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Photograph: (THESOOTR)
BHOPAL. एमपी टाइगर रिजर्व और राष्ट्रीय उद्यानों के लिए अब जोनल मास्टर प्लान तैयार किया जाएगा। इसका उद्देश्य इको सेंसिटिव जोन में विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाना है। इस पूरी प्रक्रिया की निगरानी के लिए एक नियामक प्राधिकरण और मॉनिटरिंग समिति गठित की जाएगी।
इको सेंसिटिव जोन में क्या बदलेगा
नए मास्टर प्लान के तहत स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को सुरक्षित रखते हुए जिम्मेदार विकास को बढ़ावा दिया जाएगा। वर्षा जल संचयन, देशी प्रजातियों के पौधों का रोपण और वन्यजीव सुरक्षा के लिए अलग मार्ग विकसित करने के निर्देश दिए गए हैं। प्रदूषण रोकने के लिए भी सख्त नियम लागू होंगे।
1 किमी में नए होटल-रिसॉर्ट पर रोक
इको सेंसिटिव जोन (eco sensitive zone) की सीमा से 1 किलोमीटर के भीतर किसी भी नए होटल, रिसॉर्ट या व्यावसायिक निर्माण की अनुमति नहीं होगी। हालांकि, पहले से संचालित होटलों और रिसॉर्ट्स के नवीनीकरण और पुनर्निर्माण की छूट दी जाएगी। इससे पर्यटन और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश है।
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ढलानों और पहाड़ी इलाकों का संरक्षण
20 डिग्री से अधिक ढलान वाले क्षेत्रों में केवल सीमित गतिविधियों की अनुमति रहेगी। यहां उद्योग, होम-स्टे, नए व्यावसायिक उपक्रम और होटल-रिसॉर्ट पर पूरी तरह प्रतिबंध रहेगा। हालांकि, स्थानीय निवासी अपनी जमीन पर आवासीय निर्माण कर सकेंगे।
नदियों और तालाबों के पास बफर जोन
नदियों और बड़े जलाशयों के आसपास बफर जोन तय किए गए हैं। इन क्षेत्रों में केवल संरक्षण गतिविधियां, कृषि और उससे जुड़ी परंपरागत गतिविधियों की अनुमति होगी। बड़ी नदियों और तालाबों के एफएल/एफआरएल से न्यूनतम 50 मीटर और छोटे जल निकायों से कम से कम 15 मीटर की दूरी जरूरी होगी।
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टाइगर रिजर्व में क्या-क्या होगा अनुमति
बाघ गलियारों से जुड़े राष्ट्रीय दिशानिर्देशों के अनुसार, आबादी वाले क्षेत्रों और 100 मीटर बफर के भीतर आवासीय निर्माण की अनुमति होगी। गैर-आबादी क्षेत्रों में 0.1 एफएआर की सीमा के साथ आवासीय निर्माण संभव होगा। सड़कों के निर्माण और चौड़ीकरण को भी मंजूरी मिलेगी, लेकिन नए व्यावसायिक निर्माण पूरी तरह प्रतिबंधित रहेंगे।
स्थानीय आजीविका को मिलेगा बढ़ावा
मधुमक्खी पालन, मछली पालन, रेशम उत्पादन और पशुपालन जैसी आजीविका गतिविधियों को सशर्त अनुमति दी जाएगी। वहीं संरक्षित क्षेत्र से 1 किलोमीटर के भीतर और पहाड़ी चोटियों पर स्थित मंदिरों में केवल मौजूदा ढांचे के अनुरूप ही विकास हो सकेगा।
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हर 2 किलोमीटर पर लगेंगे चेतावनी संकेत
संरक्षित क्षेत्रों में पशुओं की आवाजाही को देखते हुए सड़कों के किनारे हर 2 किलोमीटर पर साइनेज लगाए जाएंगे। पशु क्रॉसिंग क्षेत्रों में विशेष चेतावनी संकेत होंगे। कृषि क्षेत्रों में प्रमुख सड़कों पर 5 किलोमीटर के अंतराल पर संकेत लगाने का प्रस्ताव है।
वन्यजीवों के लिए अंडरपास और सुरंग
वन्यजीव दुर्घटनाएं रोकने के लिए स्पीड ब्रेकर, हंप और रंबल स्ट्रिप्स लगाए जाएंगे। जानवरों के सुरक्षित आवागमन के लिए अंडरपास और क्रॉसिंग स्ट्रक्चर बनाए जाएंगे। सड़कों के किनारे 100 से 200 मीटर की दूरी पर घने वृक्ष लगाने के निर्देश भी दिए गए हैं।
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अब इलेक्ट्रिक वाहनों से होगी सफारी
पीसीसीएफ वाइल्डलाइफ शुभरंजन सेन के अनुसार, प्रदेश के अधिकांश अभयारण्यों का इको सेंसिटिव जोनल मास्टर प्लान तैयार हो चुका है। सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार, मास्टर प्लान न होने पर 10 किलोमीटर के दायरे में निर्माण पर रोक लग जाती है। जंगल में कार्बन उत्सर्जन और ध्वनि प्रदूषण रोकने के लिए सफारी में केवल इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग किया जाएगा।
अवैध शिकार पर सख्त निगरानी
वन क्षेत्रों में वर्षा जल संचयन के लिए छोटे तालाब और चेक डैम बनाए जाएंगे। मिट्टी कटाव रोकने के लिए बबूल और ल्यूकेना जैसे पौधे लगाए जाएंगे। अवैध शिकार रोकने के लिए गश्त बढ़ेगी और सीसीटीवी, थर्मल कैमरे व ड्रोन के जरिए जंगल की निगरानी की जाएगी।
11 हजार वर्ग किमी से अधिक संरक्षित क्षेत्र
मध्य प्रदेश में वर्तमान में 9 टाइगर रिजर्व हैं। प्रदेश के वन्यजीव संरक्षित क्षेत्रों का कुल क्षेत्रफल 11,198 वर्ग किलोमीटर से अधिक है। यहां 11 राष्ट्रीय उद्यान और 24 वन्यप्राणी अभयारण्य हैं। हाल के वर्षों में वीरांगना दुर्गावती, रातापानी और माधव नेशनल पार्क को भी टाइगर रिजर्व का दर्जा मिला है। इन सभी क्षेत्रों के लिए इको सेंसिटिव जोनल मास्टर प्लान तैयार किया जा रहा है।
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