कूनो नेशनल पार्क में 8 साल की नभा की मौत, शिकार के वक्त मादा चीता का पैर हुआ था फ्रैक्चर
नामीबिया से लाई गई 8 साल की मादा चीता 'नभा' की 12 जुलाई 2025 को कूनो नेशनल पार्क में मौत हो गई। वन विभाग के अनुसार, एक सप्ताह पहले 'नभा' अपने सॉफ्ट रिलीज बोमा में घायल मिली थी।
नामीबिया से लाई गई 8 साल की मादा चीता 'नभा' की 12 जुलाई 2025 को कूनो नेशनल पार्क में मौत हो गई। वन विभाग के अनुसार, एक सप्ताह पहले 'नभा' अपने सॉफ्ट रिलीज बोमा में घायल मिली थी। शिकार के दौरान उसका बायां पैर फ्रैक्चर हो गया था। इसके बाद उसकी हालत में सुधार नहीं हुआ, और अंततः उसकी मौत हो गई। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से मौत के सटीक कारणों का पता चलेगा।
कूनो नेशनल पार्क में कितने चीते हैं?
नभा की मौत के बाद, कूनो में चीतों की संख्या घटकर 26 रह गई है। इनमें 9 वयस्क चीते हैं, जिनमें 6 मादा और 3 नर शामिल हैं, और 17 शावक हैं। वन विभाग के मुताबिक, सभी चीते स्वस्थ हैं और खुले जंगल में स्वतंत्र रूप से घूम रहे हैं।
चीता 'नभा' की मौत: मादा चीता 'नभा' की 12 जुलाई 2025 को कूनो में मौत हो गई, उसके बाएं पैर में फ्रैक्चर था।
चीता संख्या: 'नभा' की मौत के बाद कूनो में 26 चीते रह गए, जिनमें 9 वयस्क और 17 शावक शामिल हैं।
2023 में हुई मौतें: 2023 में साशा, उदय, दक्षा और ज्वाला के शावकों समेत कई चीतों की मौत हुई।
बचे हुए चीते: कूनो में 16 चीते खुले जंगल में घूम रहे हैं और स्वस्थ हैं।
वन विभाग का बयान: वन विभाग ने कहा कि चीतों की सुरक्षा के लिए कदम उठाए जा रहे हैं और पारिस्थितिकी तंत्र के अनुकूल होने की उम्मीद है।
2023 में हुई थी चीतों की मौत
कूनो नेशनल पार्क में चीतों की कई मौतें हो चुकी हैं। 2023 में, साशा, उदय, दक्षा, ज्वाला के शावकों और तेजस समेत कई चीते इस साल मृत्यु के शिकार हुए थे। इनमें से कई चीते दिल की बीमारी, किडनी इन्फेक्शन, और गर्मी के कारण मौत के शिकार हुए थे।
वर्तमान में, कूनो नेशनल पार्क में 16 चीते खुले जंगल में स्वतंत्र रूप से घूम रहे हैं। सभी चीते अब पारिस्थितिकी तंत्र के अनुकूल हो चुके हैं। हाल ही में सभी चीतों को एंटी-परजीवी दवाएं दी गईं, और मादा चीता वीरा और निर्वा अपने शावकों के साथ स्वस्थ हैं।
चीतों की सुरक्षा पर वन विभाग ने क्या कहा?
वन विभाग का कहना है कि चीतों की सुरक्षा के लिए सभी कदम उठाए जा रहे हैं। हालांकि, इन मौतों से कूनो नेशनल पार्क में चीतों के संरक्षण की चुनौती बढ़ी है। अधिकारियों का मानना है कि चीतों के पारिस्थितिकी तंत्र के अनुकूल होने से भविष्य में और सफलता मिल सकती है।