बिना ग्राम सभा की स्वीकृति और कानूनी प्रक्रिया पूरी किए नहीं बनेगा डैम - HC

मध्‍य प्रदेश हाईकोर्ट ने सरकार को बड़ा झटका देते हुए कहा कि बिना ग्राम सभा की अनुमति और भूमि अधिग्रहण कानून की धारा 41 का पालन किए डेम निर्माण नहीं हो सकता। गोंड वृहद सिंचाई परियोजना के खिलाफ आदिवासी समुदाय की याचिका पर यह फैसला आया।

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Neel Tiwari
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Photograph: (the sootr)

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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक फैसले में सरकार को झटका देते हुए स्पष्ट कर दिया कि किसी भी सिंचाई परियोजना के लिए बिना ग्राम सभा की अनुमति और भूमि अधिग्रहण कानून की धारा 41 का पालन किए अधिग्रहण की प्रक्रिया अमान्य होगी। यह फैसला सीधी और सिंगरौली जिलों में प्रस्तावित गोंड माइक्रो वृहद सिंचाई परियोजना के खिलाफ दायर जनहित याचिका (WP/7008/2025) की सुनवाई के दौरान आया। हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की खंडपीठ ने यह आदेश दिया।

यह है गोंड वृहद सिंचाई परियोजन

मध्य प्रदेश सरकार ने सिंगरौली जिले में एक नई गोंड वृहद सिंचाई परियोजना को मंजूरी दी थी, जिसकी कुल लागत 1097.67 करोड़ रुपए (लगभग 10.97 अरब रुपए) निर्धारित की गई थी। इस परियोजना का उद्देश्य 34,500 हेक्टेयर कृषि भूमि की सिंचाई करना था, जिसमें 28,000 हेक्टेयर रबी और 6,500 हेक्टेयर खरीफ फसल क्षेत्र शामिल था। सरकार का दावा था कि इस परियोजना से किसानों को सिंचाई की सुविधा मिलेगी और कृषि उत्पादन बढ़ेगा, लेकिन इसके कारण हजारों आदिवासी परिवारों को अपनी पुश्तैनी जमीन से विस्थापित होना पड़ता। यह डेम सीधी और सिंगरौली जिलों में बनने जा रहा था, लेकिन याचिकाकर्ता ने कोर्ट में इस परियोजना को अवैध और आदिवासी समुदाय के अधिकारों का उल्लंघन बताया।

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अधिनियम के अनुसार ग्राम सभा से मंजूरी लेना है जरूरी

इस परियोजना के खिलाफ याचिका लोलार सिंह ने दायर की थी, जिनकी ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर ठाकुर ने हाईकोर्ट में पक्ष रखा। याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि यह परियोजना भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्विस्थापन उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिनियम, 2013 की धारा 41 का सीधा उल्लंघन है। भूमि अधिग्रहण कानून की धारा 41 के तहत, यदि कोई परियोजना अधिसूचित आदिवासी क्षेत्र में आती है, तो वहां की ग्राम सभा से अनुमति लेना अनिवार्य होता है। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने ओडिशा माइनिंग कॉर्पोरेशन बनाम पर्यावरण एवं वन मंत्रालय केस में साफ किया था कि किसी भी ट्राइबल एरिया में बिना ग्राम सभा की अनुमति के भूमि अधिग्रहण नहीं किया जा सकता। याचिका में यह भी बताया गया कि जिस जगह यह डेम बनाया जा रहा था, वहां से सिर्फ 1 किलोमीटर की दूरी पर पहले से ही 'भुइमांण जलाशय' नामक जलाशय मौजूद है। ऐसे में नए डेम की कोई तात्कालिक जरूरत नहीं थी, और यह सिर्फ आदिवासियों की जमीन पर कब्जे का प्रयास था।

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भूमि अधिग्रहण अधिनियम की धारा 41 का करें पालन - HC 

हाईकोर्ट ने सरकार के तर्कों को खारिज करते हुए फैसला दिया कि जब तक ग्राम सभा की विधिवत स्वीकृति नहीं ली जाती और भूमि अधिग्रहण अधिनियम की धारा 41 का अनुपालन नहीं होता, तब तक इस परियोजना के लिए कोई अधिसूचना जारी नहीं की जा सकती। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि सरकार इस परियोजना को आगे बढ़ाना चाहती है, तो नियम अनुसार उसे पहले प्रभावित आदिवासी समुदाय की सहमति लेनी होगी और भूमि अधिग्रहण की समस्त कानूनी औपचारिकताएं पूरी करनी होंगी।

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आदिवासी समुदाय की जीत, सरकार की चुनौती

इस फैसले को आदिवासी समुदाय के लिए एक बड़ी जीत माना जा रहा है। यह केवल सीधी और सिंगरौली के आदिवासियों के लिए राहत नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश के लिए एक नजीर बन सकता है। क्योंकि आगे इस तरह की किसी भी परियोजना में इसी आदेश का सहारा लिया जाएगा। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि मध्य प्रदेश सरकार इस फैसले के खिलाफ अपील करती है या फिर कानूनी प्रक्रियाओं को अपनाकर ग्राम सभा की स्वीकृति लेती है।

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