BHOPAL. सरकारी व्यवस्था की खामियों का जितना बखान किया जाए कम ही होगा। उस पर अधिकारियों के रवैए की तो बात ही क्या है। ऐसे ही अधिकारियों की बलिहारी है जिन्होंने बीते तीन दशक शिक्षा व्यवस्था को प्रयोगशाला बना दिया गया है। इसी कड़ी में शिक्षा विभाग एक और प्रयोग करने जा रहा है। हाल ही में शुरू हुए शिक्षा सत्र इसे लागू भी कर दिया गया है। हांलाकि अब तक इस प्रणाली के लिए अधिकारी नहीं मिले हैं। ऐसे ही प्रयोगों की वजह से प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था लड़खड़ाई हुई है। सरकार हर साल नए सिस्टम, अधिकारियों की पोस्टिंग पर करोड़ों रुपए फूंक रही है लेकिन सकारात्मक परिणाम नजर नहीं आ रहे। बीते शिक्षा सत्र में पांच हजार से ज्यादा स्कूलों में एक भी प्रवेश नहीं हुआ था। यानी इन प्रयोगों, नए ऑफिस और उनकी व्यवस्था पर विभाग करोड़ों खर्च कर चुकी है।
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स्कूल शिक्षा व्यवस्था की बदहाली प्रदेश में किसी से छिपी नहीं है। विभाग के अधिकारी व्यवस्था की खामियों को दुरुस्त करने से ज्यादा नए-नए प्रयोग करने पर आमादा है। पिछले शिक्षा सत्र में स्कूलों में शिक्षकों की तैनाती को लेकर हायतौबा मची रही। अधिकारियों का ध्यान उस पर तो गया नहीं और अब नए प्रयोग शुरू कर दिए हैं। प्रदेश में 1 अप्रेल से नया शिक्षा सत्र शुरू हो गया है। इसके साथ ही विकासखंड स्तर पर शैक्षणिक कार्य की निगरानी के लिए एरिया एजुकेशन ऑफिसर यानी एईओ की व्यवस्था लाद दी गई है। बिना अधिकारियों के नया सिस्टम कैसे चलेगा इसका अंदाजा आप लगा सकते हैं।
एईओ सिस्टम: नए कलेवर में पुरानी व्यवस्था
एईओ सिस्टम नया नहीं है। दरअसल 90 के दशक में शैक्षणिक कार्य और स्कूलों की निगरानी के लिए एडीआईएस यानी सहायक जिला शाला निरीक्षक कार्यरत थे। इस दौर में डीईओ और बीईओ के काम का दबाव एडीआईएस ने बांट लिया था और काम में भी कसावट आई थी। डेढ़ दशक बाद ही विभाग ने एडीआईएस सिस्टम को समेट लिया। अब जो एईओ सिस्टम लागू किया गया है ये उसी एडीआईएस व्यवस्था की पुनरावृत्ति है। बस अब इनका नाम एरिया एजुकेशन ऑफिसर कर दिया गया है।
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सुधार पर ध्यान नहीं बदलाव की जल्दबाजी
साल 2001 में राजीव गांधी शिक्षा मिशन और सर्वशिक्षा अभियान की शुरूआत हुई। विकासखंड स्तर पर बीईओ के समानांतर बीआरसी तैनात कर दिए गए। कुछ साल बाद संकुल केंद्र की व्यवस्था थोप दी गई। वहीं शिक्षा अभियान के तहत मध्याह्न भोजन, और निर्माण की जिम्मेदारी हाथ आने से शिक्षक अध्यापन से दूर हो गए। इन बदलावों से स्कूली शिक्षा में सुधार की जगह गिरावट ही आई। साल 2010 के बाद एईओ का कॉन्सेप्ट आ गया। साल 2013 में ऑनलाइन परीक्षा कराई गई लेकिन कर्मचारियों के विरोध से मामला अटक गया।
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एईओ के सहारे व्यवस्था में सुधार की आस
स्कूल शिक्षा प्रदेश में दो हिस्सों में बटी हुई है। राज्य शिक्षा केंद्र और लोक शिक्षण संचालनालय से लेकर जिलों में डीईओ- डीपीसी और विकासखंड में बीईओ और बीआरसी कार्यरत हैं। अधिकारियों का कहना है इस दोहरी व्यवस्था में सामंजस्य लाने में एईओ प्रणाली कारगर साबित होगी। इसके सकारात्मक नतीजे स्कूली शिक्षा में सुधार के रूप में सामने आएंगे। इसके लागू होने से डीईओ- डीपीसी एक ही कार्यालय से संचालित होंगे और व्यवस्था का दोहरापन खत्म हो जाएगा। वे बीईओ से ज्यादा कसावट और निगरानी कर पाएंगे।
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पावरफुल होंगे एरिया एजुकेशन ऑफिसर
शिक्षा विभाग का दावा है कि एईओ प्रणाली से व्यवस्था में सुधार आएगा। एईओ यानी एरिया एजुकेशन ऑफिसर को ज्यादा अधिकार दिए गए हैं। अब वे स्कूलों में कमियों या गड़बड़ी सामने आने कार्रवाई कर पाऐंगे। विकासखंड में अपने कार्यक्षेत्र के सभी स्कूल सीधे उनके दायरे में आएंगे। एईओ की नियुक्ति शिक्षा सेवा संवर्ग के तहत करने का प्रावधान है लेकिन 12 साल बाद भी प्रदेश में एईओ के पदों पर नियुक्ति अधर में है।
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जिलों में अब भी नियमित नहीं डीईओ-बीईओ
शिक्षा विभाग ने नए शैक्षणिक सत्र में एईओ प्रणाली की शुरूआत कर दी है। जबकि अभी भी उसके पास इन पदों पर बैठाने के लिए अधिकारी ही नहीं हैं। जिला शिक्षा अधिकारी के पदों पर भी प्रभारी कार्यरत हैं उन्हें भी नियमित नहीं किया गया है। बीईओ के पदों पर सहायक संचालकों की नियुक्ति की जानी थी लेकिन विभाग के पास इतनी संख्या में अधिकारी ही कार्यरत नहीं हैं। नतीजो अब भी इस पदों पर कहीं हाईस्कूल तो कहीं हायर सेकेण्डरी प्राचार्य प्रभार संभाल रहे हैं।