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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट, जबलपुर ने एक सख्त फैसला दिया है। उन्होंने सागर की सेंट्रल जेल के सुपरिटेंडेंट पर जुर्माना लगाया है। यह जुर्माना पच्चीस हजार रुपए का है। एक व्यक्ति को अवैध रूप से जेल में रखा गया था।
उसकी सजा पूरी हो चुकी थी, पर वह जेल में ही रहा। जस्टिस विवेक अग्रवाल और रामकुमार चौबे की बेंच ने यह कहा। उन्होंने इसे कानून का उल्लंघन माना है। सजा पूरी होने पर भी जेल में रखना गलत है। इसे बिल्कुल स्वीकार नहीं किया जा सकता।
सजा पूरी, फिर भी जेल में रखा गया बंदी
यह मामला रिट याचिका संख्या 48450/2025 से संबंधित है। याचिकाकर्ता अरविंद कुशवाहा ने अपनी रिहाई के लिए हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। सुनवाई के समय उनकी वकील संजना यादव ने कोर्ट को बताया। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता को रिहा कर दिया गया है।
यह जानकारी मानेन्द्र सिंह परिहार, जेल अधीक्षक सागर ने दी है। उनका पत्र 12 दिसंबर 2025 को भेजा गया था। इसलिए, यह याचिका वापस ली जा रही है। वकील ने यह भी बताया कि अरविंद कुशवाहा अपनी एक साल की सजा पूरी कर चुके थे। उनकी सजा 4 नवंबर 2025 को ही पूरी हो गई थी।
POCSO केस अपील में रद्द, फिर भी रिहाई में देरी
राज्य की ओर से अधिवक्ता अनुभव जैन ने यह स्वीकार किया है, कि याचिकाकर्ता POCSO मामले में हिरासत में था। इसे अपील में हाईकोर्ट द्वारा पहले ही निरस्त किया जा चुका था।
ऐसी स्थिति में एक साल का कठोर कारावास पूरा होने के बाद याचिकाकर्ता को तत्काल रिहा किया जाना चाहिए था। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि जुर्माना अदा नहीं किया गया होता, तब भी अधिकतम 15 दिन की अतिरिक्त अवधि के बाद रिहाई अनिवार्य थी।
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20 नवंबर के बाद की हिरासत अवैध घोषित
खंडपीठ ने अपने आदेश में साफ शब्दों में कहा कि 20 नवंबर 2025 के बाद याचिकाकर्ता को जेल में रखना पूरी तरह अवैध है। इस अतिरिक्त अवधि को अवैध हिरासत माना जाएगा। कोर्ट ने इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का गंभीर हनन बताया।
सागर जेल अधीक्षक पर कोर्ट ने लगाया जुर्माना
जबलपुर हाईकोर्ट ने केंद्रीय जेल, सागर के अधीक्षक मानवेंद्र सिंह परिहार पर 25 हजार का जुर्माना लगाया और निर्देश दिया कि यह राशि सार्वजनिक कोष में जमा न होकर सीधे याचिकाकर्ता को दी जाए। साथ ही यह राशि 5 सालों के लिए किसी राष्ट्रीयकृत बैंक में सावधि जमा (FDR) के रूप में निवेश की जाएगी।
कोर्ट ने यह भी साफ किया कि याचिकाकर्ता अवैध हिरासत की अवधि के लिए अलग से मुआवज़ा मांगने हेतु उचित कानूनी कार्यवाही करने के लिए स्वतंत्र रहेगा।
याचिका के निराकरण के साथ ही कड़ा संदेश
कोर्ट ने याचिका वापस लेने दी। साथ ही, कुछ ज़रूरी निर्देश भी दिए। इस तरह याचिका का निपटारा हो गया। यह आदेश बहुत खास है। यह जेल प्रशासन की लापरवाही दिखाता है।
इससे उन पर सवाल उठते हैं। कोर्ट ने यह भी साफ संदेश दिया। किसी की आजादी से खिलवाड़ नहीं होगा। ऐसा करने पर अधिकारी जिम्मेदार होंगे। उन्हें इसका जवाब देना पड़ेगा।
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