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मध्य प्रदेश में प्रमोशन का इंतजार कर रहे कर्मचारियों को अभी और इंतजार करना होगा। जबलपुर हाईकोर्ट में 16 अक्टूबर को मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ताओं की लोकस पर भी सवाल उठाए गए।
वहीं सरकार की ओर से आरक्षित वर्ग के प्रतिनिधित्व को लेकर किया जा रहे ऑडिट के हवाले से स्टे हटाने की भी मांग की गई।
हालांकि, कोर्ट ने किसी मांग को नहीं माना है और यह साफ कर दिया है कि पहले वह ऑडिट किया जाना जरूरी है जिससे यह सामने आ सके कि आरक्षित वर्ग का प्रतिनिधित्व कितना है। बता दें कि पहले सर्वे से तय होगा आरक्षित वर्ग का प्रतिनिधित्व और बाद में तय होगा आरक्षण।
आरक्षित वर्ग के अधिवक्ताओं ने किया हस्तक्षेप
आरक्षित वर्ग की ओर से पेश अधिवक्ताओं ने कोर्ट में आवेदन देते हुए याचिकाकर्ताओं के उद्देश्य पर सवाल खड़ा किया। उन्होंने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता किसी भी तरह से इन आरक्षण नियमों से प्रभावित नहीं हो रहे हैं। इसलिए यह याचिका सुनवाई योग्य ही नहीं है।
हालांकि, कोर्ट ने उदाहरण देते हुए कहा कि यदि अभी अनारक्षित वर्ग को 60% सीटें मिल रही हैं और आरक्षण बढ़ाने या लागू करने पर उनकी सीटें 5% भी घटती हैं, तो वो प्रभावित होंगे ही। कोर्ट ने इस हस्तक्षेप को मंजूर नहीं किया।
सरकार की ओर से पेश हुए वैद्यनाथन और महाधिवक्ता प्रशांत सिंह
मध्य प्रदेश सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सी वैद्यनाथन और महाधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि आरक्षित वर्ग के प्रतिनिधित्व पर ऑडिट चल रहा है, जो लगभग पूरा हो चुका है।
उन्होंने बताया कि 55 में से 30 विभागों का ऑडिट पूरा हो चुका है। साथ ही, उन्होंने प्रमोशन पर लगी रोक हटाने की भी मांग की।
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पहले पूरी करो ऑडिट - HC
जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की डिविजनल बेंच ने सरकार को यह साफ किया कि आप पहले चल रहे ऑडिट को पूरा करें और या फिर उसका डेटा दें।
कोर्ट ने कहा कि यह ऑडिट आज शाम (16 अक्टूबर) तक तो पूरा नहीं होने वाला। एमपी हाईकोर्ट ने सरकार को यह भी छूट दी है कि यदि वह डेटा सार्वजनिक नहीं करना चाहते तो वह सील बंद लिफाफे में भी पेश कर सकते हैं।
बिना प्रतिनिधित्व जाने आरक्षण तय करने पर उठा सवाल
याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता ने कोर्ट को यह बताया कि सुप्रीम कोर्ट के पिछले आदेशों के बाद भी सरकार ने पहले तो एक नया नियम बना दिया। DPC के लिए बनाए गए इस नियम में नियम पांच यह साफ कहता है कि विभाग में आरक्षित वर्ग के प्रतिनिधित्व के लिए सर्वे या ऑडिट करना होगा। लेकिन बिना किसी सर्वे और ऑडिट के यह तय कर दिया गया कि ST कैटिगरी को 16% और SC कैटिगरी को 20% आरक्षण दिया जाएगा।
कोर्ट ने भी इस बात को माना कि बिना नियम पांच को पूरा किए नियम 6 पर जाना सही नहीं है। एमपी सरकार की ओर से कोर्ट में तर्क दिया गया कि नियम 6 को तो याचिका में चैलेंज ही नहीं किया गया है। कोर्ट ने कहा कि जब नियम पांच पूरा नहीं किया गया तो 6 तक आने का सवाल ही नहीं उठता।
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हम जल्द करना चाहते हैं सुनवाई
आज हो रही सुनवाई की शुरुआत में ही सरकार की ओर से कई याचिकाओं का हवाला देते हुए यह कहा गया कि ग्रेड एक और ग्रेड 2 के बहुत से अधिकारी प्रमोशन से वंचित हैं। ऑडिट की प्रक्रिया भी लगभग पूरी हो रही है।
इस दौरान इस मामले में मेरिट पर बहस करने के लिए शासकीय अधिवक्ता तैयार नजर नहीं आए तब कोर्ट ने कहा कि हम इस मामले की जल्द से जल्द सुनवाई करना चाहते हैं। उसके बाद मामले (मध्य प्रदेश में प्रमोशन में आरक्षण) पर पूरी बहस हुई।
आरक्षण के फार्मूले पर हुई बहस
आरक्षण नियमों के नियम 6 में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का आरक्षण तय करने के नियम 6 के अंदर जो फार्मूला है वह इस प्रकार है:
ST - 20 X Y%
SC - 20 X X%
यहां X और Y इस वर्ग का विभाग में प्रतिनिधित्व है। यहां सवाल यह उठा कि जब नियम पांच के तहत प्रतिनिधित्व वही तय नहीं किया गया है तो नियम 6 के तहत प्रतिशत तय कैसे किया जा सकता है।
28 नवंबर को होगी मामले की अगली सुनवाई
याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता अमोल श्रीवास्तव ने सुप्रीम कोर्ट के सभी मामलों से लेकर पूरे तथ्य कोर्ट के सामने रखें।
करीब दो घंटे चली सुनवाई के बाद समय की कमी के कारण अदालत ने अगली सुनवाई 28 नवंबर को तय की है।
कोर्ट ने सरकार को साफ कहा है कि जब तक विभाग में आरक्षित वर्ग का प्रतिनिधित्व जांचकर यह साबित नहीं हो जाता कि वह पर्याप्त है, तब तक प्रमोशन नहीं किए जाएंगे। वहीं यह नियम भी लागू नहीं किया जा सकेगा।