BHOPAL : सरकारी महकमों में मुनाफे की हिस्सेदारी के लिए प्रदेश में उच्च पदों पर भी संविदा का खेल जारी है। जिम्मेदारी वाले पदों पर अफसर ऐसे लोगों को संविदा नियुक्ति दिलाने में जुटे हैं जिनके जरिया लाभ कमाया जा सके। इसी वजह से सालों-साल तक एक ही पद पर जमे रहे अफसरों को सेवानिवृत्ति के बाद संविदा पर सेवा में लिया जा रहा है। ताजा मामला कृषि विभाग की उर्वरक यानी खाद शाखा से जुड़ा है। यूरिया-डीएपी जैसे रासायनिक जैविक खाद की खरीदी का काम करने वाली इस शाखा में ऐसे अफसर को संविदा पर रखने की तैयारी है जो 15 साल तक डिप्टी डायरेक्टर के पद पर काबिज रह चुके हैं। बीते साल सेवानिवृत्त इस अफसर को उनके वरिष्ठ अधिकारी फिर व्यवस्था में शामिल करने की जुगत लगा रहे हैं।
लाइसेंस जारी करने से लेकर खरीद सौदों में डील
वैसे तो कृषि विभाग की हर इकाई कमाई का जरिया है लेकिन उर्वरक शाखा को सबसे ज्यादा फायदेमंद माना जाता है। किसानों को जो खाद उपलब्ध कराया जाता है उसकी खरीदी यही शाखा करती है। यानी हर साल लाखों मीट्रिक टन खाद खरीदने में यही शाखा अहम भूमिका निभाती है। उर्वरक शाखा के अधिकारी ही कंपनियों को लाइसेंस जारी करने से लेकर खरीद सौदों में डील करते हैं और खरीद की इसी व्यवस्था से अफसरों को अप्रत्यक्ष रूप से खासा मुनाफा भी होता है। कृषि विभाग की उर्वरक शाखा के डिप्टी डायरेक्टर पद पर संविदा नियुक्ति को लेकर अधिकारी जोड़-तोड़ में क्यों जुटे हैं इसके पीछे भी यही मुनाफा अहम वजह है।
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दरअसल उर्वरक शाखा में डिप्टी डायरेक्टर के पद का कार्यभार संभाल रहे जीएस चौहान बीते साल सेवानिवृत्त हो चुके हैं। सितम्बर 2024 में सेवानिवृत्ति के बाद भी उनका मोह अपने पद और उर्वरक शाखा से छूटा नहीं है। यही वजह है कि चौहान लगातार विभाग के वरिष्ठ अफसरों के संपर्क में हैं। वहीं अफसर भी अब उनके इस मोह को देखते हुए डिप्टी डायरेक्टर के पद पर उनकी संविदा नियुक्ति की राह प्रशस्त कर रहे हैं। इसके पीछे अधिकारी चौहान की कार्यक्षमता का हवाला दे रहे हैं जबकि कृषि विभाग में उनकी तरह ही कई कुशल प्रशासक काम कर रहे हैं।
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संविदा नियुक्त में भी नियमों की अनदेखी
अधिकारी जीएस चौहान को संविदा के माध्यम से एक बार फिर उर्वरक शाखा का जिम्मा सौंपने की कोशिश में लगे हुए हैं। इसमें कोई प्रतिस्पर्धा बाधा न बने इसके लिए संविदा नियुक्ति भी गुपचुप करने की तैयारी चल रही है। जबकि नियमानुसार संविदा पर नियुक्ति के लिए विज्ञप्ति का प्रकाशन कराना जरूरी है। इसके माध्यम से आने वाले आवेदनों की स्क्रूटनी और अन्य प्रक्रिया को पूरी करने के बाद ही संविदा नियुक्ति दी जा सकती है। लेकिन विभागीय अफसरों के गठजोड़ से नियमों को दबाया जा रहा है।