मध्य प्रदेश में हजारों SC-ST सरकारी कर्मचारी प्रमोशन में आरक्षण नियम के रद्द हो जाने के बाद डिमोशन की आशंका में जी रहे हैं। दरअसल 2002 में बनाए गए इन नियमों के तहत उन्हें वर्षों पहले पदोन्नति दी गई थी। 2016 में हाईकोर्ट ने यह नियम रद्द कर दिया, जिससे इन प्रमोशनों की वैधता पर सवाल खड़े हो गए। सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है। जब तक अंतिम निर्णय नहीं आता, तब तक इन कर्मचारियों की स्थिति अनिश्चित बनी हुई है।
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प्रमोशन में आरक्षण का इतिहास
2002 में तत्कालीन दिग्विजय सिंह सरकार ने SC-ST कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण का अधिकार दिया। इसके चलते कई अधिकारी ऊंचे पदों तक पहुंचे, लेकिन इससे ओबीसी और अनारक्षित वर्ग के वरिष्ठ कर्मचारियों को नुकसान हुआ। इस असमानता को आधार बनाकर मामला हाईकोर्ट पहुंचा, जिसने 2016 में नियमों को रद्द कर दिया। यहीं से शुरू हुआ वह विवाद जो आज तक सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर लंबित है।
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सुप्रीम कोर्ट का आदेश और मौजूदा स्थिति
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाते हुए यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया है। इसका मतलब यह है कि वर्तमान में जो कर्मचारी पदोन्नत हैं, वे अपने पदों पर बने रह सकते हैं, लेकिन यह सुरक्षा अंतिम फैसले तक ही सीमित है। यदि सर्वोच्च न्यायालय हाईकोर्ट के निर्णय को बरकरार रखता है, तो हजारों कर्मचारियों को अपने पद से नीचे उतरना पड़ सकता है। विभागीय आदेशों में भी यह स्पष्ट लिखा जा रहा है कि सभी पदोन्नतियां सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अधीन रहेंगी।
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सपाक्स की मांग और दूसरे वर्गों की चिंता
सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी कर्मचारी संस्था (सपाक्स) ने आरक्षण नियम को दोहरा लाभ बताते हुए इसके खिलाफ आवाज उठाई है। उनके अनुसार SC-ST वर्ग को अनारक्षित और आरक्षित दोनों ही पद मिलते रहे हैं, जिससे अन्य वर्गों के अधिकारों का हनन हुआ। सपाक्स के अध्यक्ष केपीएस तोमर ने सुप्रीम कोर्ट के नागराज फैसले का हवाला देते हुए कहा कि केवल प्रतिनिधित्व नहीं, दक्षता भी प्रमोशन में मायने रखती है। उनका यह भी तर्क है कि कई राज्यों में आरक्षण खत्म कर योग्यता और वरिष्ठता को प्रमोशन का आधार बनाया गया है।
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सरकार की नई रणनीति
सरकार इस विवाद को सुलझाने के लिए नए प्रमोशन नियमों पर विचार कर रही है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यदि पुराने 36% आरक्षित और 64% अनारक्षित पदों का फॉर्मूला दोबारा लागू किया गया, तो यह विवाद और अधिक गहराएगा। कर्मचारी संगठनों का कहना है कि सभी वर्गों के हितों को ध्यान में रखकर संतुलित नीति बनाई जानी चाहिए, जिसमें योग्यता और अनुभव दोनों को महत्व मिले।
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