संजय गुप्ता, INDORE. नगर निगम बिल घोटाले में फरार ठेकेदारों ( Municipal Corporation Bill ) को संदेश पहुंच गए हैं कि हम इंदौर से लेकर भोपाल तक प्रयास कर रहे हैं, अभी गिरफ्तार मत होना, हम बचा लेंगे, हमारा नाम कहीं मत लेना। इस मामले में फरार इंजीनियर अभय राठौर से लेकर बाकी छिपे हुई गैंग को बचाने के लिए इस पूरे खेल में जुड़े बड़े खिलाड़ी सौदों में लग गए हैं। ( Municipal Corporation Bill Scam )
24 दिन में छोटे ठेकेदार, निगम कर्मचारी ही पकड़ में
पुलिस ने पहली एफआईआर 16 अप्रैल को की थी। सात दिन सुस्ती रही और जब द सूत्र ने इस मामले में खुलासा किया कि पूरे खेल में पुलिस का कथित लाइजनर जय सिंह जैन सक्रिय है। इसके बाद फिर ठेकेदार गिरफ्तार हुए और साथ ही इंजीनियर अभय राठौर को आरोपी बनाया गया। पुलिस इस मामले में अभी तक चार ठेकेदार (राहुल वढेरा, रेणु वढेरा, साजिद, जाकिर) के साथ निगम के सब इंजीनयर उदय भदौरिया, इंट्री ऑपरेटर चेतन भदौरिया और कैशियर राजकुमार साल्वी व आवक-जावक बाबू मुरलीधरन को पकड़ा है। यानी कुल आठ गिरफ्तारी हुई हैं, लेकिन इस मामले में कोई भी बड़ा खिलाड़ी नहीं पकड़ा गया है। एक ठेकेदार सिद्दकी हाईकोर्ट में सरेंडर करने की बात कहने के बाद गायब हो गया तो वहीं राठौर पर इनाम दस हजार से बढ़कर 25 हजार हो गया लेकिन गिरफ्त में नहीं आया।
दूसरी फर्म के ठेकेदार गायब, क्योंकि इनके पास बड़े नाम
दरअसल इसमें पांच फर्जी फर्म के ठेकेदारों का सीधा राठौर से लिंक था और इन फर्म के यह खुद ही कर्ताधर्ता थे, इसमें अहम जाकिर और राहुल वढेरा है। इसलिए इन ठेकेदारों से अब अधिक कुछ नहीं मिलना है। लेकिन जो फरार फर्म ईश्वर और क्रिस्टल के संचालक हैं, वह मुहरे हैं। इन फर्म के असल मालिक दूसरे हैं, जो पहुंच वाले हैं और वही इन्हें बचाने में जुटे हुए हैं और भोपाल सौदे करने में जुटे हैं। वह नहीं चाहते कि यह गिरफ्तार हो और दबाव में आकर हमारा नाम बोल दें। इन ठेकेदार इमरान और मौसम व्यास पर पुलिस ने 5-5 हजार का ईनाम घोषित कर दिया है।
राठौर क्यों गायब? इसमें इंदौर के व्यापमं घोटाले के आरोपी की भूमिका
राठौर की पहुंच गजब की है, उसकी अवैध कमाई का एक बड़ा हिस्सा (जो करीब 50 करोड़ रुपए बताया जा रहा है) वह इंदौर के एक मेडिकल कॉलेज संचालक के पास लगा हुआ है। वह संचालक व्यापमं घोटाले में भी आरोपी रहा है। राठौर पहले कथित लाइजनर जय सिंह जैन के जरिए बचने में लगा था, अब जब उससे केस नहीं संभला तो यह मेडिकल कॉलेज संचालक भी बचाने में जुटे हैं। उन्हें भी डर सता रहा है कि अवैध कमाई लगने की जांच उन तक नहीं पहुंच जाए। राठौर इस घोटाले में किंगपिन रहा है और साथ ही उसने अपनी कमाई का हिस्सा कई बड़े लोगों तक पहुंचाया और अपनी संपत्ति का बड़ा हिस्सा कई जगह पर लगाया हुआ है। ऐसे में कई लोगों को उलझने की आशंका है, जिसके चलते उसे बचाने और सब कुछ ठंडा और सैटल होने के बाद पेश कराने की तैयारी है।
राठौर के खिलाफ बयान के अलावा अभी कुछ नहीं
राठौर को भले ही पुलिस ने आरोपी बना लिया है, लेकिन मजेदार बात यह है कि पुलिस के पास उसके खिलाफ ठेकेदारों के बयान के अलावा अभी कुछ भी ठोस नहीं है। इन चारों ठेकेदारों ने ही राठौर का नाम लिया है। निगम कर्मचारी भी उनका नाम लेंगे, लेकिन यह सिर्फ बयान है। राठौर इतना चालाक रहा है कि वह कागज पर अभी नहीं है, उसने कई फाइलों में खुद के भी फर्जी हस्ताक्षर कराए हैं, ताकि बाकी अधिकारियों की तरह उस पर भी कोई शक नहीं करें और पीड़ित ही मानें, यह बयान भी जांच कमेटी में वह दे चुका है कि उसके फर्जी हस्ताक्षर हैं। वहीं ठेकेदारों को जो भुगतान आया वह खाते में आया और उन्होंने इसे कैश में निकालकर फिर राठौर व अन्य को दिया। यानी लेन-देन के पुख्ता सबूत यहां भी नहीं हैं।
सौदा इस बात को लेकर हो रहे हैं
इसी के चलते सभी पर्दे के पीछे बड़े खिलाड़ी इस मामले को ठंडा होने का इंतजार कर रहे हैं, ताकि मामला सैटल होने के बाद राठौर पेश हो और कुछ महीने की जेल के बाद उसे केस से निकाल लिया जाए। सौदा इसी बात को लेकर चल रहे हैं कि जांच को अब और तह में जाकर करने की कोशिश नहीं की जाए और कोई नए सबूत नहीं जुटाए जाएं। ना ही किसी अन्य किरदारों को सामने लाया जाए। ऐसे में सिर्फ छोटे मोहरे ही उलझेंगे और बड़े लोग निकल जाएंगे। इसके लिए इंदौर से लेकर भोपाल तक यह खिलाड़ी लगे हुए हैं।