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मध्यप्रदेश में सरकारी भर्ती को लेकर जो हालात हैं, वे सिर्फ लापरवाही नहीं, बल्कि सिस्टमेटिक विफलता की कहानी बयां करते हैं। सूबे में 23 साल में 20 बार विशेष भर्ती अभियान चलाए जा चुके हैं, लेकिन हर बार वादे हुए, तारीखें बढ़ीं और नतीजा ढाक के तीन पात ही है। प्रदेश में 60 फीसदी से ज्यादा आरक्षित पद अब भी खाली हैं और सरकारी फाइलों में प्रक्रिया जारी है...की चिर-परिचित भाषा गूंज रही है। भर्ती प्रक्रियाओं में देरी का एक नुकसान और भी है। क्या है कि वर्ष 2025 यानी चालू वर्ष में मध्यप्रदेश में सवा लाख कर्मचारी रिटायर्ड होने जा रहे हैं। कर्मचारी संगठन इसे रिटायरमेंट का साल करार दे रहे हैं। इस तरह सूबे में सरकारी नौकरियों की हकीकत किसी डगमगाती नाव सी है।
22 हजार पद अब तक नहीं भरे
प्रदेश सरकार ने विधानसभा सत्र में खुद माना है कि विभागों में 37 हजार 317 आरक्षित पदों में से 21 हजार 936 पद दिव्यांगों के लिए आरक्षित हैं, जो अब तक नहीं भरे गए। यानी 60 प्रतिशत आरक्षित पद खाली पड़े हैं, सबसे ज्यादा 5 हजार 711 पद सिर्फ स्कूल शिक्षा विभाग में ही खाली हैं। यह हाल तब है, जब स्पर्श पोर्टल पर 9 लाख से ज्यादा दिव्यांगजन पंजीकृत हैं, पर उनके लिए आवेदन नहीं बुलाए गए हैं।
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कोर्ट का आदेश भी नजरअंदाज
जनवरी 2024 में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने सरकार को 15 जुलाई 2024 तक सभी खाली पद भरने का आदेश दिया था, लेकिन मई 2025 तक भी स्थिति जस की तस है। सवाल उठता है कि जब कोर्ट के आदेश का यह हाल है तो फिर आम जनता की उम्मीदें क्या मायने रखती हैं?
2002 से 2024 तक...तारीखों का खेल
विशेष भर्ती अभियान की शुरुआत 10 सितंबर 2002 को हुई थी। इसके बाद 20 बार सिर्फ तारीखें आगे बढ़ीं, पद वहीं के वहीं खाली। इसे मजाक नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे?
गौरतलब है कि 11 जुलाई 2005, 31 जुलाई 2011, 15 जनवरी 2009, 7 अगस्त 2010, 18 जुलाई 2011, 15 जून 2012, 10 जुलाई 2013, 14 जुलाई 2014, 15 जुलाई 2015, 21 जुलाई 2016, 10 जुलाई 2017, 23 फरवरी 2018, 18 जुलाई 2018, 9 मार्च 2019, 4 जुलाई 2020, 17 सितंबर 2021, 21 जुलाई 2022, 15 सितंबर 2023, 24 जुलाई 2024 को विशेष भर्ती अभियान को बढ़ाया गया।
क्या कहते हैं अधिकारी और सरकार?
जिम्मेदारों का तर्क है कि आरक्षित वर्ग के पात्र अभ्यर्थी नहीं मिलते, इसलिए पद रिक्त हैं, पर यहां सवाल यह है कि क्या 23 साल में योग्य अभ्यर्थी तैयार नहीं किए गए? क्या 9 लाख दिव्यांगजन किसी भी मापदंड पर खरे नहीं उतरते? उधर, प्रदेश में 29 लाख से ज्यादा युवा रोजगार की आस में हैं, पर उन्हें बेरोजगार नहीं आकांक्षी युवा कहा जा रहा है, ताकि आंकड़े चमकते रहें।
हर चुनाव से पहले भर्ती का लॉलीपॉप
एक और अहम तथ्य यह है कि हर चुनाव से पहले भर्ती की बातें होती हैं। पिछले 10 वर्षों में कर्मचारी चयन मंडल ने 77 से ज्यादा परीक्षाएं आयोजित कीं, इनमें से ज्यादातर विधानसभा या लोकसभा चुनाव के आसपास हुईं। 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले तत्कालीन शिवराज सरकार ने एक लाख पदों की भर्ती का शिगूफा छेड़ा था, जो अब भी आधा-अधूरा है।
वहीं, बात रोजगार देने के मामले में इनोवेशन की हो तो 2018 के चुनाव से पहले हर साल रोजगार दिलाने के नाम पर 15 जिलों में रोजगार दफ्तरों को पीपीपी मोड पर निजी कंपनी को दिया गया था, चार साल ये दफ्तर चले, लेकिन ठोस काम नहीं हुआ। अंतत: 2023 में कंपनी से एग्रीमेंट खत्म कर दिया गया।
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30 लाख करोड़ के निवेश का क्या हुआ?
सरकार दावा करती है कि ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट और रीजनल कॉन्क्लेव के जरिए 30 लाख करोड़ रुपए के निवेश प्रस्ताव मिले हैं, जिससे 21 लाख युवाओं को रोजगार मिलेगा, पर कब? ये किसी को नहीं पता।
शिवराज सरकार में भी छह इन्वेस्टर्स समिट हुई थीं। 2004 से लेकर 2022 तक प्रदेश में 2,22,0004.41 करोड़ रुपए का निवेश आया। इस अवधि में 2 लाख 91 हजार 835 को रोजगार मिला। सौ करोड़ से ज्यादा का इन्वेस्टमेंट करने वाली 59 कंपनियों ने 15 वर्षों में सिर्फ 1 लाख 40 हजार 698 नौकरी दीं।
2025: मध्यप्रदेश के लिए रिटायरमेंट ईयर
प्रदेश में इस साल बड़ा प्रशासनिक संकट खड़ा हो सकता है। आंकड़ों के मुताबिक, 2025 में कुल 1 लाख 25 हजार कर्मचारी रिटायर होने जा रहे हैं। कर्मचारी संगठनों ने इसे रिटायरमेंट का साल घोषित कर दिया है। यह संख्या पिछले साल की तुलना में ढाई गुना ज्यादा है।
वर्तमान में सरकार के 61 विभागों में करीब 4 लाख 27 हजार कर्मचारी हैं, जबकि जरूरत इससे कहीं ज्यादा की है। इस साल स्कूल शिक्षा, स्वास्थ्य, लोक निर्माण, राजस्व जैसे प्रमुख विभागों से हर महीने औसतन 2100 कर्मचारी रिटायर हो रहे हैं। अकेले मंत्रालय से हर महीने 30 कर्मचारी सेवा मुक्त हो रहे हैं।
गौर करने वाली बात यह भी है कि 2019 में सरकार ने रिटायरमेंट की उम्र सीमा 60 से बढ़ाकर 62 साल कर दी थी। इससे तत्कालीन कर्मचारियों को दो साल की राहत तो मिल गई, अब उसी फैसले के चलते 2025 में एक साथ बड़ी संख्या में अधिकारी-कर्मचारी सेवानिवृत्त हो रहे हैं।
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क्यों बन रही ऐसी स्थिति
15 जनवरी 1985 को तत्कालीन सीएम अर्जुन सिंह ने दैनिक वेतनभोगियों को नियमित करने के आदेश जारी किए थे। इनकी संख्या एक लाख से अधिक थी। तब प्रदेश में पहली और आखिरी बार मिनी पीएससी के जरिए 40 हजार कर्मचारियों की भर्ती हुई थी। इसके बाद वर्ष 1985 से 1990 के बीच तृतीय और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की सबसे ज्यादा भर्ती हुई। इसके बाद सीधी भर्ती अघोषित रूप से बंद हो गई।
किस साल कितने रिटायरमेंट हुए
वर्ष | रिटायरमेंट |
2021 | 26,780 |
2022 | 33,645 |
2023 | 42,354 |
2024 | 91,990 |
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