सुप्रीम कोर्ट में 27% ओबीसी आरक्षण केस अटका, सरकार भूली, होल्ड उम्मीदवारों का PM और CJI को पत्र

मध्य प्रदेश में 27% ओबीसी आरक्षण पर मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, जो पिछले 6 साल से चल रहा है। मामले की सुनवाई के लिए बार-बार तारीखें बढ़ाई जा रही हैं, जिससे ओबीसी उम्मीदवारों को न्याय नहीं मिल पा रहा है।

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Sanjay Gupta
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मध्य प्रदेश में 6 साल से चल रहे 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण केस को लेकर मामला एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में पटरी से उतरते दिख रहा है।  पहले सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर और अक्टूबर में इस मामले को प्राथमिकता देते हुए टॉप पर रखा था, लेकिन सरकारी पक्ष लगातार समय बढ़ाने की मांग करता रहा।

इसके बाद अब केस लिस्ट हो रहा है तो वह 100 नंबर के बाद आ रहा है। इसके चलते सुनवाई नहीं हो रही है। अब 3 दिसंबर को फिर केस लिस्ट हुआ है, लेकिन इस बार फिर से केस 112वें नंबर पर है। यानी सुनवाई मुश्किल है।

पीड़ा झेल रहे उम्मीदवारों ने लिखा पीएम को पत्र

इस मामले में अब 13 फीसदी कैटेगरी में होल्ड उम्मीदवारों ने पीएम नरेंद्र मोदी और CJI Suryakant को पत्र लिखा है। उन्होंने लिखा है कि साल 2019 से मध्य प्रदेश के ESB (ईएसबी ) और MPPSC के लाखों अभ्यर्थियों को ओबीसी आरक्षण के चलते होल्ड किया हुआ है। इन्हें न्याय मिले। पत्र में आगे लिखा है कि-

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  • 2019 से मध्य प्रदेश में अलग-अलग भर्तियों में जो खाली पद हैं, उन्हें पूरी तरह से पदों और योग्यता के हिसाब से नहीं भरा जा रहा है। क्योंकि ओबीसी आरक्षण का मामला अभी भी कोर्ट में उलझा हुआ है।

  • मध्य प्रदेश सरकार मामले को सुलझाने के बजाय 87:13 (87% सीटों का परिणाम घोषित करना और 13% सीटें सुरक्षित रखना) की योजना लाई है। इसके कारण लाखों 13% होल्ड परिणाम लंबित हैं।

  • हम सिविल सेवा, चिकित्सा सेवा, पटवारी, कांस्टेबल, जूनियर इंजीनियर आदि विभिन्न परीक्षाओं के वह 13% होल्ड अभ्यर्थी हैं।

  • होल्ड अभ्यर्थी अनारक्षित और ओबीसी दोनों श्रेणियों से हैं। संख्या लगभग 1 लाख है, जिनका भविष्य अधर में है। कुछ चयनित तो हुए, लेकिन उनकी जॉइनिंग नहीं हुई।

  • हमें बस सरकार की ओर से समाधान चाहिए, क्योंकि मामला न्यायालय में विचाराधीन है। राज्य सरकार पिछले 5 वर्षों से अदालत में उनका उचित प्रतिनिधित्व नहीं कर रही है। इससे हमें न्याय मिलने में देरी हो रही है।

  • उन्होंने सीटों का विभाजन कर दिया है और परीक्षा प्रक्रिया में योग्यता के संबंध में अनावश्यक समस्याएं पैदा कर दी हैं।

  • अतः कृपया सरकार को निर्देश दें कि वे जल्द से जल्द कार्रवाई करें। वहीं इस मामले का समाधान करें क्योंकि छात्र 6 वर्षों से मानसिक, शारीरिक और आर्थिक उत्पीड़न झेल रहे हैं।

  • मामला सर्वोच्च न्यायालय में है, लेकिन हम जानते हैं कि यह एक ऐसी समस्या है जिसका समाधान केवल राज्य सरकार ही कर सकती है।

अक्टूबर में हो रही थी सुनवाई, ऐसे समय बढ़वाया

पहले 9 अक्टूबर को इस केस की सुनवाई (Hearing on 27% OBC reservation ) होनी थी और मामला टॉप पर था। जैसे ही बेंच ने सुबह 10:30 बजे सुनवाई शुरू की, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने समय बढ़ाने की मांग की। उन्होंने कहा कि कुछ मुद्दों पर आपस में बातचीत करनी है, इसलिए छुट्टियों के बाद सुनवाई के लिए और समय चाहिए।

अनारक्षित पक्ष ने कहा कि इसे जल्दी खत्म कर देना चाहिए। ओबीसी वेलफेयर कमेटी ने भी कहा कि इसे सुना जाए। इसके बाद मेहता ने कहा कि इसे और आगे बढ़ा दिया जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि कब सुनवाई चाहेंगे, तो मेहता ने कहा कि नवंबर के पहले या दूसरे सप्ताह में। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर के दूसरे सप्ताह में सुनवाई तय कर दी। इससे पहले भी 8 अक्टूबर को मेहता ने ज्यादा समय मांगा था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने एक दिन की मोहलत देकर 9 अक्टूबर की तारीख तय की थी। फिर 9 अक्टूबर को भी मेहता ने तारीख बढ़ाने की मांग की और आखिरकार बिहार चुनाव के बाद की तारीख तय हुई।

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सुप्रीम कोर्ट ने कह चुका फाइनल हियरिंग होगी

नवंबर में सुनवाई के लिए तारीख तय करते समय सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछकर नवंबर के दूसरे सप्ताह की तारीख रखी और कहा कि अब फाइनल सुनवाई होगी।

उसके बाद सरकार ने इस मामले को टॉप पर लाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। 12 नवंबर को भी केस था, लेकिन नीचे लिस्ट होने की वजह से सुनवाई नहीं हो पाई। इसके बाद 20 नवंबर और 27 नवंबर को भी तारीखें आईं, लेकिन सुनवाई नहीं हो सकी। अब 3 दिसंबर को फिर से तारीख आई है, लेकिन इस बार केस 112वें नंबर पर है।

ओबीसी कमेटी ने कहा कि हाईकोर्ट के स्टे हटा दीजिए

इस पर ओबीसी वेलफेयर कमेटी के अधिवक्ता वरुण ठाकुर ने कहा कि कम से कम हाईकोर्ट के स्टे को हटा दीजिए। एक्ट कहीं भी चैलेंज नहीं है। स्टे हटा दीजिए ताकि एक्ट के तहत भर्ती हो सके। लेकिन इस पर बेंच ने कोई जवाब नहीं दिया।

हाईकोर्ट जाएगा या नहीं यह तय नहीं

एक सुनवाई के दौरान यह बात उठी थी कि इस केस को वापस एमपी हाईकोर्ट भेज दिया जाए। हालांकि इस पर ज्यादा बहस नहीं हुई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि क्यों न केस को हाईकोर्ट भेज दिया जाए, क्योंकि आरक्षण का मुद्दा स्थानीय है, जो टोपोग्राफी और जनसंख्या से जुड़ा होता है, और हाईकोर्ट इसे बेहतर समझ सकता है। 

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इस पर यह भी कहा गया कि हाईकोर्ट ने कई याचिकाओं में स्टे दे दिया है। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हम उस स्टे को हटाकर इसे फिर से रिवर्ट कर देंगे। अनारक्षित पक्ष को इससे आपत्ति थी क्योंकि स्टे हटने का मतलब था कि मध्य प्रदेश में 27% ओबीसी आरक्षण लागू हो जाएगा। पांच मिनट की सुनवाई के बाद यह तय हुआ कि इस मुद्दे को प्रैक्टिकली देखा जाएगा और 9 अक्टूबर को सुनवाई होगी, लेकिन फिर 9 अक्टूबर को सरकार ने समय बढ़वा लिया।

सरकार लगातार समय मांग रही है

सरकार इस मामले (27% ओबीसी रिजर्वेशन) में लगातार समय मांग रही है। यह मामला साल 2019 से चल रहा है। पहले हाईकोर्ट ने इसमें ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने पर रोक लगाई और फिर इसमें सुनवाई की जगह शासन ने ट्रांसफर याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर कर दी। इसके बाद इन्हें खारिज किया गया और हाईकोर्ट फिर भेजा गया लेकिन फिर वहां से सुप्रीम कोर्ट में दूसरी ट्रांसफर याचिकाएं लगाई गई।

हाईकोर्ट में हर बार शासन ने यह कहा कि एपेक्स कोर्ट में केस है, इसलिए सुनवाई नहीं हो सकती है। इसके बाद मामला फिर सुप्रीम कोर्ट ने सुना गया और सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती से कहा कि सरकार 6 साल से सो रही थी, अब अंतरिम राहत नहीं देंगे अंतिम फैसला देंगे। लेकिन 8 अक्टूबर की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने अचानक कहा कि क्यों ना इसे हाईकोर्ट भेज दिया। लेकिन 9 अक्टूबर को हाईकोर्ट भेजने पर कोई चर्चा नहीं हुई। इसके बाद से इसमें तारीख लग रही है।

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