सुप्रीम कोर्ट ने एमपी सरकार से मांगा जवाब, क्यों नहीं दिया जा रहा आबादी के अनुपात में ओबीसी आरक्षण?

सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार से ओबीसी को आबादी के अनुपात में आरक्षण देने पर जवाब मांगा है। याचिका में ओबीसी को 50% आरक्षण देने की मांग की गई है, क्योंकि उनकी जनसंख्या 50.01% है। वर्तमान में ओबीसी को केवल 27% आरक्षण मिल रहा है।

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Neel Tiwari
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JABALPUR. मध्य प्रदेश में ओबीसी को उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षण देने की मांग को लेकर याचिका दायर की गई थी। यह याचिका ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा दायर की गई थी। सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने इस याचिका पर शुक्रवार को महत्वपूर्ण सुनवाई की।

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता ने मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया। कोर्ट ने सरकार से एक सप्ताह में जवाब मांगा है। कोर्ट ने सवाल किया कि SC और ST को उनके अनुपात में आरक्षण मिल सकता है, तो ओबीसी को क्यों नहीं मिल रहा है?

धारा 4(2) को दी गई चुनौती

मध्यप्रदेश ओबीसी आरक्षण केस की याचिका में अधिनियम 1994 की धारा 4(2) को संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 से असंगत बताते हुए इसे चुनौती दी गई है। इस धारा में एससी को 16%, एसटी को 20% और ओबीसी को 27% आरक्षण देने का प्रावधान है।

याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने तर्क दिया कि 2011 की जनगणना के अनुसार मध्य प्रदेश में एससी की आबादी 15.6%, एसटी की 21.01% और ओबीसी की 50.01% है। ऐसे में एससी और एसटी को तो लगभग उनकी आबादी के बराबर आरक्षण दिया गया है, लेकिन ओबीसी को मात्र 27% तक सीमित रखना संविधान के समानता सिद्धांत का उल्लंघन है।

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सुप्रीम कोर्ट ने शासन से मांगा जवाब

वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर के साथ अधिवक्ताओं वरुण ठाकुर, विनायक प्रसाद शाह, हनुमंत लोधी और रामकरण प्रजापति ने कोर्ट में ओबीसी समाज की ओर से पक्ष रखा।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे को “बेहद गंभीर” बताते हुए कहा कि यदि जनसंख्या का आधार आरक्षण का मापदंड है, तो ओबीसी वर्ग को उचित प्रतिनिधित्व क्यों नहीं दिया गया? कोर्ट ने मध्य प्रदेश शासन को नोटिस जारी करते हुए एक सप्ताह के भीतर विस्तृत जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।

यह मामला राज्य में ओबीसी आरक्षण (OBC RESERVATION) से जुड़ी लंबी कानूनी बहस को एक बार फिर नए मोड़ पर ले गया है। सुप्रीम कोर्ट की आगामी सुनवाई में यह स्पष्ट हो सकता है कि क्या राज्य सरकार को आरक्षण नीति में संशोधन करना पड़ेगा या मौजूदा व्यवस्था को संवैधानिक ठहराया जाएगा।

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