भोज मुक्त विश्वविद्यालय में हुई नियुक्तियों की जांच पर सवाल : सदन में बताया, जांच रिपोर्ट नहीं मिली

भोज मुक्त विश्वविद्यालय की नियुक्तियों की जांच पर सरकार ने विधानसभा में जवाब दिया, लेकिन जांच समिति को किसी आदेश का पता नहीं। रिपोर्ट का भी कोई अता-पता नहीं। यह सरकार की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाता है।

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Ravi Awasthi
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Bhoj university Question in mo vidhansabha

Photograph: (the sootr)

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BHOPAL. जिस जांच समिति की रिपोर्ट का हवाला देकर सरकार विधानसभा में जवाब दे रही है, उसी समिति को यह तक नहीं पता कि उसे किसी मामले की जांच सौंपी गई है। न जांच का औपचारिक आदेश मिला, न फाइलें और न ही दस्तावेज। ऐसे में सदन में यह कहना कि जांच रिपोर्ट अब तक प्राप्त नहीं हुई, सरकारी कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े करता है।

मामला उच्च शिक्षा विभाग के अधीन भोज मुक्त विश्वविद्यालय में वर्ष 2013 व 2014 के दौरान हुई नियुक्तियों से जुड़ा है। जो वर्षों से सरकार के लिए गले की फांस बना हुआ है।

विभागीय मंत्री इंदर सिंह परमार खुद विधानसभा में नियुक्तियों को अवैध बताते हुए इस मामले की जांच का भरोसा जता चुके हैं। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि दो माह बीतने के बाद भी जांच प्रक्रिया औपचारिकता से आगे नहीं बढ़ सकी।

सदन को बताया जांच के आदेश,रिपोर्ट नहीं

हाल ही में संपन्न विधानसभा सत्र में कांग्रेस विधायक नारायण सिंह पट्टा ने पुराने सवालों और सरकारी जवाबों का हवाला देते हुए मामले की अद्यतन स्थिति पूछी। जवाब में बताया गया कि जांच समिति गठित कर दी गई है और उसने काम शुरू कर दिया है। जबकि वास्तविकता यह है कि समिति न तो सक्रिय है और न ही उसके पास जांच से जुड़ा कोई अधिकृत आदेश या रिकॉर्ड उपलब्ध है।

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भोज मुक्त विश्वविद्यालय में नियुक्तियों की जांच और सदन में

जवाब को ऐसे समझें 

  • भोज मुक्त विश्वविद्यालय की 2013-2014 की नियुक्तियों की जांच में सरकारी कार्रवाई ठप पड़ी हुई है, कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए।
  • विधानसभा में सरकार ने जांच समिति का गठन करने की बात की, लेकिन समिति के पास कोई औपचारिक आदेश या दस्तावेज नहीं हैं।
  • जांच समिति के सदस्य यह मानते हैं कि उन्हें जांच के बारे में कोई आधिकारिक जानकारी या दस्तावेज़ नहीं मिले हैं।
  • सदन में पेश किए गए दस्तावेज़ 2014 के बजाय 2013 की भर्तियों से जुड़े थे, जिससे मामला और जटिल हो गया।
  • समिति के समन्वयक के पद में बदलाव के बावजूद कोई सूचना नहीं दी गई, जिससे जांच की स्थिति और भी अस्पष्ट हो गई।

2014 की भर्ती, दस्तावेज 2013 के

चौंकाने वाली बात यह रही कि सदन में भोज विश्वविद्यालय की ओर से जो दस्तावेज पेश किए गए, वे 2014 की बजाय 2013 की भर्तियों से जुड़े थे। बताया जाता है कि पहली भर्ती से जुड़े कुछ कर्मचारी न्यायालय गए हैं। विश्वविद्यालय ने पुराने दस्तावेज प्रस्तुत कर प्रकरण को न्यायालयीन दर्शाने का प्रयास किया।

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समिति बदली, सूचना नहीं

उच्च शिक्षा विभाग ने गत 22 जुलाई को तीन सदस्यीय जांच समिति गठित कर संचालक वित्त जितेंद्र सिंह को समन्वयक बनाया था। इसके ठीक दो माह बाद 25 सितंबर को जारी आदेश में उनकी जगह उपसंचालक वित्त चंद्रमणि खोबरागढ़े को जिम्मेदारी सौंप दी गई।

विडंबना यह कि इस बदलाव की लिखित सूचना आज तक नए समन्वयक को मिली। न ही समिति के अन्य सदस्य प्रो. अनिल शिवानी (हमीदिया कॉलेज) और अजय वर्मा (अंबेडकर विश्वविद्यालय, महू) को।

खुद समन्वयक खोबरागढ़े का कहना है कि उन्होंने केवल सुना है कि किसी जांच की जिम्मेदारी उन्हें दी गई है, लेकिन न आदेश मिला है और न कोई दस्तावेज। ऐसे में जांच का भविष्य क्या होगा, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं।

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