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मध्य प्रदेश में 27% OBC आरक्षण के मुद्दे को लेकर राज्य सरकार ने एक नई टीम बनाई है। सरकार ने सीनियर एडवोकेट और डीएमके सांसद पी विल्सन (senior advocate P Wilson) को हटाकर अब सुप्रीम कोर्ट में सरकार का पक्ष रखने के लिए एक और टीम नियुक्त की है। पहले, विल्सन को सरकार की ओर से हर सुनवाई पर 5.5 लाख रुपए देने थे, क्योंकि वे OBC आरक्षण पर सरकार का पक्ष रख रहे थे।
मामले में द सूत्र के बड़े सवाल, जवाब दो सरकार
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अब सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में पेश होने के लिए एक और तगड़ी टीम बनाई गई है। इस टीम में शामिल हैं:
आर. वेंकटरमानी (अटॉर्नी जनरल)
तुषार मेहता (सॉलिसिटर जनरल)
केएम नटराज (एडिशनल सॉलिसिटर जनरल)
प्रशांत सिंह (एडवोकेट जनरल)
यह टीम अब इस महत्वपूर्ण मामले में सरकार का पक्ष सुप्रीम कोर्ट में रखेगी।
बड़े सवाल ये भी...
इस मामले के बाद मध्य प्रदेश सरकार से ओबीसी आरक्षण जैसे केस में एक बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है...
- क्या यह नियुक्ति सरकार की नीतिगत चूक का परिणाम है या किसी विशेष दबाव में लिया गया निर्णय?
- आखिर इतनी बड़ी चूक कैसे हो गई? एक एंटी-हिंदू पार्टी से जुड़े सांसद और वकील, विल्सन, को इस केस में शामिल कर बीजेपी सरकार ने खुद अपने लिए मुश्किलें क्यों बढ़ा लीं?
- जब यह मामला सीधे तौर पर ओबीसी हितों और हिंदू समाज की सामाजिक समानता से जुड़ा था, तब विल्सन की नियुक्ति के दौरान सरकार के जिम्मेदार अधिकारी और विधि विभाग ने इस पर ध्यान क्यों नहीं दिया?
- क्या सरकार ने बैकग्राउंड जांच किए बिना यह फैसला लिया, या फिर यह लापरवाही जानबूझकर की गई?
- क्या बीजेपी की मध्य प्रदेश सरकार ने ओबीसी और हिंदू समाज के भरोसे के साथ समझौता किया है, या यह सिर्फ एक ‘तकनीकी गलती’ बताकर मामला दबा दिया जाएगा?
वकील ने किया बड़ा खुलासा, बोले- विल्सन के नाम पर सीएम की थी सहमति
एडवोकेट धर्मेंद्र सिंह कुशवाहा ने कहा कि जब ओबीसी महासभा की बैठक हुई थी, तब पी. विल्सन के नाम पर खुद सीएम मोहन यादव ने सहमति दी थी और उस समय कोई विवाद नहीं हुआ था। ओबीसी महासभा ने इसलिए विल्सन के नाम को आगे बढ़ाया क्योंकि पी विल्सन आरक्षण मामलों के काफी अनुभवी वकील हैं। लेकिन 8 तारीख की पैरवी में इनको बुलाए बिना सरकार ने ऐसा कदम उठाया, जो सीधे तौर पर ओबीसी समुदाय के खिलाफ माना जा सकता है।
सरकार के फैसले पर पूरी भरोसा : लोधी
आरक्षण और ओबीसी मामलों (27 फीसदी OBC आरक्षण) के वरिष्ठ वकील रामेश्वर सिंह लोधी ने सरकार के इस फैसले पर कहा कि जिन चार वकीलों को ओबीसी आरक्षण के मामले में सरकार की ओर से अपना पक्ष रखने की जिम्मेदारी सौंपी गई है, वे अपने आप में पूरी तरह सक्षम हैं और देश के नामी वकील हैं। हमें सरकार के इस फैसले पर पूरा भरोसा है।
वहीं इस मामले को लेकर एडवोकेट प्रशांत रत्न ने कहा कि फिलहाल उन्हें कोई जानकारी नहीं है। आदेश में केवल संशोधन लिखा है, इसलिए मैं इस मामले में अभी कुछ कहने की स्थिति में नहीं हूं।
क्यों शुरू हुआ था टी. विल्सन को लेकर विवाद
डीएमके सांसद पी विल्सन से जुड़ी हालिया 'हिंदू विरोधी' टिप्पणी का विवाद हाल ही में एक शपथ पत्र के बाद सामने आया। इसमें मध्य प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी आरक्षण मामले की पैरवी के लिए विल्सन को नियुक्त किया था, जिसके बाद सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया हुई।
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विवाद का कारण
सोशल मीडिया पर आलोचना: आलोचकों ने विल्सन की नियुक्ति पर सवाल उठाया, क्योंकि उनकी पार्टी, डीएमके, अतीत में सनातन धर्म और हिंदू धर्म के बारे में विवादित टिप्पणियों के लिए जानी जाती है।
अभिषेक सिंह का आरोप: राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के प्रवक्ता अभिषेक सिंह ने एक्स पर मध्य प्रदेश सरकार के इस कदम की आलोचना की। उन्होंने आरोप लगाया कि डीएमके सनातन धर्म की तुलना डेंगू-मलेरिया से करती है, और एक हिंदू विरोधी वकील को ओबीसी आरक्षण के मामले में पैरवी के लिए नियुक्त करना विरोधाभासी है।
नेहा दास का सवाल: डॉ. नेहा दास ने भी एक्स पर एक नोटिस साझा किया, जिसमें विल्सन को प्रति सुनवाई ₹5.5 लाख का भुगतान करने की जानकारी थी। उन्होंने मध्य प्रदेश सरकार से पूछा कि सनातन विरोधी पार्टी के सदस्य को क्यों नियुक्त किया गया।
क्यों हैं लोग नाराज
डीएमके के सदस्य पहले भी सनातन धर्म को लेकर विवादित बयान दे चुके हैं, जैसे कि उदयनिधि स्टालिन की डेंगू और मलेरिया से तुलना वाली टिप्पणी।
पी. विल्सन ने खुद सीधे तौर पर कोई हिंदू विरोधी टिप्पणी नहीं की है, लेकिन उनकी पार्टी की विचारधारा और अतीत में दिए गए बयानों के कारण उनकी नियुक्ति पर सवाल उठाए गए।
कौन हैं डीएमके सांसद और सीनियर एडवोकेट पी विल्सन
- पूरा नाम: पुष्पनाथन विल्सन
- जन्म: 6 जून 1966, चेन्नई, तमिलनाडु
राजनीतिक करियर
- पी. विल्सन तमिलनाडु से राज्यसभा सांसद (DMK पार्टी) हैं।
- वे सितंबर 2019 में राज्यसभा के लिए निर्विरोध चुने गए और 2025 में पुनः निर्वाचित हुए।
- संसद में उन्होंने ग्रामीण विकास और पंचायती राज, महिला एवं बाल विकास, रक्षा, विधि व न्याय समेत कई समितियों में सदस्य के रूप में योगदान किया।
कानूनी करियर:
- 2009 में मद्रास हाई कोर्ट द्वारा 43 वर्ष की आयु में सीनियर एडवोकेट के रूप में नामित हुए।
- 2012-2014 के बीच वे भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (South India) रहे—यह पद पाने वाले वे सबसे कम उम्र के व्यक्ति थे।
- 2008-2011 में तमिलनाडु के अतिरिक्त महाधिवक्ता भी रहे।
कई महत्वपूर्ण जनहित याचिकाएं और संवैधानिक मुद्दों पर पैरवी की—जैसे अन्ना सेंटेनरी लाइब्रेरी का मामला, मल्टी-स्पेशलिटी हॉस्पिटल PIL, लैंड ग्रैबिंग कोर्ट्स पर चुनौती, बर्खास्त 13,000 कर्मचारी पुनर्नियुक्ति मामला, चुनाव आयोग में वेब कास्टिंग का निर्देश।
उन्हें वकील के तौर पर वर्ष 1989 में तमिलनाडु बार काउंसिल में नामांकित किया गया।
शिक्षा:
बी.एससी (लॉयोला कॉलेज, चेन्नई)
एल.एल.बी (मद्रास लॉ कॉलेज)
अन्य उल्लेखनीय बिंदु
- संसद में उनकी उपस्थिति दर 95% से भी अधिक है और वे 598 से अधिक चर्चाओं में हिस्सा ले चुके हैं।
- वे कई सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं के स्टैंडिंग काउंसिल रहे हैं।
- तमिलनाडु की राजनीति और सामाजिक मुद्दों पर हमेशा मुखर रहते हैं।