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Photograph: (The Sootr)
Jabalpur. मध्य प्रदेश में लंबे समय से अटके हुए प्रमोशन में आरक्षण के मामले में आज, 28 अक्टूबर को जबलपुर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। यह सुनवाई चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की डिविजनल बेंच में की गई।
सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सी.एस. वैद्यनाथन ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए और महाधिवक्ता प्रशांत सिंह ने कोर्ट में उपस्थित होकर पक्ष रखा। इस दौरान सरकार ने सील बंद लिफाफे में विभागवार ऑडिट रिपोर्ट (आरक्षित वर्ग के प्रतिनिधित्व का डेटा) पेश की।
कोर्ट ने गणना की पद्धति पर जताई आपत्ति
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सरकार के जरिए प्रस्तुत आंकड़ों की गणना पर गंभीर सवाल उठाए। बेंच ने एक विभाग का उदाहरण देते हुए कहा कि यदि किसी विभाग में कुल 154 पद हैं और अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए 27 सीटें आरक्षित हैं, तो यह पहले देखा जाना चाहिए कि उस विभाग में पहले से कितने एसटी कर्मचारी कार्यरत हैं।
यदि 7 कर्मचारी पहले से कार्यरत हैं, तो 27 सीटों में से इन 7 को घटाकर गणना करनी होगी। अन्यथा आरक्षण का अनुपात असंतुलित हो जाएगा। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि सरकार को अपने सर्वे और ऑडिट में सही गणना फार्मूले का पालन करना होगा। इसके लिए संबंधित समिति को निर्देशित किया गया है।
कोर्ट ने मांगा कंसोलिडेटेड चार्ट
बेंच ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह सभी विभागों का एकीकृत (कंसोलिडेटेड) चार्ट तैयार कर कोर्ट में पेश करे। इसमें यह दर्शाया जाए कि प्रत्येक विभाग में आरक्षित वर्ग का वर्तमान प्रतिनिधित्व कितना है। साथ ही कहा गया कि यह कार्य केवल आंकड़ों का संग्रह नहीं, बल्कि सही नियमों पर आधारित गणना होनी चाहिए।
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याचिकाकर्ता की ओर से दिया गया इस मामले का हवाला
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अमोल श्रीवास्तव ने सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार निर्णय का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने फैसले में यह स्पष्ट किया था कि प्रमोशन में आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए।
नौकरी में नियुक्ति के समय आरक्षण मिलना एक बात है, लेकिन प्रमोशन में आरक्षण देना समान अवसर के अधिकार (अनुच्छेद 16) का उल्लंघन करता है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार ने नियम 5 के तहत विभागीय ऑडिट और प्रतिनिधित्व की गणना पूरी किए बिना नियम 6 के तहत आरक्षण प्रतिशत तय कर दिया, जो नियमों और संविधान दोनों के विपरीत है।
सरकार ने मांगा समय, अगली सुनवाई 12 नवंबर को
राज्य की ओर से महाधिवक्ता प्रशांत सिंह ने कोर्ट से उत्तर प्रस्तुत करने के लिए समय मांगा। कोर्ट ने इस पर सहमति जताते हुए अगली सुनवाई 12 नवंबर के लिए तय की है। उस दिन सबसे पहले याचिकाकर्ता अपनी अंतिम बहस पूरी करेंगे। इसके बाद ओबीसी वर्ग की ओर से हस्तक्षेप याचिकाकर्ता अधिवक्ताओं को अपना पक्ष रखने का अवसर मिलेगा।
पिछली सुनवाई में भी नहीं हटा था स्टे
पिछली सुनवाई (28 सितंबर) में भी सरकार ने प्रमोशन से स्टे हटाने की मांग की थी, लेकिन कोर्ट ने यह कहते हुए मना कर दिया था कि पहले आरक्षित वर्ग का प्रतिनिधित्व स्पष्ट रूप से ऑडिट के माध्यम से सामने आना चाहिए।
तब कोर्ट ने कहा था कि जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि विभागों में आरक्षित वर्ग का पर्याप्त प्रतिनिधित्व है, तब तक प्रमोशन लागू नहीं किए जा सकते।
हाईकोर्ट की आज की सुनवाई से यह साफ हो गया है कि प्रमोशन में आरक्षण का रास्ता फिलहाल अभी और लंबा है। सरकार को न केवल अपने सर्वे की प्रक्रिया दुरुस्त करनी होगी, बल्कि संविधान और सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के अनुरूप सटीक गणना प्रस्तुत करनी होगी।
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