ओबीसी आरक्षण को लेकर मध्य प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पेश की गोपनीय रिपोर्ट

मध्य प्रदेश सरकार और OBC क्रीमी लेयर इस समय चर्चा में है। ओबीसी आरक्षण पर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक रिपोर्ट पेश की है। क्या है पूरा मामला...आइए जानते हैं।

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Sourabh Bhatnagar
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मध्य प्रदेश सरकार ने ओबीसी आरक्षण पर गोपनीय रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में पेश की है। एक अखबार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, रिपोर्ट में क्रीमी लेयर की पहचान आर्थिक आधार से हटाने की सिफारिश की गई है।

इसके अलावा राजनीति में आरक्षण की 50% सीमा हटाने का सुझाव भी दिया गया है। बता दें कि ओबीसी आरक्षण को लेकर एक मामला एससी में चल रहा है।

महू विश्वविद्यालय ने तैयार की रिपोर्ट

यह रिपोर्ट महू स्थित बीआर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय ने तैयार की थी। 2023 में ओबीसी समुदाय के 10 हजार 548 व्यक्तियों का सर्वे किया गया। सभी राज्यभर से चयनित थे।

सर्वे में सवाल-जवाब और गूगल फॉर्म के जरिए आंकड़े इकट्ठा किए गए थे। इस रिपोर्ट ने ओबीसी वर्ग की सामाजिक और शैक्षिक स्थिति को अच्छे से बताया है।

अभी आरक्षण का फायदा नहीं उठा पाता OBC वर्ग

रिपोर्ट के अनुसार, ओबीसी आरक्षण में क्रीमी लेयर की पहचान करने के लिए आर्थिक आधार को हटाना चाहिए। अभी, जिनकी सालाना आय ₹8 लाख से ज्यादा होती है, उन्हें क्रीमी लेयर माना जाता है। वे आरक्षण का फायदा नहीं उठा पाते।

रिपोर्ट कहती है कि इस व्यवस्था से ओबीसी समुदाय को सही तरीके से फायदा नहीं मिल रहा। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि आरक्षण का असल मकसद सिर्फ पैसे के आधार पर लाभ देना नहीं है। इसका मकसद सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन को दूर करना भी है।

ओबीसी आरक्षण से जुड़ी इस खबर को शॉर्ट में समझें

  • ओबीसी आरक्षण: क्रीमी लेयर का निर्धारण आय की बजाय सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन पर हो।
  • राजनीतिक आरक्षण: 50% आरक्षण की सीमा को हटाने की सिफारिश की गई है, क्योंकि चुनाव वोट पर आधारित होते हैं, न कि मेरिट पर।

  •  

    इंदिरा साहनी केस: इसमें सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन को राजनीतिक पिछड़ेपन से अलग करने की बात की गई।

  • ओबीसी वर्ग की स्थिति: ओबीसी वर्ग के सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए कदम उठाने की जरूरत है।

राजनीति में आरक्षण की 50% सीमा हटाने की सिफारिश

रिपोर्ट में एक और अहम सिफारिश की गई है। यह राजनीति में आरक्षण की 50% की सीमा को हटाने की बात करती है। रिपोर्ट के मुताबिक, राजनीति में आरक्षण का आधार वोट है, न कि मेरिट।

इसलिए, 50% की सीमा को हटाने पर सोचना चाहिए। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यह सीमा सिर्फ शिक्षा और नौकरी के क्षेत्रों में लागू होनी चाहिए, क्योंकि यहां आरक्षण का मकसद लोगों को समान मौके देना है।

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इंदिरा साहनी केस का हवाला

रिपोर्ट में इंदिरा साहनी केस ( Indira Sahani Case ) का भी जिक्र किया गया है। इसमें यह कहा गया था कि सामाजिक और आर्थिक पिछड़ापन राजनीति के पिछड़ेपन से अलग होता है।

इस रिपोर्ट में ओबीसी समुदाय की पिछड़ी स्थिति को और साफ बताया गया है। इसमें यह भी कहा गया है कि ओबीसी वर्ग ने खुद को क्यों सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा माना है। साथ ही, इसे सुधारने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं। इस पर भी बात कही गई हैं।

क्रीमी लेयर क्या है?

क्रीमी लेयर वे लोग होते हैं जो ओबीसी वर्ग में आते हैं, लेकिन बहुत समृद्ध और उच्च शिक्षित होते हैं। इसलिए, वे आरक्षण के लाभ के लिए योग्य नहीं होते। इसका मकसद यह है कि आरक्षण का फायदा उन लोगों तक पहुंचे, जो सच में गरीब और पिछड़े हैं, न कि उन तक जो पहले से ही संपन्न हैं। क्रीमी लेयर को पहचान कर सरकार ये सुनिश्चित करना चाहती है कि आरक्षण का लाभ उन तक पहुंचे जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है।

अभी, क्रीमी लेयर में शामिल होने के लिए परिवार की सालाना आय ₹8 लाख से ज्यादा होनी चाहिए। यह सीमा माता-पिता की कुल आय पर आधारित है, जिसमें वेतन, कृषि आय और अन्य आय शामिल हैं।

 हालांकि, माता-पिता के वेतन और कृषि आय को आय में नहीं जोड़ा जाता, लेकिन बाकी आय को जोड़ा जाता है। अगर माता-पिता सरकारी ग्रुप ए के पद पर हैं, तो उनके बच्चे क्रीमी लेयर में आते हैं, चाहे उनकी आय कुछ भी हो।

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