हाईकोर्ट में आबकारी घोटाले की सुनवाई में नया मोड़, सीनियर वकील की माफी याचिका खारिज

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में आबकारी घोटाले की सुनवाई में नया मोड़ आया। वरिष्ठ अधिवक्ता एन.एस. रूपराह की माफी याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया और तीन व्यक्तियों के खिलाफ 25-25 हजार रुपए के जमानती वारंट जारी किए गए।

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Neel Tiwari
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Photograph: (the sootr)

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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में आबकारी घोटाले से जुड़े चर्चित मामले की सुनवाई के कई चौंकाने वाले खुलासे सामने आए। इस दौरान न केवल वरिष्ठ अधिवक्ता एन.एस. रूपराह द्वारा मांगी गई बिना शर्त माफी को कोर्ट ने खारिज कर दिया, बल्कि तीन व्यक्तियों के विरुद्ध 25-25 हजार रुपए के जमानती वारंट भी जारी किए गए हैं।

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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में जबलपुर बेंच में चीफ जस्टिस के सामने वरिष्ठ अधिवक्ता एन एस रूपरा द्वारा अदालत में हंगामे को लेकर मांगी गई बिना शर्त माफ़ी को कोर्ट ने खारिज कर दिया। चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि अब इस मामले पर निर्णय पूर्ण न्यायालय (Full Court) द्वारा लिया जाएगा।

गौरतलब है कि बीते 7 अप्रैल को आबकारी मामले की सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता रूपरा पर अदालत में ऊंची आवाज़ में बोलने और अशोभनीय व्यवहार का आरोप लगा था। जब मामला पहली बार बुलाया गया तो वरिष्ठ अधिवक्ता आरएन सिंह ने खंडपीठ के समक्ष कहा, "मैं रूपरा की ओर से पेश हो रहा हूं। हम बिना शर्त माफी मांगते हैं।"

फुल बेंच ही करेगी मामले का फैसला 

मामले की सुनवाई के दौरान यह  देखा गया कि माफी का आवेदन अब तक रिकॉर्ड पर नहीं है, तो न्यायालय ने स्पष्ट किया कि आवेदन आने पर ही उस पर विचार होगा। इसके बाद जब मामला पासओवर चरण में पुनः उठा, तो वरिष्ठ अधिवक्ता संजय अग्रवाल ने रूपरा की ओर से इंटरलोक्यूटरी एप्लिकेशन IA 6289 प्रस्तुत किया, जिसमें 7 अप्रैल के आदेश के दो अनुच्छेदों को हटाने का आग्रह किया गया।अधिवक्ता अग्रवाल ने दोहराया, "जो कुछ भी हुआ, उसके लिए हम बिना शर्त माफी मांगते हैं।" लेकिन अदालत का रुख स्पष्ट था। कोर्ट ने कहा कि "नहीं, आगे की कार्रवाई पहले ही की जा चुकी है। उन्हें नोटिस भेजा जा चुका है... अब यह मुद्दा फुल बेंच के पास जाएगा।" अदालत की मौखिक टिप्पणी भी गंभीर संकेत दे गई। कोर्ट ने कहा, “यह कोई सज़ा नहीं है। हमने केवल मामला पूर्ण न्यायालय को सौंपा है। यदि फुल बेंच की राय होती है कि वह वरिष्ठ अधिवक्ता बने रह सकते हैं, तो वे काम जारी रख सकते हैं।”

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प्रतिवादी ने झाड़ा पल्ला, कहा- स्टॉक लेने वालों से कोई वास्ता नहीं

प्रतिवादी क्रमांक 5, आकर्ष जायसवाल की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने यह दावा किया कि जिन व्यक्तियों विकास सिंह, धर्मेंद्र शिवहरे और अमोल गुप्ता ने याचिकाकर्ता से शेष स्टॉक प्राप्त किया था, वे उनके प्रतिनिधि नहीं थे और ना ही वे उन्हें पहचानते हैं। जब कोर्ट ने पूछा कि फिर उन्होंने शेष स्टॉक पर आबकारी शुल्क क्यों जमा किया, तो उन्होंने जवाब दिया कि 8 मई 2024 को विभागीय दबाव में शुल्क जमा किया गया, क्योंकि धमकी दी गई थी कि अन्यथा उनकी बैंक गारंटी जब्त कर ली जाएगी।

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25 लाख का ‘समझौता’, कोर्ट ने उठाया सवाल

कोर्ट ने यह भी पूछा कि जब उन्हें स्टॉक नहीं मिला, तो उन्होंने याचिकाकर्ता को 25 लाख रुपये क्यों दिए? इस पर जवाब आया कि याचिकाकर्ता ने 1.52 करोड़ रुपये की मांग की थी, लेकिन लंबी कानूनी प्रक्रिया से बचने के लिए 25 लाख में ‘समझौता’ कर लिया गया। न्यायालय ने इस पर आश्चर्य जताया कि बिना किसी अदालती निर्देश के इतनी बड़ी राशि क्यों दी गई।

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जमानती वारंट जारी, एसपी ने दी पेश करने की गारंटी

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि विकास सिंह, धर्मेंद्र शिवहरे और अमोल गुप्ता के हस्ताक्षर सवालों के घेरे में हैं, और इनकी व्यक्तिगत उपस्थिति आवश्यक है। चूंकि पूर्व में जारी वारंट समयाभाव के कारण निष्पादित नहीं हो सके, इसलिए अब प्रत्येक के खिलाफ 25,000 रुपये के नए जमानती वारंट जारी किए गए हैं। जबलपुर एसपी संपत उपाध्याय स्वयं न्यायालय में उपस्थित हुए और यह आश्वासन दिया कि अगली सुनवाई में ये तीनों व्यक्ति हाज़िर किए जाएंगे।

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17 अप्रैल को होगी मामले की अगली सुनवाई

कोर्ट ने अगली सुनवाई 17 अप्रैल 2025 को निर्धारित की है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि तीनों आरोपी सामने आते हैं या नहीं, और क्या वरिष्ठ अधिवक्ता रूपराह को उनके पद पर बने रहने की अनुमति दी जाएगी या नहीं।

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