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मुख्यमंत्री कार्यालय यानी सीएमओ में नया कार्य विभाजन जारी किया गया है। नई व्यवस्था के तहत अपर मुख्य सचिव नीरज मंडलोई ज्यादा ताकतवर बनकर उभरे हैं। अब वे हर बड़े काम के लिए CMO में सिंगल विंडो अफसर की हैसियत में रहेंगे।
दरअसल सीएमओ में अधिकारी वर्गों को अलग-अलग विभाग समूह जैसे A, B, C, D—में बांटते हुए, उनकी स्पष्ट भूमिकाएं तय कर दी गई हैं। आइए, विस्तार से समझते हैं कि मुख्यमंत्री कार्यालय की नई व्यवस्था कैसी दिखती है और प्रशासनिक कार्यों पर इसका क्या असर पड़ेगा।
मुख्यमंत्री कार्यालय: नोडल पॉइंट और प्रमुख रोल
मुख्य समन्वयन: समूह A
अपर मुख्य सचिव आईएएस नीरज मंडलोई, अब पूरे मुख्यमंत्री कार्यालय के मुख्य समन्यवक के रूप में नियुक्त हैं। यानी हर फाइल उनसे होकर ही गुजरेगी। उनके जिम्मे मुख्यमंत्री द्वारा भेजी जाने वाली सारी ‘ए+’ और ‘ए मॉनिट’ नोटशीट्स, विभागीय पत्र-निर्देशों की समीक्षा, नीतिगत फैसले और विशेष आयोजनों का समन्वय है। इन सबके अलावा नीरज मंडलोई सीधे तौर पर सिंहस्थ 2028 से संबंधित कामों को भी देखेंगे।
विधायकों-सांसदों के मसलों का समाधान: समूह B
आईएएस आलोक कुमार सिंह, सचिव—मुख्यमंत्री, की जिम्मेदारी गृह विभाग छोड़कर अन्य सभी विभागों के स्थानांतरण प्रस्ताव, ग्रामीण-शहरी क्षेत्र के सांसदों और विधायकों से जुड़े मुद्दों, सरकारी/गैर-सरकारी नामांकनों, नियुक्तियों और कार्यालयीन व्यवस्था की है।
नई दिल्ली और भारत सरकार संबंधी समन्वय: समूह C
IAS अधिकारी इलैया राजा टी. .., सचिव, मुख्यमंत्री को केंद्र सरकार से संबंधित सभी पत्राचार, कार्यक्रम, बैठकें और प्रदेश सरकार की उपलब्धियों का संग्रह और प्रचार-प्रसार संभालना होगा। साथ ही, IT और मुख्यमंत्री डैशबोर्ड की पूरी देखरेख भी इन्हीं के जिम्मे है।
मुख्यमंत्री के भ्रमण, फाइल्स और सहायता कोष: समूह D
चन्द्रशेखर वालिम्बे अपर सचिव, मुख्यमंत्री के जिम्मे मुख्यमंत्री के राज्यभर के भ्रमण, CM सहायता कोष, जनसामान्य से प्राप्त आवेदन, तथा दौरे के दौरान मिली समस्याओं का निराकरण रहेगा।
CMO में नए विभाजन की मुख्य बातें
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क्यों अहम है सीएमओ में नया कार्य विभाजन?
सरकार के मुताबिक, अलग-अलग अधिकारियों को विभागवार जिम्मेदारी सौंपने का मकसद—शासन में पारदर्शिता, जवाबदेही, और गति बढ़ाना है। इससे प्रदेश के छोटे-बड़े मसलों का निपटारा त्वरित होगा।
नए कार्य विभाजन में टेक्नोलॉजी (IT) और फील्ड वर्कर्स तक की निगरानी तक भी अलग से प्रभारी अधिकारी हैं, जिससे योजनाओं या घोषणाओं की जमीनी हकीकत लगातार अधिकारियों की नजर में रहेगी।
निष्कर्ष:
अभी जिन आदेशों और कार्य विभाजन को लागू किया गया है, उसकी व्यवस्था यदि सही तरीके से कंट्रोलरूम शैली में फॉलो हुई, तो प्रशासनिक फैसले कसौटी पर जरूर उतरेंगे। मगर कागजों से बाहर आकर उनका क्रियान्वयन ही इस ‘नवाचार’ की असली परीक्षा होगी। हर भोपाली और मध्यप्रदेशवासी को चाहिए कि वो इस नई व्यवस्थागत पारदर्शिता का लाभ उठाए और प्रशासन को जवाबदेह बनाए।
(सीएमओ में नया कार्य विभाजन का आदेश डाउनलोड करें)
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