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भोपाल।
विधानसभा को लोकतंत्र का मंदिर कहा जाता है, लेकिन जब उसी मंदिर में सवालों की आत्मा ही बदल दी जाए, तो विधायकों की आवाज गूंजने से पहले ही दब जाती है। मध्य प्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र में कुछ ऐसा ही देखने को मिला, जहां विपक्षी विधायकों के सवालों को इस तरह से तोड़ा-मरोड़ा गया कि न सवाल समझ में आया, न जवाब मिल पाया। क्या यह महज तकनीकी चूक है या सवालों को कुंद करने की सोची-समझी रणनीति?
सवाल मप्र का,जवाब सिर्फ मंडला जिले का मिला
मंडला जिले की बिछिया विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस विधायक नारायण सिंह पट्टा ने प्रदेश मे स्मार्ट सिटी व पृथक अधिनियम से मप्र में गठित विश्वविद्यालय को लेकर दो अलग-अलग लिखित सवाल सदन में पूछे। विधानसभा सचिवालय ने इन्हें स्वीकार करते हुए इसकी सूचना भी विधायक को दी। पहले सवाल का जवाब मानसून सत्र के पहले दिन यानी 28 जुलाई तो दूसरा 31 जुलाई को उन्हें प्रश्नोत्तरी के जरिए लिखित में मिला भी,लेकिन पट्टा यह देखकर चौंक गए कि उनके सवालों को सिर्फ मंडला जिले तक सीमित कर दिया गया,जहां न तो स्मार्ट सिटी है न ही कोई विश्वविद्यालय।
जाहिर है,ऐसे में कोई जवाब सरकार से विधायक को मिलना नहीं था। वहीं हुआ भी। संबंधित मंत्रियों ने इसी बात का हवाला देते हुए जानकारी दे पाने में असमर्थता जता दी।
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विधायक ने बताई विस सचिवालय को अपनी पीड़ा
मंडला जिले का निवासी होने व वहां का प्रतिनिधित्व करने के कारण यह बात तो पट्टा भी बखूबी जानते थे। जाहिर है, सवाल जब समूचे प्रदेश से जुड़ा है ,तो इसे सिर्फ ऐसे एक जिले तक सीमित क्यों किया गया,जहां पूछे गए सवाल का कोई उत्तर मिलना ही नहीं था। कांग्रेस विधायक ने अब विधानसभा सचिवालय को पत्र लिखकर उनकी बिना अनुमति प्रश्नों में किए गए हेरफेर की जांच कराए जाने व दोषियों को दंडित करने की मांग की।
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कैलाश हुए किशोर,जवाब तो आना ही नहीं था !
ऐसा ही कुछ वाक्या धार जिले की सरदारपुर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस विधायक प्रताप ग्रेवाल के साथ हुआ। ग्रेवाल ने प्रदेश में जल नल योजना में हुए घोटाले से जुड़ा मामले को लेकर सवाल पूछा। उन्होंने जानना चाहा कि प्रदेश के पूर्व विधायक किशोर समरिते द्वारा प्रधानमंत्री कार्यालय को की गई शिकायत एवं इसके आधार पर हुई कार्यवाही का ब्योरा चाहा।
गत एक अगस्त को ग्रेवाल के सवाल का जवाब भी आया,लेकिन वह यह देखकर हैरत में पड़ गए कि पूर्व विधायक का नाम किशोर की जगह कैलाश कर दिया गया। इसी आधार पर विभागीय मंत्री संपत्तिया उइके ने भी उत्तर दिया कि कैलाश नाम के व्यक्ति की ओर से कोई शिकायत विभाग को प्राप्त नहीं हुई,लिहाजा विधायक का प्रश्न ही नहीं बनता।
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जवाब देने से बचना चाहती है सरकार:कांग्रेस विधायक
ग्रेवाल कहते हैं,यह पहला मौका नहीं है। जब उनके सवालों में इस तरह की कांट-छांट कर अर्थ का अनर्थ किया गया हो। इसी सत्र में कुछ अन्य सवालों में भी इसी तरह की भाषाई गड़बड़ी कर सरकार ने जवाब देने से बचने का जतन किया। इसकी शिकायत वह विधानसभा सचिवालय को कर रहे हैं। इसमें जांच कर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की जाएगी।
वहीं बिछिया विधायक नारायण सिंह पट्टा ने कहा कि सरकार सवालों के जवाब देने से बचना चाहती है। इसके चलते ही,सदस्यों के सवालों को यूं तोड़-मरोड़कर पेश किया जाता है,ताकि सवाल को गलत बताकर उसका जवाब न देना पड़े।स्वस्थ लोकतंत्र की दृष्टि से यह ठीक नहीं है। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार भी यह बात कई बार सदन में उठा चुके हैं,लेकिन सरकार इस मामले में असंवेदनशील बनी हुई है।
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दोहरे मापदंड से उपजा असंतोष
इधर,विधानसभा सचिवालय सूत्रों का दावा है कि सदन में सवाल पूछे जाने की प्रक्रिया,अधिकतम दो सौ शब्दों की सीमा व जवाब की व्यापकता को लेकर पहले ही दिशा-निर्देश सभी विधायकों को दिए गए है। इसके बावजूद कई बार काफी लंबे व प्रदेशस्तर की व्यापक जानकारी से जुड़े होते हैं। प्रश्नों के स्वरूप को बदलने का अधिकार विधानसभा अध्यक्ष को है। लेकिन
दूसरी ओर इसी सत्र में बीसियों ऐसे सवाल आए जो न केवल काफी विस्तृत स्वरूप में पूछे गए,बल्कि उनकी जानकारी भी कई सैंकड़ों पन्नों में विधानसभा पहुंची। तो क्या विधानसभा सचिवालय प्रश्नों के चयन में दोहरे मापदंड अपना रहा है। प्रश्नों को रिजेक्ट यानी अस्वीकृत करने का अधिकार भी सदन को है,फिर ऐसी क्या वजह है कि प्रश्नों को लिया तो गया,लेकिन इनके शब्दों में हुए बदलाव किए जाने से सवाल के अर्थ का अनर्थ हुआ और विधायक जानकारी पाने से वंचित रह गए।
पहले भी गायब हो चुके सवाल
विधानसभा सचिवालय से विधायकों के सवाल गायब होने का मामले भी सामने आ चुके हैं। पिछले ही सत्र में वारा सिवनी विधायक विवेक विक्की पटेल ने अपना एक सवाल गायब होने की शिकायत विधानसभा सचिवालय से की थी। द सूत्र ने तब इस मामले को भी जोर शोर से उठाया था। : मध्यप्रदेश मानसून सत्र 2025