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Photograph: (the sootr)
JABALPUR. मध्य प्रदेश के लगभग 38 हजार कोटवार इस समय गहरे असंतोष में हैं। वे प्रदेश सरकार द्वारा भेजी जा रही वर्दी की गुणवत्ता पर सवाल उठाते हुए उसे लेने से साफ इनकार कर चुके हैं। कोटवारों का आरोप है कि उन्हें जो वर्दी दी जा रही है वह न केवल घटिया गुणवत्ता की है, बल्कि उनके पद की गरिमा को भी ठेस पहुंचाने वाली है।
कोटवार संघ ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि वे इस मुद्दे को केवल प्रशासनिक स्तर पर नहीं छोड़ेंगे, बल्कि इसे लेकर उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दाखिल करने के साथ-साथ प्रदेशव्यापी आंदोलन की भी तैयारी कर चुके हैं।
पहले मिलती थी राशि, अब थमाई जा रही घटिया वर्दी
पूर्व में मध्य प्रदेश शासन द्वारा कोटवारों को वर्दी खरीदने के लिए प्रतिवर्ष 6 हजार की राशि सीधे उनके बैंक खातों में भेजी जाती थी। इस व्यवस्था से कोटवार अपने अनुसार उचित दुकान से कपड़ा खरीदकर अपनी पसंद और माप की वर्दी बनवाते थे। यह व्यवस्था लंबे समय तक निर्विवाद रूप से चलती रही और कोटवारों को इससे संतुष्टि भी थी।
लेकिन, हाल ही में शासन ने इस व्यवस्था को समाप्त करते हुए, वर्दी की आपूर्ति एक निर्धारित ठेकेदार के माध्यम से कराने का निर्णय ले लिया। जब यह वर्दी कोटवारों के पास पहुंची, तो उसकी गुणवत्ता को लेकर भारी असंतोष सामने आया। कपड़े की बनावट, फिटिंग और रंग सभी बेहद घटिया स्तर के बताए जा रहे हैं, जिसके कारण कोटवार इसे पहनने से भी परहेज़ कर रहे हैं।
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हाईकोर्ट दे चुका है, सीधे राशि भेजने को मंजूरी
इस पूरे मामले में एक दिलचस्प मोड़ तब आया जब वर्दी की राशि सीधे खातों में डालने की व्यवस्था को लेकर कुछ निजी ठेकेदारों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी थी। उन्होंने यह दावा किया था कि शासन का यह निर्णय मध्य प्रदेश भंडार क्रय तथा सेवा उपार्जन नियम 2015 के विरुद्ध है। लेकिन, जस्टिस विशाल धगत की एकलपीठ ने याचिका को निरस्त करते हुए स्पष्ट किया था कि यह नीति कोटवारों के व्यापक हित में है और इसे चुनौती देना अवैध है।
न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की थी कि शासन का निर्णय पारदर्शिता और व्यावहारिकता को बढ़ावा देता है, जिससे वर्दी की गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सकती है। इसके बावजूद सरकार द्वारा अचानक इस व्यवस्था को पलटते हुए फिर से ठेकेदारी मॉडल लागू करना कई सवाल खड़े करता है।
कबीर हथकरघा समिति ने दायर की थी याचिका
इस मामले में कबीर हथकरघा बुनकर समिति, जबलपुर के संचालक मोहम्मद रफीक अंसारी द्वारा एक जनहित याचिका भी दायर की गई थी, जिसमें सीधे राशि ट्रांसफर किए जाने की नीति को चुनौती दी गई थी। राज्य शासन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता यश सोनी ने कोर्ट में दलील दी कि याचिका पूर्णतः स्वार्थपूर्ण है और इसका उद्देश्य केवल पुराने ठेकेदारों के आर्थिक हितों की रक्षा करना है।
कोर्ट ने इस दलील को स्वीकार करते हुए याचिका खारिज कर दी और कहा कि सरकारी नीति को व्यापक जनहित में पारित किया गया है, न कि किसी एक संस्था या समूह के लाभ के लिए।
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कोटवार संघ की प्रमुख मांगें
- वर्दी की घटिया गुणवत्ता को तुरंत वापस लेना
- राशि सीधे बैंक खातों में भेजी जाए
- कोटवारों की गरिमा और पेशेवर सम्मान की रक्षा हो
- पारदर्शिता सुनिश्चित करते हुए भ्रष्टाचार खत्म किया जाए
फिर से ठेकेदारों को लाभ पहुंचाने की साजिश?
वर्दी के लिए कोटवारों को दी जा रही रकम के विरोध में जो पिछली याचिका दायर हुई थी उसमें यह साफ हो गया था कि ठेकेदार के पास बड़ी मात्रा में इस वर्दी का कपड़ा बाकी है जिससे उसे नुकसान हुआ है हालांकि हाईकोर्ट में उस समय उसे राहत नहीं मिली थी। लेकिन अब कोटवार संघ का आरोप है कि शासन ने जिस प्रकार से न्यायालय की स्पष्ट राय के बावजूद ठेकेदारों को फिर से मौका दिया, वह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि कुछ प्रभावशाली समूहों को लाभ पहुंचाने के लिए नियमों में फेरबदल किया गया है।
हालांकि या ठेका इस बार खादी ग्राम उद्योग को दिया गया है पर उसके बाद भी खादी ग्राम उद्योग के द्वारा कुछ ठेकेदारों से यह कार्य कराए जाने के आरोप लगे हैं। कोटवारों का यह भी कहना है कि नई वर्दी न केवल घटिया है, बल्कि इसका रंग और डिजाइन भी कोटवार की पहचान के अनुरूप नहीं है। कुछ जिलों में तो ऐसी वर्दी दी गई है जो हल्की बारिश में ही रंग छोड़ देती है। यह सब इस ओर इशारा करता है कि वर्दी का पूरा टेंडर और आपूर्ति सिस्टम भ्रष्टाचार की जद में है, जिसे कोटवार स्वीकार नहीं करेंगे।
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संघ की चेतावनी: वर्दी वापस लो, नहीं तो राजधानी में होगा उग्र प्रदर्शन
प्रदेश के कोटवार संघ ने स्पष्ट रूप से कहा है कि वे न तो शासन की ओर से दी जा रही वर्दी स्वीकार करेंगे और न ही इसे पहनेंगे। संघ के प्रदेश अध्यक्ष और जिला अध्यक्षों ने संयुक्त बयान में कहा है कि कोटवारों की गरिमा के साथ समझौता नहीं किया जाएगा।
यदि सरकार इस निर्णय को तुरंत वापस नहीं लेती तो संघ जनहित याचिका के साथ-साथ राजधानी भोपाल में महा-आंदोलन का आयोजन करेगा। कोटवार संघ का कहना है कि वे इस बार चुप नहीं बैठेंगे और पूरे प्रदेश में एकजुट होकर आवाज़ बुलंद करेंगे।
कोटवारों की मांग, हमें वर्दी नहीं, वर्दी की राशि चाहिए
कोटवारों की प्रमुख मांग है कि उन्हें जबरन घटिया वर्दी पहनने के लिए मजबूर न किया जाए। शासन यदि वास्तव में पारदर्शिता और सुविधा देना चाहता है, तो पुराने मॉडल को पुनः लागू करे, जिसमें राशि सीधे खातों में जमा होती थी। इससे कोटवार स्वयं अपनी पसंद की वर्दी, अपने नाप के अनुसार खरीद सकते हैं, जिससे उनके आत्मसम्मान और पेशेवर गरिमा की रक्षा होगी।
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सिर्फ वर्दी नहीं कोटवारों की गरिमा और अधिकारों की लड़ाई
मध्य प्रदेश में उभर रहा यह विवाद केवल कपड़े की गुणवत्ता या सरकारी आपूर्ति से जुड़ा नहीं है, बल्कि यह कोटवारों की प्रतिष्ठा, पहचान और अधिकारों की लड़ाई बन चुका है। यदि शासन समय रहते इस विवाद का समाधान नहीं करता, तो यह आंदोलन प्रदेश की राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था पर गहरा असर डाल सकता है।
आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि शासन कोटवारों की मांगों को गंभीरता से लेकर पुनर्विचार करता है या फिर हाईकोर्ट से मिलने वाले निर्देश के बाद कोई एक्शन लिया जाएगा या आंदोलन की आंच और तेज होती है।