27 फीसदी ओबीसी आरक्षण केस हाईकोर्ट में फिर से मामला भेजने की उठी बात, अब कल होगी सुनवाई, शासन ने समय मांगा

मध्य प्रदेश में 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण मामले की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान शासन ने एक दिन का समय मांगा। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने 9 अक्टूबर को सुनवाई की तारीख तय करने की बात की।

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Sanjay Gupta
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मप्र की राजनीति के सबसे बड़े 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट की होने वाली अहम सुनवाई के दौरान पहले ही शासन ने एक दिन का समय मांग लिया। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इसे कल 9 अक्टूबर को सुना जाए तो बेहतर होगा। लेकिन इसी दौरान पांच मिनट तक विविध अधिवक्ताओं ने बात रखी और अहम मुद्दा उठाया। मेहता ने इसमें बार-बार अगले दिन (नौ अक्टूबर) की सुनवाई की बात रखी, जबकि अन्य पक्ष सुनवाई के लिए इसमें तैयार थे।

क्यों ना हाईकोर्ट में फिर भेजा जाए केस

इस मामले में यह बात सुप्रीम कोर्ट बेंच की ओर से ही उठी कि क्यों ना मुद्दे को फिर एमपी हाईकोर्ट भेजा जाए। बेंच ने कहा कि क्योंकि आरक्षण पूरी तरह से राज्य से जुड़ा मामला है, वहां की टोपोग्राफी क्या है, जनसंख्या क्या है, क्या स्थानीय मुद्दे हैं, यह इन सभी से लिंक है और इस पर राज्य हाईकोर्ट सुनवाई कर सकता है।

इस पर यह बात भी आई

वहीं यह बात भी अधिवक्ताओं ने इस मुद्दे पर रखी कि ट्रांसफर याचिकाएं हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में आ चुकी हैं। हाईकोर्ट ने इसमें अंतरिम आदेश दिए हुए हैं। इसलिए मामला यहां आया है। वहीं छत्तीसगढ़ में दी गई अंतरिम राहत की भी बात कही गई। इस पर यह पक्ष भी रखा गया कि वहां यह अंतरिम राहत इसलिए दी गई क्योंकि कुछ भर्ती प्रक्रिया चालू थी और वह पूरी होने तक के लिए ही राहत दी गई थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने मराठा मामला, बिहार मामला हो या राजस्थान का मामला हो वहां नहीं दिया है। यह भी कहा गया कि आज हर हाईकोर्ट में इस तरह की रिट पिटीशन लगी हुई है। इन सभी बातों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इसमें 9 अक्टूबर को सुनवाई की बात कही और सभी से कहा कि वह अपनी बात अब अगली सुनवाई में रखें।

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ओबीसी वेलफेयर के अधिवक्ताओं ने ये कहा

ओबीसी वेलफेयर कमेटी की ओर से अधिवक्ता वरूण ठाकुर ने कहा कि आज सुनवाई थी लेकिन मप्र सरकार ने फिर समय मांगा, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने आपत्ति ली और कहा कि फिर दिवाली छुट्टी आ जाएगी। हमारे पास अन्य अहम केस भी हैं, तो क्यों ना इसे आप हाईकोर्ट में ही ले जाएं, बार-बार आप समय मांग रहे हैं।

हम इसे अगले सप्ताह नहीं सुनेंगे, कल रखा जाएगा। अधिवक्ता रामेश्वर ठाकुर ने कहा कि फिर सरकार ने समय मांगा जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रूख अपनाया। यह भी कहा कि मप्र की भौगोलिक, जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए इस आरक्षण के कानून को जो एमपी सरकार द्वारा बनाया गया है। इसे हाईकोर्ट डिसाइड करे। ठाकुर ने कहा कि हाल ही में तेलंगाना मामले में भी यही कहा कि आरक्षण को लेकर स्टेट हाईकोर्ट डिसाइड करें।

सुप्रीम कोर्ट में यह हुई बात

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट इस मामले में सुनवाई करें और जो अंतरिम आर्डर हुए हैं उसे हम खारिज कर दें और हाईकोर्ट फिर इस मामले में विचार करे। इस पर अधिवक्ताओं ने कहा कि 90 अंतरिम आदेश पास हैं और ट्रांसफर याचिकाएं यहां सुप्रीम कोर्ट आ चुकी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम कह रहे हैं कि हाईकोर्ट में आप सभी जाएं और वहां फिर से इस मुद्दे पर विचार किया जाए।

अधिवक्ता ने कहा कि रिट पिटीशन हमने एक्ट और 27 फीसदी आरक्षण के खिलाफ लगाई और अंतरिम आर्डर हुए और फिर सुप्रीम कोर्ट में केस आया। हर राज्य में यह रिट पिटीशन लग रही है और हाईकोर्ट में है। अधिवक्ता ने कहा कि छत्तीसगढ़ में इसलिए अंतरिम राहत दी क्योंकि वहां कुछ भर्ती प्रोसेस में थी और वह पूरी हो जाएं। आरक्षण 50 फीसदी को क्रॉस कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कल इस पर सुनवाई करेंगे और प्रैक्टिकली तरीके से इसे देखेंगे। हर राज्य देख सकता है कि वहां स्थानीय मुद्दे क्या हैं, टोपोग्राफी क्या है, जनसंख्या क्या है।

अंतरिम आर्डर वेकेट हुआ तो क्या मिलेगा 27 फीसदी आरक्षण

सुप्रीम कोर्ट ने जो बात कही है कि यदि बेंच अंतरिम आर्डर वेकेट कर दे और हाईकोर्ट को फिर सुनवाई करने दे। जानकारों के अनुसार यदि यह अंतरिम आर्डर हटता है तो फिर मप्र में 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण ( 27 percent OBC reservation case) का रास्ता साफ हो सकता है क्योंकि हाईकोर्ट के आदेश से ही मप्र में 27 फीसदी आरक्षण पर रोक है। सरकार भी यही चाहती है कि कैसे भी करके अंतरिम राहत मिल जाए, जिससे वह केस में ओबीसी वर्ग को दिखा सके कि यह आरक्षण उन्होंने दिलाया है और 13 फीसदी पद भी अनहोल्ड करके तत्काल भर्ती की जा सके। इस पूरे मामले में अब 9 अक्टूबर अहम हो गया है कि सुप्रीम कोर्ट क्या हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश को हटाती है और हटाती है तो क्या तत्काल 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण लागू हो जाएगा। इन सवालों के जवाब सुप्रीम कोर्ट के लिखित आदेश से ही मिलेंगे।

हम नहीं जानते इसका क्या असर होगा- शासन

इस सुनवाई के दौरान जब यह बात चल रही थी तब सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हम नहीं चाहते हैं कि इस मामले का क्या असर होगा। इसलिए बेहतर है कि इसमें सुनवाई आगे बढ़ाई जाए। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस पर हम 9 अक्टूबर को प्रैक्टिकली रूप से केस को सुनेंगे।

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