एमपी में बिजली सब्सिडी की नई समीक्षा से बदलेगा पावर समीकरण

मध्य प्रदेश में बिजली सब्सिडी की समीक्षा शुरू हो गई है। सरकार ने एक उच्चस्तरीय मंत्रिमंडलीय समिति बनाई है, जो सब्सिडी व्यवस्था का पुनः मूल्यांकन करेगी। प्रदेश में 1.34 करोड़ उपभोक्ता सब्सिडी का लाभ उठा रहे हैं।

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Ramanand Tiwari
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Photograph: (THESOOTR)

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BHOPAL. मध्यप्रदेश में बिजली उपभोक्ताओं को मिलने वाली राहत अब समीक्षा के दायरे में है। सरकार ने संकेत दिए हैं कि मौजूदा सब्सिडी व्यवस्था पर दोबारा विचार किया जा सकता है। इसी कड़ी में एक उच्चस्तरीय मंत्रिमंडलीय समिति ( cabinet committee ) बनाई गई है, जो पूरे सिस्टम की पड़ताल करेगी।

कितने लोग ले रहे हैं बिजली सब्सिडी का लाभ?

प्रदेश में लगभग 1.34 करोड़ बिजली उपभोक्ता ऐसे हैं, जिन्हें किसी न किसी रूप में सब्सिडी मिल रही है। इनमें घरेलू उपभोक्ता और किसान दोनों शामिल हैं। यह संख्या प्रदेश की कुल आबादी का बड़ा हिस्सा कवर करती है।

बिजली कंपनियों का कारोबार और सरकारी मदद

प्रदेश की तीनों बिजली वितरण कंपनियां सालाना करीब 52 हजार करोड़ रुपए की बिजली बेचती हैं। इसमें से लगभग 25 हजार करोड़ रुपए सीधे सरकार सब्सिडी के रूप में वहन करती है। यानी आधे से ज्यादा खर्च जनता नहीं, सरकार उठा रही है।

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150 यूनिट से कम बिजली पर खास राहत

घरेलू उपभोक्ताओं के लिए सरकार ने एक योजना लागू कर रखी है। यदि कोई परिवार 150 यूनिट से कम बिजली खर्च करता है, तो उसे 100 यूनिट तक की सब्सिडी मिलती है। इस एक योजना पर ही सरकार को हर साल लगभग 8 हजार करोड़ रुपए खर्च करने पड़ते हैं।

बिजली बिल स्थगन: फैसला अब भी अधर में

कोरोना काल में सरकार ने 85 लाख घरेलू उपभोक्ताओं के बिजली बिलों को स्थगित कर दिया था। यह राहत एक किलोवॉट कनेक्शन वाले उपभोक्ताओं को दी गई थी। अब स्थिति यह है कि करीब 4,800 करोड़ रुपए के ये बिल न तो माफ हुए हैं और न ही वसूली का कोई स्पष्ट निर्देश जारी हुआ है।

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बिजली कंपनियों की उलझन

बिजली वितरण कंपनियों को यह रकम न तो सरकार से पूरी तरह मिली है और न ही उपभोक्ताओं से वसूलने की अनुमति है। इससे कंपनियों की वित्तीय स्थिति पर दबाव बढ़ता जा रहा है।

किसानों को बिजली में कितनी राहत?

किसानों के लिए पांच हॉर्सपावर तक के कनेक्शन पर विशेष छूट का प्रावधान है। किसान अपनी सिंचाई के बिजली बिल का केवल 7 प्रतिशत भुगतान करते हैं, जबकि 93 प्रतिशत राशि सरकार देती है।

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सिंचाई बिजली पर सालाना भारी खर्च

प्रदेश में करीब 25 लाख किसान सिंचाई के लिए बिजली कनेक्शन का उपयोग कर रहे हैं। इस मद में सरकार को हर साल लगभग 13 हजार करोड़ रुपए खर्च करने पड़ते हैं।

एसटी-एससी किसानों को अतिरिक्त संरक्षण

प्रदेश के 9.5 लाख एसटी-एससी वर्ग के किसान भी इस योजना के दायरे में हैं। इनके सिंचाई बिलों पर सरकार हर साल लगभग 5 हजार करोड़ रुपये का भार उठा रही है। कुछ श्रेणियों में किसानों से एक रुपया भी नहीं लिया जाता।

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सोलर पंप बने नई नीति की वजह

केंद्र और राज्य सरकार मिलकर किसानों को सोलर पंप पर 90 प्रतिशत तक सब्सिडी दे रही हैं। इसी कारण सरकार की रणनीति अब यह है कि बिजली सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से संतुलित किया जाए, ताकि भविष्य में वित्तीय बोझ न बढ़े।

अब क्या करेगी नई मंत्रिमंडलीय समिति?

डिप्टी सीएम जगदीश देवड़ा की अध्यक्षता में गठित समिति यह आकलन करेगी कि किस श्रेणी में कितनी सब्सिडी दी जा रही है। इसका वास्तविक लाभ किन उपभोक्ताओं तक पहुंच रहा है और कहां सुधार या कटौती की जरूरत है।

सरकार का आधिकारिक संकेत

ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर के मुताबिक, बिजली सब्सिडी की समीक्षा जरूरी है। समिति यह देखेगी कि उपभोक्ताओं के नाम पर कितनी और किस तरह की राहत दी जा रही है।

राहत बचेगी या बदलेगी?

स्पष्ट है कि सरकार फिलहाल सब्सिडी खत्म करने के नहीं, बल्कि उसे री-डिजाइन करने के मूड में है। आने वाले फैसले यह तय करेंगे कि आम उपभोक्ता और किसान को राहत मिलेगी या बिजली का बिल थोड़ा भारी पड़ेगा।

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