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BHOPAL : प्रदेश में खाद की किल्लत में किसानों को उलझाकर मिलावटी यूरिया और डीएपी की जमकर कालाबाजारी की गई। अधिकारी और मुनाफाखोरों का गठजोड़ किसानों की शिकायत पर नकली खाद की जांच को दबाने में कामयाब रहा है। कृषि विभाग की प्रयोगशालाओं में खाद के सैंपलों की जांच पर किसान सवाल उठा रहे हैं। नकली खाद से किसानों की फसलें प्रभावित हुई हैं। किसानों की शिकायतों पर भी विभाग का मजाक जारी है। ऐसी शिकायतें विभाग में महीनों तक दबी रहती हैं और फिर केवल दिखावे के लिए जांच होती है और नतीजा कुछ नहीं निकलता। जबलपुर के किसानों की ऐसी ही शिकायतों पर विभाग के रवैए ने कार्यशैली को उजागर कर दिया है। इससे समझा जा सकता है उर्वरक गुणवत्ता की जांच के नाम पर किसानों को कैसे छला जा रहा है।
चार महीने में भी नहीं हुई शिकायत की जांच
सरकार खाद के संकट से घिरे किसानों के प्रति कितनी संवेदनशील रही है। दरअसल जबलपुर में मिलावटी खाद के मामले सामने आने पर 24 सितम्बर 2024 को किसानों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अलावा केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश के मुखिया डॉ.मोहन यादव, कृषि मंत्री एंदल सिंह कंसाना को पत्र भेजे थे। शिकायत विभाग में घूमती रही और 4 महीने बाद सरकार ने इसकी सुध ली। जांच के लिए उप संचालक डॉ.अजय कौशल 24 जनवरी को किसानों के बयान दर्ज करने जबलपुर पहुंचे थे। सवाल ये है जब विभाग चार महीने में जांच नहीं कर पाया तो किसानों के कल्याण का दावा कैसे मजबूत हो सकता है।
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बिना परीक्षण ही तैयार हो रही सैंपल रिपोर्ट
जबलपुर के किसान राघवेन्द्र सिंह पटेल के अनुसार भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर, सागर और उज्जैन में 6 उर्वरक गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशालाएं हैं। प्रयोगशालाओं में रबी और खरीफ सीजन के अलावा सालभर अधिकारियों द्वारा लिए गए खाद सैंपल पहुंचते हैं। अधिकारी केवल औपचारिता के तौर पर रिपोर्ट तैयार करते हैं। वहीं जिन 30 फीसदी सैंपलों की जांच होती है उनमें भी खाद विक्रेता कंपनियों से कमीशन वसूलकर उनके पक्ष में रिपोर्ट दे दी जाती है।
कमरे में ताला, उपकरण बंद, कैसे हो रहे परीक्षण
किसानों ने पीएम और सीएम से उर्वरक गुणवत्ता नियंत्रण के नाम पर जारी छलावे की शिकायत की है। किसानों ने जबलपुर स्थित प्रयोगशाला में होने वाली जांचों पर संदेह जताया है। किसानों का कहना है जबलपुर में जो प्रयोगशाला खाद के सैंपलों की जांच करती है वहां केवल दिखावा हो रहा है। नाइट्रोजन डाइजेशन कक्ष में दो साल से ताला लगा हुआ है। यहां नाइट्रोजन और फॉस्फोरस जैसे मुख्य अवयवों की मात्रा का परीक्षण संभव नहीं है। जांच में उपयोगी सुरक्षा उपकरण, मास्क भी उपलब्ध नहीं हैं।
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कंपनियों के इशारे पर बदल जाते हैं जांच के नतीजे
भारतीय किसान संघ के राघवेन्द्र सिंह का आरोप है कि कृषि अधिकारियों ने प्रयोगशालाओं को कमाई का जरिया बना लिया है। यहां उर्वरक गुणवत्ता नियंत्रण के नाम पर सैंपलों की जांच रिपोर्ट मनमाने तरीके से तैयार की जाती है। खाद के सैंपल प्रयोगशाला पहुंचते ही उर्वरक विक्रेता कंपनियों के एजेंट सक्रिय हो जाते हैं। उनसे लेनदेन कर रिपोर्ट में सैंपलों को पास और मानक उर्वरकों को फेल बता दिया जाता है। किसानों ने प्रयोगशाला में कार्यरत महिला अधिकारी की कार्यशैली पर भी सवाल उठाए हैं।
नकली खाद से किसानों पर दोहरी मार
फसलों की बुआई के सीजन में हर साल किसानों को खाद की किल्लत से जूझना होता है। सरकार के हजार दावों के बाद भी किसानों को जरूरत में मुताबिक यूरिया, डीएपी और दूसरे उर्वरक नहीं मिल पाते। मजबूरी में उन्हें बाजार से खाद खरीदना पड़ता है। नकली और अमानक खाद के कारण पैदावार कम होने से दोहरा नुकसान भी उठाना पड़ता है। किसान दोहरी मार झेलते हैं और उर्वरकों की गुणवत्ता नियंत्रण के लिए जिम्मेदार इसमें भी कमाई का अवसर ढूंढ लेते हैं।