मध्यप्रदेश हाईकोर्ट फैसला: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 2021 के हत्या मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे पिता-पुत्र को बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि जांच में गंभीर गड़बड़ियां हुईं। एक गवाह को जानबूझकर पेश किया गया।
जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस अवनींद्र कुमार सिंह की बेंच ने पुलिस महानिदेशक को मामले की पुनः समीक्षा करने के निर्देश दिए। पुलिस अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई का आदेश दिया गया।
गुमशुदगी से शुरू हुआ था मामला, बाद में मिला शव
22 सितंबर 2021 को एक व्यक्ति लाखन पांढरे ने अपने बेटे राजेंद्र पांढरे के लापता होने की शिकायत दर्ज कराई थी। कुछ दिनों बाद उसका शव बरामद हुआ। पुलिस ने इस मामले में गांव के ही नैन सिंह और उसके बेटे संदीप को गिरफ्तार किया। अभियोजन ने दावा किया कि राजेंद्र का नैन सिंह की बेटी से प्रेम-प्रसंग था और इसी के चलते उसकी हत्या की गई।
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झूठे सबूत और फर्जी गवाह किए गए प्लांट
ट्रायल कोर्ट ने पुलिस के बताए तथ्यों के आधार पर दोनों आरोपियों को दोषी ठहराया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा दे दी। लेकिन जब मामला हाईकोर्ट पहुंचा, तो वहां पूरी तस्वीर ही बदल गई।
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में साफ लिखा था कि मृतक की मौत 25 सितंबर से 4-6 दिन पहले हुई थी, जबकि पुलिस का दावा था कि वह 19 से 25 सितंबर के बीच लगातार आरोपी की बेटी के संपर्क में था।
इतना ही नहीं, जो कपड़े आरोपी के घर से बरामद बताए गए थे, वे मृतक के शुरुआती विवरण से मेल ही नहीं खाते थे। वहीं मृतक का मोबाइल और गमछा भी आरोपी के घर से नहीं मिला।
सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि पुलिस जांच में पेश किया गया एक अहम गवाह चैन सिंह (PW-6) ने कबूल किया कि उसे असल में घटना के बारे में कोई जानकारी नहीं थी, और वह तो केरल से लाकर जबरदस्ती बयान दिलवाया गया था।
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झूठे प्रेम संबंध की कहानी रच बेगुनाहों को फंसाया
जबलपुर हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यह पूरी जांच एकतरफा, बेईमानी से भरी और मनमाने ढंग से की गई। ऐसा प्रतीत होता है कि केवल एक काल्पनिक प्रेम कहानी गढ़कर दो निर्दोष लोगों को फंसा दिया गया। अदालत ने साफ कहा कि यह एक न्यायिक चूक का मामला है और अगर हाईकोर्ट इस पर हस्तक्षेप न करता, तो दो निर्दोष जीवनभर जेल में सड़ते रहते।
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पुलिस अधिकारियों पर होगी कार्रवाई
इस मामले में झूठे गवाह प्लांट करने और कथित आरोपियों के खिलाफ अब कार्यवाही होना तय है। हाईकोर्ट ने इस मामले को बेहद गंभीर मानते हुए डीजीपी को निर्देश दिए हैं कि वे इस मामले में जांच अधिकारी और अन्य पुलिसकर्मियों पर विभागीय कार्रवाई करें और भविष्य में ऐसी चूक न हो इसके लिए दिशानिर्देश तैयार करें।
यह मामला बताता है कि केवल अभियोजन की बातों पर आंख मूंदकर यकीन करने से निचली अदालतों में अन्याय भी होता है। जांच में की गई लापरवाही, गवाहों को जबरन बनाना और झूठे आरोपों से किसी की जिंदगी तबाह करना पूरे तंत्र पर सवाल खड़े करता है। यह फैसला ऐसे सभी मामलों के लिए मिसाल बन सकता है, जहां पुलिस की भूमिका संदिग्ध रही हो।
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