प्रमोशन में आरक्षण नियम 2025 की संवैधानिकता पर सवाल, हस्तक्षेपकर्ताओं ने याचिका के औचित्य पर उठाए सवाल

मध्य प्रदेश में प्रमोशन में आरक्षण नियम 2025 की संवैधानिकता पर सवाल उठाए गए हैं। याचिकाकर्ताओं ने सरकार पर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अनदेखी करने का आरोप लगाया है। हाईकोर्ट में सुनवाई जारी है।

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Neel Tiwari
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mp reservation in pramotion case

Photograph: (the sootr)

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JABALPUR. मध्य प्रदेश में प्रमोशन में आरक्षण नियम 2025 की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई 12 नवंबर को जबलपुर हाईकोर्ट में हुई। चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की बेंच ने याचिका पर सुनवाई की।

शुरुआत में हस्तक्षेपकर्ताओं ने याचिका के औचित्य पर सवाल उठाए। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में लंबित आरबी राय मामले का हवाला दिया और कहा कि जब इस पर सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई हो रही है, तो हाईकोर्ट को इसमें दखल नहीं देना चाहिए।

कोर्ट ने यह पूछा कि क्या सुप्रीम कोर्ट में SLP क्रमांक 1053/2025 के दौरान यह बताया गया है कि जबलपुर हाईकोर्ट में भी इस पर सुनवाई चल रही है। हस्तक्षेपकर्ताओं और महाधिवक्ता प्रशांत सिंह ने स्वीकार किया कि सुप्रीम कोर्ट को इस संबंध में कोई जानकारी नहीं दी गई। इसके बाद कोर्ट ने सुनवाई शुरू की, जिसमें सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सीएस. वैद्यनाथन वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए जुड़े। 

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सरकार पर नियमों की अनदेखी के आरोप

याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि मध्य प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को नजरअंदाज किया। उन्होंने एम. नागराज और जरनैल सिंह जैसे मामलों का हवाला दिया, जिनमें आरक्षण के लिए ठोस आंकड़े प्रस्तुत करना जरूरी था। सरकार ने "आरक्षित वर्ग का अपर्याप्त प्रतिनिधित्व" माने बिना ही प्रमोशन में आरक्षण नियम 2025 लागू कर दिया।

याचिकाकर्ताओं का कहना था कि संविधान के अनुच्छेद 14 और 16(1) समान अवसर की गारंटी देता है, और प्रमोशन में आरक्षण इसका उल्लंघन करता है। उन्होंने यह भी कहा कि आरक्षण का उद्देश्य केवल नियुक्ति में अवसर देना है, न कि पूरी सेवा अवधि में बार-बार लाभ देना।

उनका कहना था कि यदि चयन के बाद भी हर स्तर पर आरक्षण जारी रहेगा तो यह अनारक्षित वर्ग के साथ भेदभाव होगा। कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 13 नवंबर को तय की है। याचिकाकर्ता कल भी अपना पक्ष रखेंगे।

आरक्षण से जुड़े प्रमुख मुकदमे और टाइमलाइन...

1992:   इंदिरा साहनी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया-  सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 16(4) केवल नियुक्तियों में आरक्षण की अनुमति देता है, पदोन्नति में नहीं।

1995 :  77वां संविधान संशोधन अनुच्छेद 16(4A) -  सरकार ने संशोधन कर पदोन्नति में SC/ST को आरक्षण की अनुमति दी।

1996 :  अजीत सिंह बनाम पंजाब राज्य-   “कैच-अप नियम” लागू हुआ — पहले पदोन्नत हुए सामान्य वर्ग के अधिकारी वरिष्ठ रहेंगे।

2000 :  81वां संशोधन अनुच्छेद 16(4B)-  आरक्षण की 50% सीमा को पार करते हुए पिछली रिक्तियां “कैरी फॉरवर्ड” की जा सकती हैं।

2000 :  82वां संशोधन अनुच्छेद 335-  SC/ST उम्मीदवारों के लिए अर्हक अंकों में छूट की अनुमति दी गई।

2001 :  85वां संशोधन- परिणामी वरिष्ठता  SC/ST कर्मचारियों को पदोन्नति के बाद वरिष्ठता बनाए रखने का अधिकार दिया गया।

2006 :  एम. नागराज बनाम यूनियन ऑफ इंडिया कोर्ट ने कहा — प्रमोशन आरक्षण तभी वैध जब राज्य प्रतिनिधित्व की कमी, पिछड़ेपन और दक्षता तीनों साबित करे।

2018 :   जरनैल सिंह बनाम लक्ष्मी नारायण गुप्ता -  “क्रीमी लेयर” का सिद्धांत SC/ST पर भी लागू किया गया।

2019 :   बीके. पवित्रा बनाम भारत संघ (II)-  प्रमोशन में आरक्षण नीति बरकरार, बशर्ते राज्य पर्याप्त आंकड़े पेश करे। 

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अगली सुनवाई 13 नवंबर को

कोर्ट ने प्रमोशन में आरक्षण का मामला की अगली सुनवाई 13 नवंबर को तय की है। इस दिन याचिकाकर्ता फिर से अपनी दलीलें प्रस्तुत करेंगे और सरकार को इस मुद्दे पर अपना पक्ष रखना होगा।

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