीच मुकाबला हुआ था। इसमें कलेक्टर स्वप्निल वानखेड़े की टीम ने 42 रन से जीत दर्ज की। हालांकि, असली सुर्खियां मैच के बाद दिए गए बयान ने बटोरीं।
स्कोरबोर्ड साफ, लेकिन संकेत गहरे
20 ओवर के इस मुकाबले में जिला प्रशासन की टीम ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 218 रन बनाए थे। जवाब में मध्यप्रदेश राजस्व विभाग की टीम 176 रन पर सिमट गई। जीत के साथ ही कलेक्टर की टीम ने ट्रॉफी अपने नाम कर ली, लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई।
एम्पायर बदला, माहौल बदला
दतिया क्रिकेट मैच के दौरान एक दिलचस्प मोड़ तब आया जब राजस्व विभाग की टीम की मांग पर एम्पायर बदला गया। मैदान पर यह फैसला भले ही नियमों के दायरे में हो, लेकिन इसके राजनीतिक और प्रतीकात्मक अर्थ बाद में मंच से सामने आए।
भगवा पर सीधा तंज
मैच जीतने के बाद मंच से कलेक्टर स्वप्निल वानखेड़े ने मुस्कुराते हुए, लेकिन तीखे शब्दों में तंज कसा। उन्होंने कहा कि भगवा पहन लेने से कोई संत नहीं बनता और एम्पायर बदल लेने से कोई मैच नहीं जीतता।
यह वाक्य सिर्फ खेल तक सीमित नहीं रहा। इसे सत्ता, पहचान और दिखावे पर करारा कटाक्ष माना जा रहा है। भगवाकरण पर यह टिप्पणी सोशल मीडिया और प्रशासनिक गलियारों में तेजी से वायरल हो गई।
कविता के बहाने कटाक्ष
कलेक्टर ने इस मौके पर एक हल्की-फुल्की कविता भी सुनाई। मंच पर मौजूद अधिकारी और खिलाड़ी हंसी में डूब गए। हालांकि, संदेश साफ था- काम से पहचान बनती है, प्रतीकों से नहीं।
काम का दबाव भी आया सामने
मजाक और तंज के बीच कलेक्टर ने अधिकारियों के काम के दबाव और प्रशासनिक जिम्मेदारियों की पीड़ा भी साझा की। यह बयान बताता है कि मैदान के बाहर भी सिस्टम का दबाव लगातार बना रहता है।
पहले भी सुर्खियों में रहे हैं वानखेड़े
दतिया कलेक्टर स्वप्निल वानखड़े इससे पहले भी अपने सीधे फैसलों और सक्रिय कामकाज के लिए चर्चा में रहते हैं। चाहे अव्यवस्थाओं पर सख्ती हो या अधिकारियों से जवाबदेही, उनका तरीका हमेशा अलग रहता है। उनका अंदाज पारंपरिक प्रशासनिक भाषा से हटकर होता है।
खेल, सत्ता और संदेश
दतिया का यह क्रिकेट मैच सिर्फ रन और विकेट की कहानी नहीं था। यह संदेशों, प्रतीकों और भगवाकरण पर तंज का मंच बन गया है। कलेक्टर का बयान अब खेल से निकलकर प्रशासनिक सोच और राजनीतिक संकेतों की बहस में शामिल हो चुका है।
मैदान में जीत जिला प्रशासन की हुई, लेकिन बहस का मैच अभी जारी है। सवाल यही है कि क्या यह सिर्फ मजाक था या सिस्टम को आईना दिखाने की कोशिश? जवाब वक्त और प्रतिक्रियाएं देंगी।
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