MPPSC ने असमंजस के बीच राज्य सेवा मेन्स के एडमिट कार्ड किए जारी, 7 मार्च को HC में सुनवाई

मध्‍य प्रदेश लोक सेवा ( MPPSC ) की कोशिश यही रहेगी कि मेन्स पर किसी तरह की आंच नहीं आए। बहुत ज्यादा हो तो वह याचिकाकर्ताओं को मेन्स में बैठाने की बात कहे, ताकि मेन्स नहीं टालना पड़े...

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Pratibha Rana
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संजय गुप्ता @ INDORE

मप्र लोक सेवा आयोग ( MPPSC ) ने मंगलवार शाम को राज्य सेवा मेन्स 2023 के लिए एडमिट कार्ड जारी कर दिए हैं, लेकिन 11 मार्च से शुरू होने वाली परीक्षा को लेकर अभी भी असमंजस है। हालांकि सब कुछ हाईकोर्ट जबलपुर ( HIGH COURT JABALPUR ) में सात मार्च को होने वाली सुनवाई पर निर्भर करता है कि कोर्ट किस तरह के निर्देश जारी करता है। इधर बुधवार सुबह तक आयोग ने बाद में मेन्स में बैठने की कोर्ट से पात्रता पाए उम्मीदवारों के लिए लिंक 6 मार्च तक के लिए ओपन हो गई है। 

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7 मार्च को क्यों हो रही है सुनवाई?

राज्य सेवा प्री 2023  ( एमपीपीएससी )के सवालों के लेकर लगी पहली मूल याचिका में तीन सवालों को गलत बताया गया है। इसे प्रारंभिक तौर पर जबलपुर हाईकोर्ट ने सही माना और तीनों सवालों पर आयोग से जवाब मांगा। अगली सुनवाई में आई विशेषज्ञ कमेटी की रिपोर्ट में सही कमेंट, हस्ताक्षर आदि नहीं होने से हाईकोर्ट नाराज हुआ। याचिकाकर्ताओं को मेन्स में बैठने की पात्रता मिली, सुनवाई 12 मार्च को लगाई गई। बाद में और याचिका लगी, जिसमें अधिवक्ताओं ने बताया कि 12 मार्च को सुनवाई की तारीख लगी है और मेन्स 11 से हो रही है। इस पर हाईकोर्ट ने सात मार्च को सुनवाई रख दी। 

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इसलिए अहम है यह सुनवाई?

यह सुनवाई क्यों अहम है? इसका कारण है कि प्री ( MP PSC ) के एक-एक नंबर पर सैंकड़ों उम्मीदवार अंदर या बाहर हो जाते हैं। प्री के तीन सवालों पर प्रश्नचिन्ह तो है ही, अन्य याचिकाओं में दो और प्रश्न पर सवाल उठे हैं। यदि इसमें से एक भी सवाल को हाईकोर्ट खारिज करता है, तो आयोग के ही नए नियम से डिलीट प्रश्न के अंक सभी उम्मीदवारों को मिलेंगे। यानि प्री में बैठे हुए करीब दो लाख उम्मीदवारों को यह अंक मिलेंगे, जितने प्रश्न हाईकोर्ट गलत मानकर डिलीट करता है, प्रति प्रश्न दो अंक सभी उम्मीदवारों को मिलेंगे। यानि हर प्रश्न प्री में बैठे पूरे दो लाख उम्मीदवारों को प्रभावित करता है, लेकिन इसमें सबसे अहम वह है जो दो-दो अंक से प्री पास कर मेन्स के लिए क्वालीफाई हो गए या फिर प्री में फेल हो गए। कटऑफ अंक के आसपास वाले सभी उम्मीदवार इससे प्रभावित होंगे। 

इसके मायने क्या होंगे?

एक भी प्रश्न के गलत ठहराए जाने का मतलब है कि प्री के रिजल्ट में उलटफेर होगा। केवल हाईकोर्ट के आदेश से पात्र याचिकाकर्ताओं को बैठाया जाना पर्याप्त नहीं है। प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के हिसाब से जो याचिका में नहीं गए, लेकिन इस रिजल्ट से प्रभावित हो रहे, उन्हें भी मेन्स में बैठने का अधिकार बनता है और फैसला सभी पर लागू होता है। यानि कि साफ है कि आयोग को मेन्स के लिए फिर से पात्र उम्मीदवारों को लिस्ट बनानी होगी, यानि रिजल्ट रिवाइज्ड करना होगा। इसमें कुछ संभव है बाहर हो जाएं और कई उम्मीदवार बार्डर पर अटके हुए प्रवेश पा जाएं, जैसा खुद माननीय कोर्ट ने ही याचिकाकर्ताओं के लिए आदेश जारी किए हुए हैं। 

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प्री के रिजल्ट रिवाइज्ड से मेन्स पर क्या होगा?

निश्चित तौर पर प्री के रिजल्ट को रिवाइज्ड करना हुआ तो फिर नए सिरे से लिस्ट बनेगी। इसमें समय लगेगा और नया रिज्लट जारी होने के बाद नए पात्र उम्मीदवारों को मेन्स के लिए फार्म भरने का समय देना होगा। वहीं अप्रैल-मई में आयोग के पास लोकसभा चुनाव के चलते मेन्स कराने की विंडो ही नहीं मिलेगी, ऐसे में यह मेन्स फिर जून से पहले होना मुश्किल होगा।

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आयोग और सरकार क्या रुख अपनाती है?

इस पूरे मामले में आयोग और सरकार क रूख को भी देखना होगा कि वह कोर्ट में क्या बात रखती है। आयोग की कोशिश यही रहेगी कि मेन्स पर किसी तरह की आंच नहीं आए, बहुत ज्यादा हो तो वह याचिकाकर्ताओं को मेन्स में बैठाने की बात कहे, ताकि मेन्स नहीं टालना पड़े। वह अपनी विशेषज्ञ कमेटी की रिपोर्ट व कार्रवाई को भी सही बताएगा। गोपनीयता की दलील भी देगा, ताकि मामला गोपनीयता की आड़ में टाला जा सके। वहीं याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता को भी प्रश्न डिलीट की अपील के साथ यह भी पक्ष रखना होगा कि इन अंकों से पूरा रिजल्ट प्रभावित होगा तो आयोग को निर्देश दिए जाएं कि रिजल्ट रिवाइज्ड करे और मेन्स नए सिरे से घोषित करे। उधर हाईकोर्ट का जो भी फैसला होगा वह तत्काल मान्य इसलिए होगा क्योंकि आठ से दस मार्च छुट्‌टी होने से आयोग के पास इस पर स्टे लेने का मौका नहीं होगा। लेकिन यह तभी होगा जब हाईकोर्ट में अधिवक्ता उम्मीदवारों की ओर से पुरजोर बात रखते हुए यह बताए कि एक-एक अंक से पूरी मेरिट किस तरह चेंज हो रही है और केवल याचिकाकर्ता को मेंस में बैठाने की पात्रता से कुछ नहीं होगा, अन्य भी है जो कोर्ट नहीं आ सके हैं।

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