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हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने मप्र सरकार के प्रथम और द्वितीय श्रेणी के अधिकारियों के रवैए पर गहरी नाराजगी जताई है। यह अधिकारी अपने रवैए के चलते लगातार मप्र के तृतीय और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को परेशान कर रहे हैं। हद तो तब हो गई जब एक मामले में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी पर रिटायरमेंट के बाद 94 हजार की वसूली निकाली गई। इस पर हाईकोर्ट ने शासन को जमकर फटकार लगाई।
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यह है मामला
एक कर्मचारी बलवंत सिंह मंडलोई पर रिटायरमेंट के बाद शासन ने 94 हजार 56 रुपए की वसूली निकाल दी। कर्मचारी की ज्वाइनिंग पब्लिक हेल्थ इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट में थी, बाद में उसे 2008 में हाई स्केल वेतन पर प्रमोट किया गया। लेकिन 2015 में विभाग ने रिकवरी निकाल दी कि गलत हाई स्केल वेतन दिया गया। नवंबर 2015 में 94 हजार की रिकवरी निकाल दी। हाईकोर्ट ने कर्मचारी के हित में फैसला सुनाया और रिकवरी आदेश खारिज किया। लेकिन शासन ने 711 दिन की देरी के बाद माफी का आवेदन लगाते हुए कर्मचारी के हित में आए आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में रिट अपील दायर कर दी। इस पर हाईकोर्ट ने यह आवेदन तो खारिज किया ही, साथ ही शासकीय अधिवक्ता से कहा कि वह प्रभारी अधिकारी की नोटशीट लेकर आए कि आखिर किसने रिट अपील की मंजूरी दी।
नोटशीट आई तो हाईकोर्ट हैरान
जब नोटशीट आई तो हाईकोर्ट हैरान रह गया। इसमें एजी ऑफिस या विधि विभाग से कोई मंजूरी ही नहीं थी और विभाग आदेश के खिलाफ अपील में आ गया। चीफ इंजीनियर द्वारा अपील कर दी गई। साल 2017-18 के दौरान 16 चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी तो केवल पीएचई विभाग में ही ऐसे सामने आए जिनके वेतन लाभ रोके गए। हाईकोर्ट ने कहा कि कैबिनेट विचार करे कि आखिर तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को क्यों परेशान किया जा रहा है। इससे कोर्ट का भी कीमती समय बर्बाद होता है।
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अधिकारी यहां तक बोले कि हम कैबिनेट में रख रहे हैं
जब हाईकोर्ट ने वर्चुअल जुड़े अधिकारी से इस संबंध में सवाल किया तो अधिकारी यहां तक बोल गए कि इस मामले को हम कैबिनेट में रख रहे हैं। इस पर हाईकोर्ट हैरान हो गया और कहा कि क्या कैबिनेट को इतनी फुर्सत है कि वह 94 हजार के मामले पर चर्चा करेगा। हाईकोर्ट ने कहा कि बेवजह इन कर्मचारियों को उच्च अधिकारी अपने अड़ियल रवैए के कारण परेशान कर रहे हैं।
इसके बाद हाईकोर्ट ने यह दिए आदेश
हाईकोर्ट ने इस बहस के दौरान कहा कि कैबिनेट को इस मामले में विचार करना चाहिए कि आखिर उच्च अधिकारियों के गलत और अड़ियल रवैये के कारण तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों का उत्पीड़न क्यों हो रहा है। जस्टिस विवेक रूसिया और जस्टिस गजेंद्र सिंह की बेंच ने कहा कि हमारे सामने कई मामले आए हैं। इनमें विविध विभागों के कर्मचारी वरिष्ठ अधिकारियों के फैसलों से प्रभावित हुए हैं। इनमें बढ़ा हुआ वेतनमान वापस लेने, सेवानिवृत्ति के समय वसूली, समान लाभ न देने और पदोन्नति में देरी से जुड़े मामले शामिल होते हैं। हैरानी की बात है कि ये मामले कभी प्रथम और द्वितीय श्रेणी के अधिकारियों पर नहीं आते हैं।
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साल 2018 की नीति का पालन क्यों नहीं
हाईकोर्ट ने साल 2018 की मुकदमा नीति का भी हवाला दिया और कहा कि छोटे-मोटे मामले निपटाने के लिए राज्य, जिला व विभागीय स्तर पर समिति का प्रावधान था, लेकिन यह कागजों में ही सिमट कर रह गई। इसे लागू किया जाना चाहिए जिससे कर्मचारी परेशान न हों और कोर्ट का समय भी बर्बाद न हो।
20 हजार की कास्ट लगाई
हाईकोर्ट ने इस मामले में 20 हजार की कास्ट भी लगाई, जिसने रिट अपील दायर करने की अनुशंसा की थी। यह कास्ट चीफ इंजीनियर, पब्लिक हेल्थ इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट से वसूली जाएगी।
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