मध्य प्रदेश के पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग पूरी तरह फ्लाप हो चुकी नंदन फलोद्यान योजना को स्व-सहायता समूहों के मत्थे मढ़ने की तैयारी में है। इसके लिए मध्य प्रदेश राज्य आजीविका मिशन का सहयोग लिया जा रहा है। जो पहले ही घोटालों व अवैध नियुक्तियों को लेकर बदनाम है।
भूमिहीनों से बगीचा लगवाने की तैयारी!
मिशन के सीईओ का प्रभार फिलहालमप्र राज्य रोजगार गारंटी परिषद आयुक्त अवि प्रसाद के पास है। प्रसाद नवाचार के लिए पहचाने जाते हैं। मौके का फायदा उठाते हुए उन्होंने मनरेगा की फेल हो चुकी उप योजना नंदन फलोद्यान को मिशन के स्व-सहायता समूहों से जोड़ने का प्रस्ताव सरकार को भेजा है। मंजूरी मिली तो स्व-रोजगार में जुटी समूह की महिलाएं अब नंदन फलोद्यान भी तैयार करेंगी,लेकिन प्रस्ताव की मंजूरी से पहले ही इस पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
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घाटे का सौदा होने से किसानों ने खींचे हाथ
दरअसल,समूहों से जुड़ी महिलाएं बीपीएल श्रेणी,भूमिहीन व सीमांत किसान परिवारों से हैं। बड़ा सवाल यही,कि जब महिलाओं के पास जमीन ही नहीं तो वे उद्यान कहां तैयार करेंगी? दरअसल,जिम्मेदार अधिकारी बुरी तरह फेल रही इस योजना को समूहों के मत्थे मढ़कर,अपनी साख बनाए रखने की कवायद कर रहे हैं। मनरेगा की इस तीन वर्षीय उप योजना में उद्यान तैयार करने सिर्फ चार लाख रुपए दिए जाते हैं।
इसमें फलदार वृक्षों के पौध रोपण से लेकर,सिंचाई व्यवस्था,रखरखाव आदि शामिल हैं। घाटे का सौदा होने से किसानों ने इसमें रुचि नहीं दिखाई। बताया जाता कि पिछली केंद्रीय समीक्षा बैठक के दौरान योजना क्रियान्वयन में फिसड्डी रहने पर प्रदेश के अधिकारियों की खासी खिंचाई भी हुई।
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नवाचार को मंजूरी मिलने से पहले ही ट्रेनिंग शुरू
आजीविका मिशन व मनरेगा सेल का यह नवाचार प्रस्ताव फिलहाल शासनस्तर पर विचाराधीन है। इसे अब तक मंजूरी नहीं मिली है,लेकिन इससे पहले ही मिशन के मैदानी अफसरों को प्रस्तावित लक्ष्य हासिल करने की ट्रेनिंग शुरू हो गई है। पहले चरण में मिशन से जिला परियोजना अधिकारियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम 16 से 18 जून तक वाल्मी संस्थान में आयोजित हुआ।
दूसरे चरण में मिशन व मनरेगा से जुड़े इंजीनियर्स को यह ट्रेनिंग दी जाएगी। मिशन के प्रभारी सीईओ व मप्र राज्य रोजगार गारंटी परिषद आयुक्त अवि प्रसाद ने कहा कि नंदन फलोद्यान योजना में एसएचजी की भागीदारी कार्यक्रम अभी प्रस्तावित है। इसके लिए प्रशिक्षण समेत जरूरी तैयारी की जा रही हैं।
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आजीविका मिशन का रहा विवादों से नाता
राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन पहले ही घोटालों व अवैध नियुक्तियों को लेकर बदनाम है। इसके पूर्व सीईओ ललित मोहन बेलवाल के खिलाफ तो ईओडब्ल्यू में एफआईआर दर्ज हो चुकी है। बावजूद इसके,मिशन में नवाचार के नाम पर
'प्रशासनिक कर्मकांड' सतत् जारी हैं।
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बीते माह ही मिशन मुख्यालय में स्व-सहायता समूहों के उत्पादों को कमर्शियल मंच मुहैया कराने के नाम पर दो दिवसीय बॉयर-सेलर समिट आयोजित की गई। इसमें बॉयर यानी उत्पाद खरीदने इक्का-दुक्का कारोबारी ही पहुंचे। इन्होंने भी समूहों के उत्पादों में कोई रुचि नहीं दिखाई। अलबत्ता आयोजन के नाम पर लाखों रूपए जरूर खर्च हो गए।
पिछले मप्र विधानसभा चुनाव के दौरान ही मिशन ने एप्को से 16 करोड़ रुपए हासिल कर प्रदेश की 13 सौ से अधिक पर्यावरण सखियों को गुपचुप तरीके से ई-स्कूटी बांट दी। ये स्कूटी किस हाल में हैं,मिशन के अधिकारी इस मामले में चुप्पी साधे हुए हैं।