मध्य प्रदेश में सहकारी समितियां किसानों के लिए बीज, खाद, कृषि ऋण और अन्य संसाधन उपलब्ध कराने का कार्य करती हैं। ये समितियां ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं और इन पर किसानों की कृषि गतिविधियां निर्भर होती हैं। प्रदेश में लगभग 4,500 PACS हैं, जिनका कार्यकाल 2018 में समाप्त हो गया था। नियमानुसार, चुनाव प्रक्रिया छह महीने पहले शुरू हो जानी चाहिए थी, लेकिन विभिन्न कारणों से यह प्रक्रिया लगातार टलती रही।
चुनावों में देरी और कोर्ट की भूमिका
चुनावों में देरी के कारण हाईकोर्ट की जबलपुर और ग्वालियर खंडपीठ में कई याचिकाएं दायर हुईं। महाधिवक्ता कार्यालय के सुझाव पर राज्य सहकारी निर्वाचन प्राधिकारी ने मई से सितंबर 2025 के बीच चुनाव का कार्यक्रम घोषित किया। हालांकि, इससे पहले सरकार ने पुनर्गठन के आधार पर चुनावों को टालने की अनुमति मांगी, जिसे उच्च न्यायालय ने स्वीकार कर लिया।
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पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह का हस्तक्षेप
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने सहकारिता के चुनाव न कराने पर आपत्ति जताते हुए सीएम मोहन यादव को पत्र लिखा है। उन्होंने कहा कि प्रदेश के विकास में सहकारी संस्थाओं की महत्वपूर्ण भूमिका है और पिछले 12 वर्षों से चुनाव नहीं कराए गए हैं। उन्होंने मांग की कि सभी समितियों के चुनाव तीन माह के भीतर कराए जाएं ताकि लोकतांत्रिक व्यवस्था से निर्णय हों और निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास सहकारी समितियों की कमान आ सके।
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नवीन समितियों का गठन
सहकारिता मंत्रालय ने प्रत्येक पंचायत स्तर पर एक साख सहकारी समिति गठित करने के लिए कहा है। प्रदेश में परीक्षण करने के बाद लगभग साढ़े छह सौ समितियाँ बनाने का निर्णय हुआ है। इनमें से अभी मात्र 189 समितियाँ गठित करने की प्रक्रिया पूरी हुई है। चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता के लिए कई कदम उठाए जाएंगे। इसके लिए सदस्यता सूची प्रकाशन के बाद विशेष साधारण सम्मेलन बुलाकर अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और प्रतिनिधियों का चयन होगा।
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राजनीतिक दलों की सक्रियता
चुनावों की घोषणा के बाद, कांग्रेस और बीजेपी ने अपनी-अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं। दोनों दलों के नेताओं ने चुनावों को लेकर अपनी-अपनी रणनीतियाँ बनाई हैं। चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए राज्य सहकारी निर्वाचन प्राधिकारी ने कई कदम उठाए हैं।
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चुनावों के महत्व और भविष्य की दिशा
PACS के चुनावों का आयोजन सहकारिता क्षेत्र में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करेगा और किसानों को अपनी आवाज उठाने का अवसर प्रदान करेगा। इससे समितियों में पारदर्शिता आएगी और किसानों के हितों की रक्षा होगी। भविष्य में, सहकारिता मंत्रालय की नई नीतियों के तहत समितियों के पुनर्गठन और विकास की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए जाएंगे।