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Photograph: (thesootr)
JABALPUR.मध्यप्रदेश में प्रमोशन में आरक्षण नियम 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई हुई। 2 दिसंबर को हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की डिवीजन बेंच के समक्ष हुई। सुनवाई में बेहद अहम मुद्दों पर पक्ष रखा गया। पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट के जरनैल सिंह (1) और (2) मामलों पर गहन चर्चा की गई थी।
आज याचिकाकर्ताओं ने अपनी सभी दलीलें अदालत के सामने रखी। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अमोल श्रीवास्तव ने विस्तार में तर्क रखे। उन्होंने कहा कि 2025 के नियम क्वांटिफाइएबल डेटा के अभाव में असंवैधानिक हैं। साथ ही बैकलॉग पदों के कैरी फॉरवार्ड होने पर भी सवाल उठाए गए हैं।
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बैकलॉग पदों पर सबसे बड़ी आपत्ति
आज की सुनवाई में याचिकाकर्ताओं ने जिस मुद्दे पर सबसे जोर दिया, वह था बैकलॉग पदों का विवाद। कोर्ट को बताया गया कि किसी भी भर्ती में जो पद रिक्त रह जाते हैं। उन्हें बैकलॉग के रूप में आरक्षित वर्ग के लिए सुरक्षित रख दिया जाता है। इन पदों को अगली भर्ती में कैरी फॉरवर्ड किया जाता है।
इस व्यवस्था के कारण कई विभागों में साल दर साल पद खाली पड़े रहते हैं। कैरी फॉरवार्ड पदों की संख्या भी लगातार बढ़ती जाती है। वहीं सुप्रीम कोर्ट स्पष्ट कर चुका है कि सरकारी पद लंबे समय तक रिक्त नहीं छोड़े जा सकते।
अधिवक्ता अमोल श्रीवास्तव ने कहा कि बैकलॉग कैरी फॉरवर्ड प्रणाली से कई कैडर में प्रतिनिधित्व का संतुलन बिगड़ गया है। यह व्यवस्था योग्यता पर आधारित सेवा संरचना पर गलत प्रभाव डाल रही है।
कई विभागों में अनारक्षित वर्ग का प्रतिनिधित्व ही नहीं
याचिकाकर्ताओं ने सरकार की तरफ लागू किए गए आरक्षण प्रतिशत को चुनौती दी। उन्होंने बताया कि असिस्टेंट फॉरेस्ट कंजर्वेटर और अन्य उच्च पदों पर अनारक्षित वर्ग का प्रतिनिधित्व बहुत कम है। प्रमोशन में 16% और 20% आरक्षण देने से आरक्षित वर्ग का प्रतिनिधित्व 38% से 48% तक पहुंच जाएगा।
कोर्ट प्रस्तुत डेटा के फॉर्मेट से संतुष्ट नहीं था। याचिकाकर्ताओं ने अगली सुनवाई में विस्तृत चार्ट पेश करने की बात कही। राज्य सरकार को डेटा पर आपत्ति दर्ज करने का मौका मिलेगा।
प्रमोशन में काबिलियत की कसौटी कमजोर होने का आरोप
कोर्ट में यह मुद्दा प्रमुखता से रखा गया। प्रशासनिक उच्च पदों के लिए अधिकारियों को लगातार तीन, चार और पांच आउटस्टैंडिंग ग्रेडिंग की शर्तें पूरी करनी होती हैं। लेकिन प्रमोशन में आरक्षण के कारण यह ग्रेडिंग सिस्टम अप्रभावी हो जाएगा। जिससे काबिल अधिकारियों के प्रमोशन की पारदर्शी व्यवस्था भी प्रभावित होगी। उन्होंने कहा कि बेंचमार्किंग हटाने से योग्य अधिकारियों के कैरियर पर गलत प्रभाव पड़ेगा।
2022 के नियमों पर लगी रोक का हवाला
याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट को बताया कि 2022 के प्रमोशन नियमों पर पहले ही सुप्रीम कोर्ट की रोक है। 2022 के नियमों के आधार पर किए गए प्रमोशन पर भी स्टे है। लेकिन, 2025 के नियम उन्हीं विवादित सिद्धांतों पर आधारित हैं। इसलिए ये भी असंवैधानिक हैं। कोर्ट को बताया गया कि 2025 के नियमों में प्रमोशन का आरक्षण प्रतिशत सीधी भर्ती जैसा है। 16% और 20% प्रमोशन पर आरक्षण देना सुप्रीम कोर्ट के क्वांटिफाइएबल डेटा कलेक्ट करने के आदेशों का सीधा उल्लंघन है।
अब राज्य सरकार रखेगी अपना पक्ष
अदालत ने याचिकाकर्ताओं की बहस पूरी होने के बाद अब राज्य सरकार को अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया है। अगली सुनवाई 16 दिसंबर को होगी। इसमें सरकार अपनी विस्तृत दलीलें पेश करेगी। इसके साथ ही याचिकाकर्ता अनारक्षित वर्ग के कम प्रतिनिधित्व का विस्तृत डेटा चार्ट भी दाखिल करेंगे। एमपी सरकार की ओर से अगली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता सीएस वैद्यनाथन पक्ष रखेंगे।
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