अब हाईकोर्ट की निगरानी में होगी सहारा की 310 एकड़ जमीन की सौदेबाजी की जांच

भोपाल, जबलपुर और कटनी में सहारा की 310 एकड़ जमीन औने-पौने दामों में बेची गई। मामले में EOW की लेटलतीफी वाली जांच के चलते मामला अब हाईकोर्ट तक पहुंच गया।

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Rohit Sahu
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मध्यप्रदेश में सहारा समूह की करीब 310 एकड़ बेशकीमती जमीन के कथित घोटाले की जांच अब मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की निगरानी में होगी। शिकायतकर्ता आशुतोष मनु दीक्षित की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने आर्थिक अपराध शाखा (EOW) से केस डायरी और अब तक की कार्रवाई की विस्तृत रिपोर्ट शपथ-पत्र के साथ मांगी है। अगली सुनवाई 28 जुलाई को तय की गई है।

जनवरी से जांच में नहीं निकला ठोस नतीजा

जनवरी 2025 में शिकायत दर्ज होने के बाद ईओडब्ल्यू ने मामले की जांच शुरू की थी, लेकिन ठोस निष्कर्ष न निकलने पर याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इस बीच प्रवर्तन निदेशालय (ED) भी मनी लॉन्ड्रिंग के ऐंगल से जांच में जुड़ गया है। ईडी ने सहारा समूह की शीर्ष प्रबंधन टीम के सदस्य अनिल अब्राहम सहित दो लोगों को गिरफ्तार किया है। ईओडब्ल्यू भी अब्राहम से पहले पूछताछ कर चुकी है।

जमीन सौदे में सेबी के नियमों की अनदेखी

सहारा समूह ने भोपाल, जबलपुर और कटनी में 310 एकड़ जमीन बेची थी। बाजार मूल्य के अनुसार इनकी कीमत लगभग 1000 करोड़ रुपए आँकी गई, लेकिन यह सौदे केवल 90 करोड़ में निपटा दिए गए।

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार, बिक्री से प्राप्त राशि को सेबी-सहारा संयुक्त खाते में जमा करना अनिवार्य था। मगर इन सौदों की न तो सेबी को जानकारी दी गई और न ही कोई रकम वहां जमा कराई गई।

गुपचुप तरीके से हुई करोड़ों की संपत्तियों की बिक्री

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, भोपाल, सागर और देवास में कुल 307 एकड़ जमीन के सौदे हुए, जिनकी कुल कीमत लगभग 1,500 करोड़ रुपए आंकी गई। यह वही संपत्ति थी, जो सहारा सिटी प्रोजेक्ट के तहत निवेशकों के पैसों से खरीदी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में आदेश दिया था कि इन संपत्तियों को बेचकर निवेशकों को पैसा लौटाया जाए। लेकिन इन जमीनों की बिक्री नियमों को ताक पर रखकर की गई।

क्या है सहारा की जमीनों का घोटाला?

15 जनवरी 2025 को समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. मनोज यादव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बड़ा आरोप लगाया। उन्होंने दावा किया कि भाजपा विधायक संजय पाठक ने भोपाल, जबलपुर और कटनी की जमीनें औने-पौने दामों में खरीदीं। यादव ने कहा कि करीब 1000 करोड़ की जमीन मात्र 90 करोड़ में खरीदी गई और इससे निवेशकों को नुकसान पहुंचा।

जांच की धीमी रफ्तार पर उठे सवाल

हाईकोर्ट द्वारा की गई कार्रवाई से यह स्पष्ट है कि जांच एजेंसियों की रफ्तार और पारदर्शिता पर संदेह है। सहारा के निवेशकों की राशि को लेकर सरकार की जवाबदेही तय होना अभी बाकी है। अगर कोर्ट की निगरानी में निष्पक्ष जांच हुई, तो बड़े नामों पर गाज गिर सकती है।

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