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सांकेतिक फोटो
मध्य प्रदेश में निजी स्कूलों की मनमानी पर सरकार ने एक बार फिर सख्ती दिखाई है। स्कूल शिक्षा विभाग ने सभी जिलों के कलेक्टरों को निर्देश दिए हैं कि नए शैक्षणिक सत्र में किसी भी निजी विद्यालय द्वारा छात्रों को किसी विशेष दुकान से किताबें, यूनिफॉर्म, स्टेशनरी या जूते खरीदने के लिए बाध्य न किया जाए। यदि किसी जिले में ऐसी शिकायतें मिलती हैं, तो सख्त कार्रवाई की जाएगी।
नए आदेश में क्या है खास?
राज्य सरकार ने एक आदेश जारी कर सभी जिला कलेक्टरों को निर्देशित किया कि वे सुनिश्चित करें कि निजी स्कूल किसी भी छात्र या अभिभावक पर किसी विशेष विक्रेता से किताबें, यूनिफॉर्म, स्टेशनरी या शूज खरीदने का दबाव न डालें। आदेश के मुताबिक
1. खुले बाजार से खरीदने की स्वतंत्रता
कोई भी स्कूल किसी छात्र या अभिभावक को बाध्य नहीं कर सकता कि वे सिर्फ स्कूल द्वारा तय किए गए विक्रेता से ही सामग्री खरीदें।
2. पुस्तक मेलों का आयोजन
कलेक्टरों को निर्देश दिए गए हैं कि वे अपने जिलों में पुस्तक मेले का आयोजन करें, जहां अभिभावक विभिन्न विक्रेताओं से उचित मूल्य पर किताबें, यूनिफॉर्म, स्टेशनरी और जूते खरीद सकें।
3. समितियों का गठन
जिला स्तर पर समितियां बनाई जाएंगी, जो यह निगरानी करेंगी कि कोई स्कूल जबरन सामग्री खरीदने के लिए बाध्य तो नहीं कर रहा। यदि कोई स्कूल ऐसा करता है, तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
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कई निजी स्कूलों के खिलाफ हो चुकी है कार्रवाई
पिछले कुछ सालों में विभिन्न जिलों से शिकायतें मिली थीं कि निजी स्कूल छात्रों को महंगी किताबें, यूनिफॉर्म और अन्य सामग्रियां स्कूल से ही खरीदने के लिए मजबूर कर रहे हैं। इस वजह से अभिभावकों पर अनावश्यक आर्थिक बोझ पड़ता था। निजी स्कूलों की मनमानी को लेकर कई जिलों में जिला शिक्षा समिति और कलेक्टरों के द्वारा कार्रवाई भी की गई हैं। इस तरह की मनमानी को नियंत्रित करने के लिए ही स्कूल शिक्षा विभाग ने 2017 में मध्यप्रदेश निजी विद्यालय (फीस तथा संबंधित विषयों का विनियमन) अधिनियम लागू किया था। बावजूद इसके, कुछ जिलों में इस नियम का पालन नहीं किया जा रहा था, जिसके चलते अब सख्त निर्देश दिए गए हैं।
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आदेश का हुआ पालन तो अभिभावकों के लिए राहत भरा फैसला
इस फैसले से उन अभिभावकों को राहत मिलेगी, जो निजी स्कूलों की महंगी किताबों और यूनिफॉर्म की अनिवार्यता से परेशान थे। सरकार का मानना है कि इससे बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और अभिभावकों को उचित मूल्य पर सामान उपलब्ध होगा। हालांकि अब यह देखना होगा कि इस निर्देश को धरातल पर प्रशासन कितनी सख्ती से लागू करता है, क्योंकि इस तरह का एक पुस्तक मेला जबलपुर में भी आयोजित किया गया है लेकिन इस मेले में निजी स्कूलों और पुस्तक विक्रेताओं की मनमर्जी लगातार सामने आ रही है, जहां एक और बहुत से स्कूलों की किताबें पूरे मेले में ही उपलब्ध नहीं है तो बड़े-बड़े स्कूलों की किताब है सिर्फ गिनी चुनी दुकानों में मिल रही हैं जो नियम के विरुद्ध है। अब अगर इस पर प्रशासन तुरंत कोई एक्शन लेता है तब तो अभिभावकों को राहत मिल पाएगी वरना या पुस्तक मेला भी समाप्त हो जाएगा और अभिभावक निजी स्कूलों की मर्जी की दुकानों से ही किताबें और अन्य सामग्री खरीदने को मजबूर होंगे।
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निजी स्कूलों की मनमानी पर लग सकेगी लगाम
यदि कोई निजी स्कूल नियमों का उल्लंघन करता पाया गया, तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। जिलों में पुस्तक मेले आयोजित कर अभिभावकों को विकल्प दिए जाएंगे। स्थानीय प्रशासन और शिक्षा विभाग इस पूरी प्रक्रिया की निगरानी करेगा।
यह आदेश एक महत्वपूर्ण कदम है, जिससे निजी स्कूलों की मनमानी पर रोक लगेगी और अभिभावकों को अपने बच्चों की जरूरतों के अनुसार सामान खरीदने की स्वतंत्रता मिलेगी। लेकिन इस आदेश का सख्ती से पालन होना जरूरी है क्योंकि अमूमन देखने को यही मिलता है कि शासन प्रशासन के आदेशों के बावजूद भी निजी स्कूल अपनी मनमानी से बात नहीं आते और उनके सामने अपने बच्चों के भविष्य को देखते हुए अभिभावकों को झुकना ही पड़ता है।
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5 मुख्य बिंदुओं से समझें पूरा मामला
✅ राज्य सरकार ने निजी स्कूलों की मनमानी पर सख्त आदेश दिए हैं, जिसमें किसी विशेष विक्रेता से किताबें और यूनिफॉर्म खरीदने के लिए मजबूर न करने की बात कही गई है।
✅ कलेक्टरों को जिलों में पुस्तक मेलों का आयोजन करने के निर्देश दिए गए हैं, ताकि अभिभावक उचित मूल्य पर सामग्री खरीद सकें।
✅ सरकारी आदेश के मुताबिक, अब अभिभावक खुले बाजार से भी किताबें, यूनिफॉर्म और स्टेशनरी खरीद सकते हैं।
✅ पहले कई जिलों में निजी स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई हो चुकी है, जहां अभिभावकों को महंगी सामग्रियां खरीदने के लिए मजबूर किया जा रहा था।
✅ इस आदेश से अभिभावकों को राहत मिलेगी, लेकिन यह देखना होगा कि प्रशासन इसे कितनी सख्ती से लागू करता है।
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