Bhopal. मध्यप्रदेश की सरकार और सियासत में बयानबाजी से ज्यादा कुछ नहीं चल रहा। कभी मंत्री कैबिनेट बैठकों में नहीं पहुंचते तो कभी प्रभारी मंत्री अपने जिलों में सरकार के प्रकल्पों में रुचि नहीं दिखाते। मौजूदा वक्त में प्रदेश में चल रहे जनकल्याण पर्व में भी मंत्रियों की अरुचि सामने आई है। जनता की भलाई के नाम पर बड़े-बड़े दावे करने वाले माननीय जनकल्याण में पिछड़ते नजर आ रहे हैं। जनकल्याण पर्व में कई मंत्रियों की सुस्ती सामने आई है।
सरकार ने जनकल्याण शिविरों के जरिए जनता को ज्यादा से ज्यादा लाभ देने का लक्ष्य रखा था, लेकिन राज्य मंत्री राधा सिंह, दिलीप अहिरवार समेत नौ मंत्री अपने ही जिलों में पिछड़ते नजर आ रहे हैं। दरअसल, मोहन सरकार का एक साल पूरा होने पर पूरे प्रदेश में जनकल्याण अभियान चलाया गया था, जिसमें अब तक 24 लाख आवेदन प्राप्त हुए हैं। इनमें से 80.2 फीसदी आवेदनों का निपटारा हो चुका है, लेकिन कुछ जिलों में अब भी लापरवाही देखने को मिल रही है।
शिविर प्रस्तावित पर कम लगाए
प्रभारी मंत्रियों की जिलों में अरुचि का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सिवनी, मऊगंज, उमरिया, भोपाल, अनूपपुर, आलीराजपुर, शहडोल, जबलपुर, डिंडौरी और रीवा जैसे जिलों में शिविर प्रस्तावित होने के बावजूद पूरे लगाए ही नहीं गए।
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शिकायतों के निपटारे में भी ध्यान नहीं
वहीं, शिकायतों के निपटान की बात करें तो इसमें भी माननीयों की ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई। नतीजा यह हुआ कि जिला प्रशासन का भी रवैया सुस्त ही रहा। यह तब है, जब मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने जनकल्याण पर्व को प्राथमिकता पर रखते हुए सभी मंत्रियों को इसमें सहभागिता करने के निर्देश दिए थे, लेकिन इसके अपेक्षाकृत परिणाम सामने नहीं आए हैं। नेताओं की इस सुस्ती की एक वजह प्रभार के जिलों की दूरी भी है। मंत्री अपने प्रभार वाले जिलों में ज्यादा ध्यान नहीं दे पा रहे हैं।
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(ये आंकड़े जनवरी के पहले हफ्ते तक के हैं)
प्रभारी ढंग से नहीं हो पा रहे काम
दरअसल, जनता की भलाई के लिए सिर्फ नेक नीयत ही काफी नहीं होती, उसे धरातल पर उतारकर राहत देना भी होता है। सरकारें नियम कायदे तो बना देती हैं, लेकिन वे जमीन पर कितने प्रभावी ढंग से उतर पाते हैं, यह सब जानते हैं। मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने पिछले दिनों कैबिनेट बैठक में सभी मंत्रियों से कहा था कि वे अपने प्रभार के जिले में रात बिताएंगे। सीएम के इस फरमान का असर मानो जीरो ही रहा। जानकारी के मुताबिक, एक दो मंत्रियों को छोड़कर किसी ने जिले में रात नहीं बिताई। हालांकि इसके पीछे मंत्री और उनके समर्थकों का अलग तर्क है। कहा जा रहा है कि मंत्रियों को उनके गृह से जिले काफी दूर के जिलों का प्रभार दिया गया है।
1. अनुसचित जाति कल्याण मंत्री नागर सिंह चौहान का गृह जिला आलीराजपुर है और वे 866 किलोमीटर दूर उमरिया जिले के प्रभारी मंत्री हैं। गूगल भी कहता है कि आलीराजपुर से उमरिया पहुंचने में कम से कम 16 घंटे लगेंगे।
2. दिलीप अहिरवार वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री हैं। वे अनूपपुर के प्रभारी मंत्री हैं। उनका गृह जिला छतरपुर है। उन्हें करीब 375 किलोमीटर दूर है। इस दूरी को तय करने में उन्हें कम से कम 5 घंटे का वक्त लगेगा।
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मंडला और दमोह के साथ विचित्र स्थिति
प्रदेश के मंडला और दमोह जिले की स्थिति और विकट है। इन दोनों जिलों का प्रभार रामनिवास रावत के पास था, लेकिन वे उपचुनाव में हार गए। अब नियम के मुताबिक, स्वत: ही इन दोनों जिलों का प्रभार मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव के पास आ गया है। यहां गौरतलब है कि सीएम डॉ.यादव इंदौर के प्रभारी मंत्री हैं। इसी के साथ उनके पास मौजूद वक्त में 10 से ज्यादा विभाग हैं।
क्या है जनकल्याण का उद्देश्य
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने 11 दिसंबर से 26 जनवरी 2025 तक मुख्यमंत्री जन-कल्याण अभियान चलाने की घोषणा की है। इस अभियान के तहत युवा, नारी, किसान और गरीबों के लिए 34 हितग्राही मूलक, 11 लक्ष्य आधारित और 63 अन्य सेवाओं को आमजन तक पहुंचाने की कोशिश है। अभियान की निगरानी सीएम हेल्पलाइन डैशबोर्ड से की जा रही है। वहीं, इस अभियान और पर्व के तहत हर जिले में अधिकारी-कर्मचारियों की टीम गठित की गई है। शिविरों की मॉनिटरिंग के लिए सेक्टर अधिकारी नियुक्त किए गए हैं।