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Photograph: (THESOOTR)
मध्य प्रदेश में राजस्व विभाग के अफसरों ने सरकार के एक नए फैसले का विरोध शुरू कर दिया है। ये विरोध कोर्ट से जुड़े काम और दफ्तर के दूसरे कामों को अलग-अलग करने की योजना को लेकर है।
मध्य प्रदेश राजस्व अधिकारी संघ ( कनिष्ठ प्रशासनिक सेवा ) का कहना है कि इस फैसले से न केवल अफसरों का काम उलझेगा, बल्कि आम जनता और खासकर किसानों को भी परेशान होना पड़ेगा।
क्या है मामला?
सरकार ने हाल ही में एक बैठक के जरिए ये निर्देश दिए कि अब राजस्व अधिकारियों के कोर्ट (न्यायालयीन) और बाकी दफ्तर के काम (गैर-न्यायालयीन) अलग-अलग होंगे। इसके बाद प्रमुख राजस्व आयुक्त ने जिलों से इस योजना के तहत अफसरों के नाम मांग लिए और कई जिलों में इसके आदेश भी जारी हो गए। लेकिन राजस्व अधिकारियों ने इस पर कड़ा ऐतराज जताया है।
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बिना प्लानिंग लिया गया फैसला
अधिकारियों का कहना है कि ये फैसला बिना किसी प्लानिंग, बिना किसी ठोस वजह, और बिना कानून में बदलाव के लिया गया है। क्योंकि यह फैसला लेने के लिए कोई भी समिति नहीं बनाई गई, न ही कोई स्टडी की गई कि इससे काम में क्या सुधार होगा और न ही ये बताया गया कि किस आधार पर किस जिले में कितने अफसर तय किए गए हैं।
अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर लिया फैसला
राजस्व अधिकारियों ने कहा कि जिला कलेक्टर कोर्ट से जुड़े कामों के लिए कार्यपालिक मजिस्ट्रेट की नियुक्ति कर रहे हैं, जबकि यह अधिकार सिर्फ राज्य सरकार के पास होता है। कानून के मुताबिक, मजिस्ट्रेट की नियुक्ति तभी हो सकती है जब उनके काम करने के लिए कोर्ट, स्टाफ और संसाधन तय हों। लेकिन अभी तक न जगह तय है, न स्टाफ और न ही कोई सुविधा।
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‘बिना बातचीत, सीधा आदेश’, अफसरों में नाराजगी
राजस्व अधिकारी संगठन ने कहा कि सरकार ने इस फैसले से पहले उनसे कोई बातचीत तक नहीं की। जबकि नियमों के मुताबिक, अगर किसी विभाग से जुड़े लोगों पर कोई बड़ा असर पड़ने वाला फैसला हो, तो पहले उनसे चर्चा जरूरी होती है।
फैसले से कोर्ट की संख्या घटेगी, किसानों को नुकसान
इस फैसले के तहत तहसीलों में चल रहे कई राजस्व कोर्ट बंद हो सकते हैं, जिससे आम लोग, खासकर किसान वर्ग को कोर्ट के चक्कर ज्यादा लगाने पड़ सकते हैं। संगठन का कहना है कि जरूरत तो यह थी कि पहले से चल रहे कोर्ट को बेहतर बनाया जाए। वहां स्टाफ, कंप्यूटर, ऑपरेटर और तामीलकर्ता दिए जाएं, लेकिन उल्टा कोर्ट ही कम किए जा रहे हैं।
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संगठन ने सरकार को सुझाया रास्ता
राजस्व अधिकारियों ने सरकार से कहा है कि अगर वो ऐसा कोई बदलाव लाना चाहती है, तो पहले एक-दो जिलों में पायलट प्रोजेक्ट शुरू करें। जैसे पुलिस कमिश्नर सिस्टम में किया गया था। फिर उसके नतीजे देखकर बाकी जगह लागू करें। अभी जो आदेश दिए गए हैं, वो न तो व्यावहारिक हैं और न ही कानूनी रूप से सही।
21 जुलाई को काम बंद की चेतावनी
संगठन ने साफ कहा है कि अगर सरकार ने ये फैसला वापस नहीं लिया, तो 21 जुलाई को सभी अधिकारी अपना काम रोककर जिला मुख्यालयों में विरोध प्रदर्शन करेंगे। आगे क्या कदम उठाए जाएंगे, इसका फैसला वहीं लिया जाएगा।
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अब सरकार के सामने चुनौती
अब देखने वाली बात ये होगी कि मध्यप्रदेश सरकार इस विरोध को कितनी गंभीरता से लेती है। क्या अफसरों की बात सुनी जाएगी या टकराव और बढ़ेगा? लेकिन इतना तो तय है कि अगर विवाद सुलझा नहीं, तो इसका असर सीधे जनता की सेवा और कामकाज पर पड़ेगा।
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