हमारा शिक्षक ऐप पर जबलपुर DEO ने दी सफाई, शिक्षिका ने उठाया प्राइवेसी का सवाल

जबलपुर में सरकारी शिक्षकों की उपस्थिति के लिए शुरू 'हमारा शिक्षक' ई-अटेंडेंस ऐप पर विवाद है। एक शिक्षिका ने निजी फोन में ऐप डालने से मना किया। DEO ने इसे अनुशासनहीनता बताया, जबकि कुछ लोग निजता का हनन मान रहे हैं।

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Neel Tiwari
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MP E-attandance app essue

Photograph: (the sootr)

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JABALPUR. सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की उपस्थिति दर्ज करने के लिए शुरू किए गए ‘हमारा शिक्षक’ ई-अटेंडेंस ऐप को लेकर जबलपुर में विवाद गहराता जा रहा है। एक शिक्षिका द्वारा निजी मोबाइल में ऐप इंस्टॉल करने से इनकार करने के बाद अब जिला शिक्षा अधिकारी (DEO) का भी पक्ष सामने आया है।

मामला अब निजता बनाम अनुशासन की बहस में बदल गया है। एक पक्ष जहां इसे निजता का हनन बता रहा है। वहीं, दूसरा पक्ष आरोपों को अटेंडेंस लगाने से बचने का बहाना मान रहा है।

निजी मोबाइल पर नहीं दूंगी सरकारी कंट्रोल - ज्योति पांडे

सरकारी स्कूल की शिक्षिका ज्योति पांडे ने अपने प्राचार्य को दिए जवाब में लिखा कि वे अपने निजी मोबाइल फोन में ई-अटेंडेंस ऐप डाउनलोड नहीं कर सकतीं क्योंकि फोन में उनकी निजी जानकारी, बैंक विवरण, फोटो और लोकेशन डेटा मौजूद है।

उनका कहना है कि बिना डेटा सुरक्षा और क्षतिपूर्ति के आश्वासन के किसी थर्ड पार्टी ऐप को फोन की एक्सेस देना मेरे मौलिक अधिकार - निजता - का उल्लंघन है। उन्होंने यह भी बताया कि कभी-कभी वे अपना फोन बेटी की पढ़ाई के लिए घर पर छोड़ देती हैं, इसलिए यह व्यवस्था व्यावहारिक नहीं है।

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शिक्षक संघ का भी मिला समर्थन

आजाद अध्यापक संघ प्रदेशाध्यक्ष भरत पटेल ने शिक्षिका का समर्थन करते हुए कहा कि ऐप के जरिए डेटा चोरी और साइबर फ्रॉड की शिकायतें पहले भी आ चुकी हैं। उन्होंने कहा कि शिक्षकों से निजी मोबाइल में ऐप डाउनलोड करवाना गलत है। अगर सरकार को निगरानी ही करनी है, तो इसके लिए अलग टैब या स्मार्टफोन उपलब्ध कराए जाएं।

ऐप अनिवार्य, पर टैब खरीदने पर मिलते हैं 10 हजार रुपए

जिला शिक्षा अधिकारी घनश्याम सोनी ने बताया कि मध्यप्रदेश शासन ने शिक्षकों को टैब खरीदने के निर्देश दिए हैं, और जो शिक्षक टैब लेकर ऐप का उपयोग कर रहे हैं, उन्हें 10 हजार रुपए का भुगतान किया जा रहा है।

DEO ने कहा कि मैं खुद भी इसी ऐप से अपनी अटेंडेंस लगाता हूं। यह लोकेशन आधारित प्रणाली है, जो शिक्षक की उपस्थिति को सटीक दिखाती है। जब तक व्यक्ति आउट नहीं होता, उसकी लोकेशन ट्रैक होती रहती है।

हालांकि, उन्होंने इतने दिन बीत जाने के बाद भी कहा है कि उन्हें शिक्षिका के पत्र की जानकारी अब तक नहीं है। साथ ही उन्होंने शिक्षिका के पत्र को वायरल करने को विभागीय नियमों के खिलाफ भी बताया।

हाईकोर्ट में चल रहा है मामला

बता दें कि मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में भी इस ई-अटेंडेंस एप को लेकर एक याचिका दायर की गई है। हालांकि इस याचिका में निजी मोबाइल में ऐप डाउनलोड करने जैसे मुद्दे का उल्लेख नहीं है। जबलपुर हाईकोर्ट की याचिका पर 30 अक्टूबर को सुनवाई है। जिसमें निजता से जुड़ा कोई आरोप नहीं है। याचिका में कहा गया है कि शिक्षकों को ऐप इस्तेमाल करने की कोई ट्रेनिंग नहीं दी गई, जिससे तकनीकी त्रुटियों के कारण कई लोगों की उपस्थिति गलत दर्ज हो रही है।

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शिक्षकों के भीतर असंतोष

कुछ शिक्षकों का कहना है कि विभाग में कामकाज ठीक चल रहा था। साथ ही शासकीय स्कूलों के रिजल्ट भी बेहतर हैं। अब इस ऐप के जरिए अनावश्यक दबाव बनाया जा रहा है।

दूसरी तरफ, विभागीय सूत्रों का तर्क है कि पहले कई शिक्षक घर बैठे ही उपस्थिति दर्ज कर लेते थे। वहीं, अब लोकेशन ट्रैकिंग फीचर आने के बाद ऐसा संभव नहीं रहा, जिससे कुछ लोगों को परेशानी हो रही है।

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