OBC को 27% आरक्षण में हाईकोर्ट के स्टे के साथ यह सबसे बड़ी कानूनी उलझन, मूल रूप से एक्ट ही चैलेंज

मध्य प्रदेश में 2019 से ओबीसी आरक्षण 14 से बढ़ाकर 27 फीसदी करने के बाद कानूनी विवाद जारी है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनवाई की तिथि 22 सितंबर तय की गई है। ओबीसी को 27% आरक्षण दिलाने के लिए राजनीतिक दल सक्रिय हैं ।

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Sanjay Gupta
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मध्यप्रदेश में साल 2019 से ओबीसी आरक्षण 14 से बढ़ाकर 27 फीसदी करने के बाद से ही कानूनी विवाद जारी है। आखिरकार सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद इसमें अंतिम फैसले की घड़ी आ चुकी है। सितंबर माह के 22 सितंबर से शुरू हो रहे सप्ताह में सुप्रीम कोर्ट इसकी नियमित सुनवाई करने जा रहा है।

इसी के चलते सभी राजनीतिक दल मिलकर ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण दिलाने की बात कह रहे हैं। उधर अब अनारक्षित वर्ग ने भी अपना संयुक्त मोर्चा बना लिया है और कानूनी लड़ाई में कूद गया है। परशुराम सेवा संगठन और करणी सेना प्रेस कांफ्रेंस कर चुके हैं और अब ओबीसी, एसटी-एसी संयुक्त मोर्चा 11 सितंबर को प्रेस कांफ्रेंस करने जा रहे हैं। 

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बात स्टे हटने की नहीं रही, यह सबसे बड़ा मुद्दा

अभी तक इस केस में यह बात आ रही थी कि इस मामले में  मप्र सरकार द्वारा पारित किए गए 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण एक्ट को किसी तरह से चैलेंज नहीं किया गया और जब यह चैलेंज नहीं है तो फिर इसे लागू क्यों नहीं किया जा रहा है। हाईकोर्ट के कुछ याचिकाओं में स्टे के चलते इस पूरे एक्ट को लागू करने से रोक दिया गया है।

इस मामले में द सूत्र द्वारा हाईकोर्ट में लगी और सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर हुई कई याचिकाओं की जानकारी निकाली गई। इसमें कम से कम दर्जन भर याचिकाओं में साफ तौर पर मप्र लोकसेवा (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए आरक्षण) संशोधन अधिनियम 2019 को चुनौती दी गई है। 

याचिकाओं में इस एक्ट को चुनौती देते हुए इसे संविधान के मौलिक अधिकार प्रावधान 14, 15, 16, 19 और 21 का उल्लंघन बताया गया है।  साथ ही 27 फीसदी आरक्षण को लेकर 14/8/2019 को पास हुए इस एक्ट को अल्ट्रा वायरस घोषित करने की मांग की गई है। 

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यह सारी याचिकाओं में एक्ट चैलेंज

याचिका क्रमांक 2927/22, 5901/19,  24919/21 , 3750/22, 3833/22, 6346/22, 23252/21, 24645/21,, 2928/22,  3937/2020,, 4203/2020, 5110/2020, 6202/2020, 7009/2020, 8378/2020, 8923/2020 व अन्य। 

विविध परीक्षाओं को लेकर एक्ट को किया चैलेंज

यह याचिकाएं किसी एक परीक्षा को लेकर नहीं है, बल्कि पीएससी और ईएसबी द्वारा मप्र द्वारा पारित एक्ट के अनुसार 27 फीसदी आरक्षण के तहत निकाली गई विविध भर्ती विज्ञापन को लेकर है। जैसे 2927/22 याचिका में राज्य सेवा परीक्षा 2019 परीक्षा में 27 फीसदी आरक्षण को चुनौती , 24919/21 में हाईस्कूल टीचर्स भर्ती को लेकर एक्ट को चुनौती,  3750/22 में साइंसटिक आफिसर पद भर्ती परीक्षा को लेकर आरक्षण को चुनौती, 6346/22 में राज्य वन सेवा राज्य सेवा परीक्षा 2020 को लेकर एक्ट को चैलेंज किया गया है। 

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एक्ट चैलेंज से क्यों है अधिक उलझन

बात केवल हाईकोर्ट द्वारा एक्ट को पारित किए जाने पर रोक से होती तो भी एक कम उलझन वाली समस्या होती और ओबीसी वर्ग के लिए भी 27 फीसदी आरक्षण को पाना थोड़ा कम मुश्किल होता। इसमें केवल हाईकोर्ट के स्टे हटने की बात होती। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर हुई कई याचिकाओं में मप्र विधानसभा में पारित एक्ट को संविधान के आधार पर चुनौती दी गई है।

 यानी इसका हल अब संविधान का दायरे में ही संभव है और इसके लिए पूर्व में इंदिरा साहनी केस में पास फैसला काफी अहम होगा। इसलिए इसमें ओबीसी वर्ग को राहत पाने के लिए इसी इंदिरा साहनी केस की काट निकालनी होगी। यह मुख्य तौर पर इसी बात से निकलेगी जब ओबीसी वेलफेयर कमेटी यह बता सकेगी कि मप्र में असाधारण स्थितियां है जिसके लिए इस 50 फीसदी आरक्षण सीमा को क्रास किया जा सकता है और 27 फीसदी को लागू किया जा सकता है। 

अब इस मामले में एक नई राजनीति ने करवट ली है। अब सामान्य वर्ग ने भी लड़ाई के लिए कमर कसी है। इसमें विविध समाजों को साथ लिया जा रहा है और साथ ही बड़े अधिवक्ताओं को सुप्रीम कोर्ट में उतारने की तैयारी है, जिससे किसी भी हाल में इंदिरा साहनी केस में लगी 50 फीसदी आरक्षण की सीमा को क्रास करने और 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण का फैसला नहीं हो। 

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MP की राजनीति अब अनारक्षित Vs ओबीसी की ओर 

मप्र में कुल मिलाकर अब अनारक्षित और ओबीसी वर्ग एक-दूसरे खिलाफ खड़े हो चुके हैं। ओबीसी वर्ग को राजनीतिक दलों और सरकार का साथ तो है लेकिन इसमें मप्र सरकार की सुस्ती और ढिलाई भी साफ दिखी है। हालत यह रहे कि सुप्रीम कोर्ट ही टिप्पणी करना पड़ी थी 6 साल से सरकार क्या सो रही थी और यह सारी उलझन उनके खुद के द्वारा पैदा की हुई है। 

अब जहां राजनीतिक दल ओबीसी के लिए एकजुट हुए तो वहीं अनारक्षित वर्ग ने भी एकजुट होना शुरू कर दिया और वह इंदिरा साहनी केस का हवाला दे रहे हैं। साथ ही गिना रहे हैं कि अनारक्षित कैटेगरी जनरल कैटेगरी नहीं है, इसमें कई पद मेरिट होल्डर आरक्षित वर्ग के उम्मीदवार लेकर जाते हैं। 

उधर इसके जवाब में ओबीसी वर्ग का कहना है कि अलग से ईडब्ल्यूएस आरक्षण मिला हुआ है। साथ ही इस आरक्षण से इंदिरा साहनी केस की 50 फीसदी आरक्षण की सीमा तो पहले ही टूट चुकी है और सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ में भी अंतरिम राहत देकर यह सीमा तोड़ी हुई है।  

छत्तीसगढ़ वाली दलील नहीं चली है. पहले मप्र सरकार और ओबीसी वेलफेयर कमेटी ने इसी आधार पर फौरी राहत मांगी थी कि उन्हें भी अंतरिम राहत देकर 27 फीसदी से भर्ती करने दी जाए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा अब बहुत हुआ इसका फैसला ही होगा अंतरिम राहत नहीं होगी। 

ओबीसी वर्ग इस आधार पर भी असाधारण स्थिति बता रहा है

उधर सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी वर्ग आबादी के आधार पर अपने हक की मांग कर रहा है। ओबीसी वर्ग का कहना है कि मप्र में 51 फीसदी आबादी ओबीसी की है और इनका सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व 13.66 फीसदी मात्र है। ऐसे में इस वर्ग को सामाजिक, आर्थिक पिछड़ेपन की वजह से आगे आने का मौका मिलना चाहिए और यह 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण बनता है। 

इसलिए इसे लागू करते हुए 13 फीसदी होल्ड पद हमे दिए जाएं। इन वर्ग का साफ कहना है कि वैसे ही इंदिरा साहनी केस की 50 फीसदी आरक्षण की दीवार ईडब्ल्यूएस को आरक्षण देकर तोड़ी जा चुकी है। इंदिरा साहनी केस में भी असाधारण स्थिति में और आंकडों के आधार पर इसे क्रास किया जा सकता है और मप्र में यह असाधारण स्थिति मौजूद है जिससे ओबीसी को आरक्षण दिया जा सके।

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