9 साल से हाईकोर्ट में चल रहा जजों की सुरक्षा का मामला, स्टेटस रिपोर्ट और तारीख तक सीमित कार्रवाई

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में जजों की सुरक्षा को लेकर 9 साल से सुनवाई चल रही है। सरकार हर बार एक नई स्टेटस रिपोर्ट पेश करती है, लेकिन सुरक्षा व्यवस्था में कोई ठोस सुधार नहीं हुआ। कोर्ट ने हाल ही में जजों की सुरक्षा को लेकर सख्त टिप्पणी की है।

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Neel Tiwari
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Photograph: (THESOOTR)

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JABALPUR. मध्य प्रदेश में जजों की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर हाईकोर्ट पिछले 9 साल से लगातार सुनवाई कर रहा है। हालात ये हैं कि हर सुनवाई के बाद सरकार सिर्फ एक नई स्टेटस रिपोर्ट लेकर आती है और इसके आगे कुछ नहीं बदलता।

शुक्रवार, 21 नवंबर की सुनवाई में भी जब अनूपपुर में प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट अमनदीप सिंह छाबड़ा के सरकारी आवास पर हुए हमले और अन्य जिलों में जजों के घरों में चोरी की घटनाएं सामने आईं, तो हाईकोर्ट ने मौखिक टिप्पणी कर नाराजगी जताई। कोर्ट ने कहा कि जज सुरक्षित नहीं, तो न्याय व्यवस्था कैसे सुरक्षित रहेगी?”

2016 में शुरू हुआ मामला… लेकिन सवाल वही के वही

बता दें कि यह सुरक्षा का मुद्दा हाईकोर्ट ने 2016 में स्वतः संज्ञान लेकर शुरू किया था। 23 जुलाई 2016 को मंदसौर में न्यायाधीश राजवर्धन गुप्ता पर हमला हुआ।

इसके बाद मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के तत्कालीन रजिस्ट्रार जनरल मनोहर ममतानी की रिपोर्ट के आधार पर मामला तत्काल सुओ मोटो याचिका में बदल गया। उसके बाद से ही हर बेंच ने सरकार को निर्देश दिए। हर सुनवाई में नई-नई रिपोर्ट मांगी गई। हर बार सुरक्षा इंतजामों की सूची आई, लेकिन, जमीन पर ज्यादा कुछ नहीं बदला।

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हाईकोर्ट का 2014 का आदेश भी अब तक अधूरा

हैरानी की बात यह है कि जजों की सुरक्षा को लेकर हाईकोर्ट के आदेश साल 2014 से चले आ रहे हैं। याचिका क्रमांक 4072/2001 और WP No.7284/2002 पर हाई कोर्ट ने 28 जनवरी 2014 को ही यह आदेश दिया था कि जजों की सुरक्षा के लिए सरकार के द्वारा उपयुक्त उपाय किए जाएं। उसके बाद 2016 में suo moto पिटीशन पर सुनवाई भी शुरू हुई। लेकिन अब 2025 तक भी हालात जस के तस हैं।

तत्कालीन एक्टिंग चीफ जस्टिस राजेंद्र मेनन ने 2016 में ही कह दिया था कि “राज्य सरकार ने जजों की सुरक्षा के लिए गंभीर कदम नहीं उठाए।” 9 साल बाद भी अदालत की वही शिकायत बरकरार है।

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स्टेटस रिपोर्टों में विरोधाभास HC बोला, “किसे मानें?”

8 दिसंबर 2024 को हुई पिछली सुनवाई में हाईकोर्ट ने पाया था कि सरकार की रिपोर्ट और हाईकोर्ट की रिपोर्ट में आंकड़ों में भारी अंतर है। कई जिलों में बाउंड्री वॉल की ऊंचाई स्पष्ट नहीं है। पुलिस पोस्ट पर जानकारी भी अधूरी है। जजों के आवास पर सुरक्षा बलों की तैनाती की जानकारी भी अस्पष्ट थी।

हालांकि, राज्य सरकार ने गलती मानकर बिना शर्त माफी मांगी थी। राज्य सरकार का पक्ष था कि समयांतराल के कारण यह अंतर आया है। कोर्ट ने साफ कहा कि यह मामला समयांतराल नहीं, सुरक्षा का है।

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ताजा घटनाओं ने फिर बढ़ाई चिंता: जज पर हमला, घरों में चोरी

21 नवंबर 2025 की सुनवाई में जब कोर्ट मित्र अधिवक्ता ने बताया कि अनूपपुर में प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट अमनदीप सिंह छाबड़ा के सरकारी आवास पर हुए हमले सहित कई जिलों में जजों के घरों में चोरी जैसी वारदात अभी भी हो रही हैं। तो कोर्ट ने सख्त प्रतिक्रिया दी।

हाईकोर्ट की ओर से पेश ब्रजेश नाथ मिश्रा ने बताया कि सारी जानकारियां पुलिस अधिकारियों को भेज दी गई हैं, लेकिन उप महाधिवक्ता ने “निर्देश लेने के लिए समय” मांग लिया। कोर्ट ने अब फिर अगली तारीख दे दी।

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तारीख पर तारीख… सुरक्षा अब भी अधूरी

जनवरी 2024 को जारी पिछले हाईकोर्ट आदेश के अनुसार सुनवाई पहले दो महीने बाद होनी थी, लेकिन लगभग 11 महीने बाद 21 नवंबर को हो सकी। अब अगली तारीख 4 दिसंबर 2025 तय की गई है। लेकिन अदालत और जनता दोनों के मन में एक ही सवाल है कि क्या 9 साल से चल रहे मामले और 19 साल पुराने निर्देशों के बाद भी जजों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं हो सकती। अगर न्यायाधीश ही सुरक्षित नहीं, तो आम आदमी अपनी सुरक्षा की उम्मीद किससे करे।

4 दिसंबर को अगली सुनवाई, स्थिति बदलने की उम्मीद

हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि सभी जिलों की निगरानी सेल भौतिक निरीक्षण कर सही सुरक्षा रिपोर्ट दाखिल करें।।अब देखना यह है कि क्या राज्य सरकार इस बार स्पष्ट और संतोषजनक जवाब दे पाएगी।

जजों के आवास और कोर्ट परिसर की सुरक्षा मजबूत होगी या फिर यह मामला एक बार फिर “तारीख पर तारीख” की कहानी बनकर रह जाएगा। फिलहाल इतना साफ है कि 9 वर्षों की सुनवाई और अनगिनत रिपोर्टों के बाद भी जजों की सुरक्षा एक अधूरा वादा बनी हुई है।

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