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मध्य प्रदेश में नर्सिंग कॉलेजों की मान्यता देने में हुए घोटाले में जबलपुर हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। इस फैसले को राज्य के नर्सिंग शिक्षा तंत्र में सालों से चल रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ एक बड़ी जीत माना जा रहा है। हाइकोर्ट ने नर्सिंग काउंसिल के चेयरमैन डॉ. जितेंद्र चंद्र शुक्ल और रजिस्ट्रार अनीता चांद को तत्काल प्रभाव से हटाने के आदेश दिए हैं।
ऐसे हुआ था नर्सिंग घोटाले का खुलासा
मध्य प्रदेश में चर्चित नर्सिंग कॉलेज के घोटाले का खुलासा विसलब्लोअर लॉ स्टूडेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष विशाल बघेल द्वारा जनहित याचिका दायर करने के बाद हुआ था। इस घोटाले का भंडाफोड़ होने के बाद भी नर्सिंग कॉलेज की मान्यता प्रक्रिया में सीबीआई अधिकारियों सहित काउंसिल के सदस्य भी लगातार भ्रष्टाचार करते हुए नजर आए। मध्य प्रदेश नर्सिंग काउंसिल की रजिस्ट्रार एवं अध्यक्ष के खिलाफ याचिका में आरोप लगाया गया था कि नर्सिंग काउंसिल के अधिकारी रिश्वत लेकर अयोग्य कॉलेजों को मान्यता दे रहे हैं, जिससे नर्सिंग शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है, और मरीजों के जीवन को खतरा पैदा हो रहा है।
नर्सिंग कॉलेज मान्यता में फर्जीवाड़े का मामला
यह मामला एमपीएनआरसी द्वारा वर्ष 2021-22 के दौरान नर्सिंग कॉलेजों की मान्यता देने में अनियमितताओं से जुड़ा है। आरोप है कि एमपीएनआरसी के निरीक्षण दल ने भोपाल स्थित आरकेएस नर्सिंग कॉलेज सहित अन्य संस्थानों को मान्यता देने के लिए गलत रिपोर्ट तैयार की थी। इस रिपोर्ट के आधार पर आरकेएस नर्सिंग कॉलेज को मान्यता दी गई, जिसे बाद में रद्द कर दिया गया। आरोप यह भी है कि निरीक्षण प्रक्रिया में शामिल कुछ अधिकारियों ने जानबूझकर नियमों को नजरअंदाज किया और ऐसी संस्थाओं को मान्यता दी, जो शैक्षणिक और बुनियादी ढांचे के लिए जरूरी मानकों को पूरा नहीं करती थीं। जनहित याचिका के जरिये कोर्ट का ध्यान इस ओर आकर्षित किया गया। जिसके बाद अदालत ने इस मामले में सख्त आदेश पारित किया है।
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अनीता चांद और डॉ. जितेंद्र चंद्र की भूमिका पर सवाल
मामले में रजिस्ट्रार अनीता चांद और अध्यक्ष डॉ. जितेंद्र चंद्र शुक्ल की भूमिका को लेकर गंभीर आरोप लगे हैं। अनीता चांद उस निरीक्षण दल की सदस्य थीं, जिसने विवादित रिपोर्ट तैयार की थी और जरूरतें पूरी न होने के बाद भी कॉलेज को मान्यता दे दी थी। इसके बावजूद, उन्हें एमपीएनआरसी के रजिस्ट्रार जैसे महत्वपूर्ण पद पर नियुक्त किया गया। कोर्ट ने इस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि यदि वह पद पर रहती हैं तो जांच प्रक्रिया को प्रभावित कर सकती है।
डॉ. जितेंद्र चंद्र शुक्ल, जो उस समय एमपीएनआरसी के निदेशक के रूप में कार्यरत थे, भी मान्यता प्रक्रिया में हुई अनियमितताओं के लिए जिम्मेदार बताए जा रहे हैं। उन्हें अब एमपीएनआरसी के अध्यक्ष के पद पर नियुक्त किया गया है। अदालत ने इस पर भी आपत्ति जताई और विभाग की भूमिका पर भी सवाल उठाए।
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जनहित याचिका के बाद हुई सीबीआई जांच
नर्सिंग कॉलेजों की मान्यता प्रक्रिया में गड़बड़ी को लेकर हाईकोर्ट में जो जनहित याचिका दायर की गई थी। उसमें आरोप लगाया गया कि एमपीएनआरसी द्वारा शैक्षणिक संस्थानों को मान्यता देने में व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार और अनियमितताएं हुई हैं। अदालत ने इन आरोपों को गंभीर मानते हुए सीबीआई को मामले की जांच का आदेश दिया था। सीबीआई द्वारा अदालत में प्रस्तुत रिपोर्ट में यह पाया गया कि नर्सिंग कॉलेजों को मान्यता देने के लिए निर्धारित मानदंडों का पालन नहीं किया गया था। कई संस्थान जो बुनियादी शैक्षणिक और भौतिक आवश्यकताओं को पूरा नहीं करते थे, उन्हें भी मान्यता दी गई। इस मामले में यह साफ हुआ कि इस पूरी प्रक्रिया में अधिकारियों की मिलीभगत थी, जिन्होंने जानबूझकर नियमों की अनदेखी की।
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अदालत का सख्त रुख
अदालत ने कहा कि अनीता चांद और डॉ. जितेंद्र चंद्र शुक्ल को उनके पदों पर बनाए रखना अनुचित है। अदालत ने तर्क दिया कि इन व्यक्तियों के वर्तमान पदों पर बने रहने से न केवल जांच प्रभावित हो सकती है, बल्कि सबूतों से छेड़छाड़ की संभावना भी है। यह न्याय प्रक्रिया को बाधित करने का प्रयास होगा, जिसे अदालत कतई बर्दाश्त नहीं करेगी। कोर्ट ने लोक स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव को निर्देश दिया कि..
1. अनीता चंद को तुरंत रजिस्ट्रार के पद से हटाया जाए।
2. डॉ. जितेंद्र चंद्र शुक्ल को अध्यक्ष के पद से हटाया जाए।
3. उनकी जगह ऐसे अधिकारियों को नियुक्त किया जाए, जिनका सेवा रिकॉर्ड पूरी तरह से स्वच्छ और बेदाग हो।
अदालत ने मुख्य सचिव को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि इस आदेश का पूरी तरह से पालन हो और इसकी रिपोर्ट अगली सुनवाई में प्रस्तुत की जाए।
विभाग की कार्यप्रणाली से कोर्ट ने जताई नाराजगी
लोक स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा विभाग ने कोर्ट को बताया कि अनीता चांद के खिलाफ शिकायतों की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया है। हालांकि, अदालत ने इस समिति की संरचना और प्रक्रिया पर असंतोष व्यक्त किया। अदालत ने कहा कि ऐसे अधिकारी, जो पहले अनियमितताओं में शामिल थे, उन्हें जांच प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बनाया जा सकता। अब इस आदेश के बाद, अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 19 दिसंबर 2024 की तारीख तय की है। इस सुनवाई में मुख्य सचिव को अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी। अदालत ने स्पष्ट किया है कि जांच प्रक्रिया को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाना उसकी प्राथमिकता है।
मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण है फैसला
हाईकोर्ट का यह फैसला शिक्षा के क्षेत्र में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक कड़ा संदेश है। यह फैसला साबित करता है कि न्यायपालिका भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं करेगी और दोषी व्यक्तियों को बख्शा नहीं जाएगा। यह फैसला न केवल मध्य प्रदेश बल्कि पूरे देश के लिए एक मिसाल है।
रजिस्ट्रार और अध्यक्ष की जगह नियुक्त होंगे नए अधिकारी
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि मध्य प्रदेश नर्सिंग काउंसिल के चेयरमैन और रजिस्ट्रार ने अपने पदों का दुरुपयोग किया है और नर्सिंग कॉलेजों को मान्यता देने में भ्रष्टाचार किया है। कोर्ट ने कहा कि इन दोनों अधिकारियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत मौजूद हैं और इन्हें तुरंत हटाया जाना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि इन दोनों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किए जाने चाहिए। हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद अब नर्सिंग काउंसिल में नए अधिकारी नियुक्त किए जाएंगे। नए अधिकारी नर्सिंग कॉलेजों की जांच करेंगे और जो कॉलेज मानकों पर खरे नहीं उतरेंगे, उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। इसके साथ ही, हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को भी निर्देश दिया है कि वह नर्सिंग शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिए ठोस कदम उठाए।
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