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BHOPAL. राज्य में निर्माण कार्यों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए बनी मध्य प्रदेश कार्य गुणवत्ता परिषद तीन साल बाद भी निष्क्रिय पड़ी है। इस परिषद की गवर्निंग बॉडी में खुद मुख्यमंत्री अध्यक्ष हैं, सामान्य प्रशासन मंत्री उपाध्यक्ष हैं, जबकि 11 विभागों के मंत्री, प्रमुख सचिव (PS) और अपर मुख्य सचिव (ACS) सदस्य हैं। इसके बावजूद परिषद की गतिविधियां ठप हैं, और गुणवत्ता मॉनिटरिंग के नाम पर कुछ भी ठोस नहीं हो पा रहा है।
मुख्य तकनीकी परीक्षक संगठन खत्म
राज्य सरकार ने तीन वर्ष पहले मुख्य तकनीकी परीक्षक (सतर्कता) संगठन को अधिक प्रभावी बनाने के उद्देश्य से समाप्त कर मप्र कार्य गुणवत्ता परिषद का गठन किया था। लेकिन गठन के बाद से ही परिषद कागजों में सिमटकर रह गई। जब निर्माण कार्यों की जांच एजेंसी ही निष्क्रिय हो, तो पूरे प्रदेश में चल रहे निर्माण कार्यों की गुणवत्ता पर सवाल उठना लाजमी है।
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शिवराज सरकार ने की थी शुरुआत
तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने प्रदेश के निर्माण कार्यों की निगरानी और मजबूती के लिए इस परिषद का गठन किया था। लेकिन तीन साल बीत जाने के बाद भी इस संस्था के लिए न तो स्थायी स्टाफ नियुक्त किया गया और न ही ढांचा तैयार हो सका। वर्तमान में परिषद का सीमित काम तकनीकी परीक्षक सतर्कता संगठन के पुराने कर्मचारियों से चलाया जा रहा है।
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गवर्निंग बॉडी की बैठक तक नहीं हुई
नियमों के अनुसार परिषद की गवर्निंग बॉडी की बैठक साल में कम से कम एक बार होनी चाहिए, लेकिन गठन के बाद से अब तक एक भी बैठक नहीं हुई। 2023 में केवल एक बार एक्जीक्यूटिव कमेटी की बैठक महानिदेशक अशोक शाह के कार्यकाल में हुई थी। उसके बाद 2024 से 2025 तक कोई भी बैठक नहीं बुलाई गई।
उद्देश्य तो बड़े-बड़े, अमल नहीं हुआ
- कागजों में परिषद के उद्देश्य बेहद महत्वाकांक्षी हैं ।
- राज्य की आधारभूत परियोजनाओं में तकनीकी सहयोग।
- नवाचार आधारित विकास।
- अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार गुणवत्ता सुधार।
- राज्य स्तरीय गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशाला की स्थापना।
- ठेकेदारों और अभियंताओं को प्रशिक्षण।
- थर्ड पार्टी निरीक्षण। इन उद्देश्यों पर अब तक कोई ठोस अमल नहीं हुआ।
बिना गुणवत्ता जांच के चल रहे हैं अरबों के निर्माण कार्य
राज्यभर में अरबों रुपए के निर्माण कार्य जारी हैं। मेडिकल कॉलेज, स्कूल, अस्पताल, हाईकोर्ट बिल्डिंग, सामुदायिक
भवन और सड़कें बनाई जा रही हैं। लेकिन जब जांच एजेंसी ही निष्क्रिय हो, तो गुणवत्ता की गारंटी कौन देगा? सरकारी लापरवाही के चलते ऐसे निर्माण भविष्य में “पातक परियोजनाओं” में बदल सकते हैं।
महानिदेशक का पद भी खाली
परिषद के गठन के बाद अब तक केवल दो आईएएस अधिकारियों की अल्पकालिक पदस्थापना हुई। पहले अपर मुख्य सचिव अशोक शाह ने छह माह तक कार्य किया, फिर मनीष सिंह को जिम्मेदारी मिली, लेकिन वे भी तीन माह में ही हट गए। वर्तमान में महानिदेशक का पद खाली है और प्रभार सुखवीर सिंह संभाल रहे हैं।
गुणवत्ता मॉनिटरिंग की मुख्य संस्था ही ठप
तीन साल बीत जाने के बावजूद मध्यप्रदेश कार्य गुणवत्ता परिषद न तो सक्रिय हो पाई है और न ही अपने उद्देश्य पूरे कर पाई है। राज्य में जब गुणवत्ता मॉनिटरिंग की मुख्य संस्था ही ठप पड़ी हो, तो निर्माण कार्यों की सच्चाई खुद-ब-खुद सामने आ जाती है।
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