MP की यूनिवर्सिटीज में 2 हजार से ज्यादा पोस्ट खाली, सरकार ने खुद माना

मध्य प्रदेश के 19 सरकारी विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की भारी कमी है। मंत्री इंदर सिंह परमार ने विधानसभा में बताया कि 2103 पदों में से केवल 415 पर ही शिक्षक नियुक्त हैं। यह जानकारी भर्ती प्रक्रिया पर सवाल उठाती है।

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Manya Jain
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मध्य प्रदेश की 19 सरकारी यूनिवर्सिटीज में ऐकडेमिक पद खाली हैं। विधानसभा में मंत्री इंदर सिंह परमार ने बताया कि कुल 2103 पद स्वीकृत हैं। लेकिन इनमें से केवल 415 पदों पर ही नियमित टीचर्स नियुक्त हैं।

यह आंकड़े एजुकेशन विभाग और सरकार की भर्ती प्रक्रिया पर सवाल खड़े कर रहे हैं। ऐकडेमिक पदों की भारी कमी से एजुकेशन की क्वालिटी प्रभावित हो रही है। इससे छात्रों की पढ़ाई पर भी बुरा असर पड़ रहा है।

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इन आंकड़ों के अनुसार, अधिकांश यूनिवर्सिटीज में टीचर्स की भारी कमी है। कई यूनिवर्सिटीज में स्थिति यह है कि टीचिंग कार्य गेस्ट फैकल्टी (HIGHER EDUCATION) और अस्थायी नियुक्तियों के आधार पर चल रहा है।

नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंगार ने किया सवाल

नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंगार ने सवाल पूछा-

प्रदेश में कितने सरकारी विश्वविद्यालय हैं? उन्होंने पूछा कि इनमें कितने शिक्षक स्वीकृत हैं और कितने पद खाली हैं? समयबद्ध भर्ती की योजना क्या है? 

मंत्री परमार के उत्तर में 19 सरकारी यूनिवर्सिटीज की सूची दी गई है। इस सूची में बताया गया है कि...

  • सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय (भोपाल)

    • स्वीकृत शिक्षकीय पद: 161

    • खाली पद: 117

    • खाली पदों का प्रतिशत: 72.68%

  • देवी अहिल्या विश्वविद्यालय (जबलपुर)

    • स्वीकृत शिक्षकीय पद: 154

    • खाली पद: 73

    • खाली पदों का प्रतिशत: 47.40%

  • बरकतउल्ला विश्वविद्यालय (भोपाल)

    • स्वीकृत शिक्षकीय पद: 105

    • खाली पद: 69

    • खाली पदों का प्रतिशत: 65.71%

  • मध्यप्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय

    • स्वीकृत शिक्षकीय पद: 54

    • खाली पद: 50

    • खाली पदों का प्रतिशत: 92.59%

  • अटल बिहारी हिंदी विश्वविद्यालय

    • स्वीकृत शिक्षकीय पद: 27

    • खाली पद: 14

    • खाली पदों का प्रतिशत: 51.85%

70% या अधिक पदों पर नियुक्ति नहीं हुई

राज्य की अधिकांश यूनिवर्सिटीज में 70 प्रतिशत से अधिक ऐकडेमिक पद खाली हैं। इन यूनिवर्सिटीज में गेस्ट फैकल्टी (सरकारी कॉलेज) के जरिए टीचिंग कार्य चल रहा है।

इसके बावजूद, टीचिंग जारी है। इससे गुणवत्ता पर नकारात्मक असर पड़ रहा है। छात्रों को पर्याप्त संख्या में अनुभवी और योग्य टीचर्स नहीं मिल पा रहे हैं, जो उनके ऐकडेमिक ग्रोथ में बाधा डालते हैं।

शून्य पदों वाली यूनिवर्सिटी

राज्य में पांच यूनिवर्सिटी ऐसी हैं जिनमें एक भी ऐकडेमिक पद भरा नहीं है। इनमें शामिल हैं:

  • राजा शंकर शाह विवि, छिंदवाड़ा
    स्वीकृत पद: 175

  • महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विवि, छतरपुर
    स्वीकृत पद: 140

  • क्रांतिवीर तात्या टोपे विवि, गुना
    स्वीकृत पद: 140

  • क्रांतिसूर्य भील विवि, खरगोन
    स्वीकृत पद: 140

  • रानी अवंतीबाई लोधी विवि, सागर
    स्वीकृत पद: 140

इन यूनिवर्सिटीज में न तो कोई ऐकडेमिक (mp education department vacancy) नियुक्ति हुई है, ना ही कोई ऐकडेमिक गतिविधि शुरू हो पाई है। इन संस्थानों की स्थिति बहुत ही निराशाजनक है। वे केवल नाम और उद्घाटन तक सीमित रह गए हैं।

इनमें से अधिकांश यूनिवर्सिटीज की स्थापना हाल ही में की गई थी, लेकिन ये अपने शुरुआती टारगेट्स को भी पूरा नहीं कर पा रहे हैं।

पदों की नियुक्ति में देरी का कारण

राज्य के कई यूनिवर्सिटीज (mp Universities) में पदों की नियुक्ति में देरी का कारण बजट स्वीकृति में देरी, नियमों का स्पष्ट न होना और आरक्षित पदों पर विवाद है। इसके अलावा, यूनिवर्सिटीज में खर्चों की कटौती की नीति भी इस प्रक्रिया को धीमा कर रही है।

गेस्ट फैकल्टी को अधिकतम 50 हजार रुपए प्रति माह पर नियुक्त कर लिया जाता है, जबकि एक नियमित प्रोफेसर (MP News) की सैलरी और भत्ते लाखों में आते हैं। इस कारण से यूनिवर्सिटीज के पास नियमित नियुक्तियों के लिए संसाधनों की कमी हो जाती है।

बीयू के उदाहरण से समझे, कैसे अटकती है भर्ती प्रक्रिया

साल 2021-22 में बीयू द्वारा शुरू की गई भर्ती प्रक्रिया तकनीकी कारणों से रद्द हो गई थी। इसे साल 2025 में फिर से शुरू किया गया। लेकिन इस बार आरक्षण को लेकर कुछ समस्याएं आ गईं। इसके बाद फिर से नया एडवर्टीजमेंट जारी किया गया। 

रिसर्च, इवैल्यूएशन और क्वालिटी पर असर

ऐकडेमिक पदों की कमी से पीएचडी, रिसर्च, क्वालिटी, इवैल्यूएशन और नए कोर्सेज के कंडक्ट में रुकावट आ रही है। कई यूनिवर्सिटीज में एक ही प्रोफेसर को दो-दो विभागों में कार्य सौंपा जा रहा है।

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