MP में कोर्ट में जज के सामने खुली पुलिस की पोल , जबलपुर एसपी की भी नहीं सुनते टीआई

जबलपुर हाईकोर्ट में हत्या के मामले में जज के सामने पुलिस की पोल खुल गई। जस्टिस ने एसपी को दोपहर में ही कोर्ट में पेश होने का आदेश दिया। जिसके बाद एसपी ने कोर्ट में हाज़िर होकर अपने अधिकारी की गलती मानी।

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Neel Tiwari
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MP Jabalpur High Court Justice Vivek Aggarwal orders SP appear
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JABALPUR. जबलपुर हाईकोर्ट में एक हत्या के मामले में जमानत आवेदन में जबलपुर पुलिस की संगीन अपराधों में  विवेचना में अपनाए जा रहे ढुलमुल रवैये की पोल खुल गई। जस्टिस विवेक अग्रवाल की बेंच ने दोपहर में ही पुलिस अधीक्षक आदित्य प्रताप सिंह को कोर्ट में पेश होने का आदेश दिया। जिसके बाद एसपी ने कोर्ट में हाज़िर होकर अपने अधिकारी की गलती मानी और कोर्ट ने जिम्मेदार अधिकारी पर कार्रवाई का आदेश दिया। 

जबलपुर के पुलिस अधीक्षक आदित्य प्रताप सिंह के द्वारा बार-बार विवेचना में सुधार लाने एवं पुलिसकर्मियों के जनता के प्रति व्यवहार को सुधारने के लिए समीक्षा बैठक ली जा रही हैं। लेकिन ऐसा नजर आ रहा है कि पुलिस अधीक्षक के अधीनस्थों ने यह ठान लिया है कि हम तो नहीं सुधरेंगे और उनकी इस हठधर्मिता का जवाब न्यायालय में पुलिस अधीक्षक को देना पड़ रहा है।

दरअसल, मार्च 2024 मे अभिषेक भारती की हत्या हुई थी। सड़क दुर्घटना नजर या रहे इस मामले में बड़ा खुलासा हुआ था कि अभिषेक भारती की हत्या उसके ही भाई विनोद भारती ने अनुकंपा नियुक्ति और मकान के लालच में की थी।

बिना 161 के बयान के पेश किया चालान

इस मामले मे सोमवार को आरोपी द्वारा हाईकोर्ट में जमानत के लिए आवेदन दिया गया था। इस मामले में आरोपी और आवेदक विनोद भारती की ओर से अधिवक्ता ने यह तथ्य रखे की पुलिस के द्वारा चालान तो फाइल कर दिया गया है, पर 161 के बयान ही नहीं लगाए गए। विवेचना अधिकारी की गई इस गलती को कोर्ट ने गंभीरता से लिया और सरकारी वकील को यह आदेश दिया कि दोपहर में 2:30 बजे एसपी को कोर्ट में हाज़िर करें। 

सरकारी वकील ने जबलपुर में मुख्यमंत्री के दौरे के कारण एसएचओ को हाजिर करने का निवेदन किया, लेकिन जस्टिस विवेक अग्रवाल ने यह टिप्पणी की कि एसएचओ ही मुख्य दोषी है, और इस निवेदन को ना मानते हुए यह कहा कि मुख्यमंत्री के कार्यक्रम का समय बताएं और उसके अनुसार एसपी को ऑनलाइन या प्रत्यक्ष कोर्ट में हाजिर करें। दोपहर में जबलपुर के पुलिस अधीक्षक आदित्य प्रताप सिंह कोर्ट के समक्ष पेश हुए और उन्होंने तुरंत यह गलती मान ली की चार्जशीट में बयान फाइल नहीं किए गए। हालांकि पुलिस अधीक्षक ने यह बताया कि धारा 161 के बयान लिए गए हैं पर विवेचना अधिकारी के द्वारा इन्हें चालान में शामिल ना करने की गलती की गई है। 

वर्दी पहनकर गलत करने का लाइसेंस नहीं मिला

जबलपुर के पुलिस अधीक्षक ने कोर्ट को यह आश्वासन दिया कि जिम्मेदार अधिकारी के विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी। मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट के द्वारा यह भी टिप्पणी की गई की अपने मातहतों को कंट्रोल करें यह कुछ भी कर रहे हैं और वर्दी पहनकर इन्हें गलत करने का लाइसेंस नहीं मिला है। आदेश में कोर्ट ने पुलिस अधीक्षक जबलपुर को यह निर्देशित किया की विवेचना अधिकारी पर कार्रवाई करें और उसकी रिपोर्ट कोर्ट को दें।

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क्या होता है धारा 161 का बयान

पुलिस कस्टडी में अपराधी या गवाहों के द्वारा दिए गए बयान को कोर्ट मान्य नहीं करता परंतु कुछ स्थितियों में यह बयान महत्वपूर्ण हो जाते हैं। पुलिस अधिकारी जो किसी आपराधिक मामले की इन्वेस्टिगेशन कर रहा है। वह साक्षियों को गवाही के लिए बुलवा सकता है एवं उनके द्वारा दिए बयान पर वह हस्ताक्षर नहीं देगा सिर्फ उनके बयान को लेखबद्ध कर सकता है। कोर्ट में यदि कोई गवाह, पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज बयान से मुकर जाता है तब ऐसी स्थिति में न्यायाधीश पुलिस के इन्वेस्टिगेशन ऑफीसर द्वारा प्रस्तुत किए गए गवाह के बयान का खंडन कर सकता है। लेकिन यदि किसी आपराधिक प्रकरण पुलिस का इन्वेस्टिगेशन ऑफीसर पर्याप्त साक्ष्य प्रस्तुत ना कर पाए लेकिन गवाह वही बयान कोर्ट में भी दोहराए जो उसने इन्वेस्टिगेशन के दौरान पुलिस अधिकारी को दिया। ऐसी स्थिति में गवाह के बयान को महत्वपूर्ण साक्ष्य माना जा सकता है और केवल गवाहों के बयान के आधार पर अपराधी को दंडित किया जा सकता है।

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