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BHOPAL. सबसे ज्यादा 9 टाइगर रिजर्व वाले मध्य प्रदेश में हर साल जंगलों में कब्जा बढ़ रहा है। यानी जंगल कम हो रहे हैं और वन अमले की सुस्ती टूट ही नहीं रही है। मध्य प्रदेश में वनों की सुरक्षा पर हर साल 26 सौ करोड़ रुपए खर्च करने के बावजूद 460 वर्ग किमी जंगल कब्जे की चपेट में हैं। इसका ज्यादातर हिस्सा या तो खेतों में बदल चुका है या मिट्टी की खुदाई के चलते यहां गहरी खदानें नजर आने लगी हैं। जंगल की कटाई की सबसे तेज रफ्तार वाले प्रदेशों में मध्य प्रदेश दूसरे राज्यों से कहीं आगे है।
जंगलों के विनाश के पीछे अतिक्रमण के साथ ही अनियोजित विकास कार्य और बड़े-बड़े सरकारी प्रोजेक्ट की वजह बन रहे हैं। हाईवे, तालाब, नहर और औद्योगिक इकाइयों के लिए पर्यावरणीय संतुलन को अनदेखा कर धड़ाधड़ अनुमतियां जारी की जा रही है। वहीं इनके लिए रिजर्व एरिया, खुले पठारों पर होने वाला प्लांटेशन सिर्फ रस्मअदायगी बन गया है। ऐसे में अफसरों की कोताही टाइगर, तेंदुआ और चीता स्टेट का तमगा रखने वाला मध्य प्रदेश के रुतबे को नुकसान पहुंचा सकता है।
भू-अधिकार पट्टे लील रहे जंगल
प्रदेश में बीते एक दशक में सरकार ने बड़ी संख्या में वनक्षेत्रों में भू-अधिकार पट्टे बांटे हैं। ये पट्टे वन अंचल के रहवासियों को वनोपज से आजीविका मुहैया कराने के लिए हैं, लेकिन पट्टे मिलते ही इन अंचलों में तेजी से पेड़ काटे गए और अब जंगल की जगह बड़े-बड़े खेत नजर आते हैं। पट्टे जारी करने के बाद वन विभाग ने निगरानी ही बंद कर दी है इस वजह लोग बेखौफ जंगल कटाई में जुट गए हैं। पिछले 10 सालों में प्रदेश में वनांचल में भू अधिकार पट्टों की आड़ में 10 हजार हैक्टेयर से ज्यादा जंगल उजाड़े गए हैं। अब इस जगह खेती की जा रही है।
मेगा प्रोजेक्ट भी हरियाली के दुश्मन
डेव्लपमेंट प्रोजेक्ट पर प्रदेश में लगातार काम जारी हैं। नेशनल हाईवे, स्टेट हाईवे, रिवर लिंक, इरीगेशन कॉम्पलेक्स, इंडस्ट्रियल एरिया आकार ले रहे हैं। इन मेगा प्रोजेक्ट्स के लिए पर्यावरणीय अनुमतियां जारी करने से पहले प्लांटेशन और उसकी देखरेख का करार भी होता है, लेकिन ये केवल औपचारिता बन गया है। यही वजह है जंगल के सफाए की अनुमति तो जल्द मिल जाती है, लेकिन पौधे रोपकर उन्हें पेड़ बनाने की जिम्मेदारी कोई नहीं उठाता। इसके बदले में जमा होने वाले करोड़ों रुपए भी अफसर डकार जाते हैं। बीते सालों में बड़े डेव्लपमेंट प्रोजेक्ट, बांध और औद्योगिक एरिया विकसित करने के लिए 13 हजार हैक्टेयर से ज्यादा जंगल काटे गए लेकिन उसके बदले में पौधरोपण कहीं नजर ही नहीं आता।
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खनन के लिए कट रहे वन
मध्य प्रदेश में 9 टाइगर रिजर्व हैं। इसके साथ ही ये देश के सबसे ज्यादा टाइगर रिजर्व वाला राज्य भी बन चुका है। ऐसे में टाइगर रिजर्व एरिया के साथ ही वनों के संरक्षण पर हर साल मध्य प्रदेश सरकार 65 सौ करोड़ रुपए खर्च करती है। इसके बावजूद साल 2011 से 2024 के बीच 13 साल में खनन-उत्खनन ने 19 हजार हैक्टेयर से ज्यादा जंगल साफ कर दिए हैं। यानी मिट्टी-गिट्टी, पत्थर और रेत जैसे अन्य खनिज हासिल करने जंगल का बड़े स्तर पर सफाया लगातार हो रहा है। प्रदेश में खनन किस तेजी से बढ़ा है ये सेटेलाइट मैप पर भी नजर आ जाता है। लेकिन वन अमला अब भी इसको लेकर संजीदा नजर नहीं आता।
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चंबल और बुंदेलखंड सबसे ज्यादा प्रभावित
जंगल में बेतहाशा खनन, पेड़ों की सफाई कर खेतों में बदलने और बड़े प्रोजेक्ट्स के कारण ग्वालियर-चंबल और बुंदेलखंड अंचल सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। वन विभाग कब्जे रोकने का प्रयास तो कर रहा है, लेकिन अफसरों की अरुचि के चलते ये कारगर साबित नहीं हो पा रहा है। प्रदेश में 3 लाख 12 हजार हैक्टेयर में वन क्षेत्र हैं जिसका 15 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा कब्जों की चपेट में है। कहीं रसूखदार नेताओं की शह की वजह से सैंकड़ों एकड़ के जंगल साफ कर अब वहां खेती की जा रही है। वहीं कई जगह मिट्टी की खुदाई की वजह से घना जंगल गहरी खदानों में बदला नजर आता है। ग्वालियर, शिवपुरी के साथ ही बुंदेलखंड अंचल के छतरपुर, सागर, दमोह जिलों के अलावा निमाड़ के खंडवा और बुरहानपुर जिले जंगल पर कब्जों के मामले में सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। प्रशासन ने बीते साल एक हजार हैक्टेयर वनभूमि कब्जा मुक्त कराई थी, लेकिन इस साल फिर 700 एकड़ वनभूमि पर कब्जा कर लिया गया।
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कैसे गायब हो गया 460 किमी जंगल
वन क्षेत्रों के सर्वेक्षण के दौरान पता चला है कि मध्य प्रदेश की 4600 हैक्टेयर वनभूमि रिकॉर्ड से गायब हो गई है। इसका सीधा मतलब ये है कि प्रदेश का वन क्षेत्र 460 किलोमीटर घट गया है। कब्जों पर त्वरित एक्शन न होने का फायदा उठाकर लोग एक_एक पेड़ काटते हैं। बड़ा रकबा होते ही उस पर काबिज होकर खेती करने लगते हैं। अफसरों की साठगांठ के जरिए इसी जमीन को राजस्व रिकॉर्ड में शामिल करा लिया जाता है। बीते 13 सालों में इसी तरीके से 460 किमी जंगल गायब कर दिया गया है। हांलाकि वन विभाग के अफसर लगातार कब्जे बेदखल करने, अवैध खनन को रोकने और पेड़ काटने वालों पर कार्रवाई के दावे करते हैं, लेकिन इतना बड़ा वन क्षेत्र कैसे घट गया इसका जवाब उनके पास नहीं है।
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किस साल कितना घटा वनभूमि का रकबा
वर्ष | नवीन अतिक्रमण (हैक्टे.) | अवैध खनन (हैक्टे.) |
2011 | 2010 | 4357 |
2012 | 4997 | 3107 |
2013 | 3679 | 279 |
2014 | 3140 | 659 |
2015 | 2622 | 631 |
2020 | 2490 | 1772 |
2021 | 2110 | 5802 |
2022 | 3298 | 1241 |
2023 | 2161 | 954 |
2024 | 390 | 301 |
कुल | 26,897 | 19,103 |