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Photograph: (THESOOTR)
आरक्षण की लड़ाई: मध्य प्रदेश में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण दिलाने की लड़ाई अब नए मोड़ पर पहुंच गई है। राजधानी भोपाल में शनिवार को महाधिवक्ता प्रशांत सिंह की मौजूदगी में बुलाई गई बैठक में ओबीसी वर्ग के प्रतिनिधि, याचिकाकर्ता और अधिवक्ता एकजुट तो नजर आए, लेकिन 2019 से होल्ड किए गए 13 प्रतिशत पदों को लेकर मतभेद खुलकर सामने आ गया।
एक ओर अधिवक्ता और याचिकाकर्ता तुरंत इन पदों को अनहोल्ड करने की मांग पर अड़े रहे, तो दूसरी ओर ओबीसी महासभा ने सरकार की मंशा पर भरोसा जताते हुए सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई तक संयम बरतने की बात कही।
इस बैठक की सबसे बड़ी जानकारी है सामने आई है की बैठक में किसी को भी मोबाइल अलाउड नहीं किए गए थे और सबके मोबाइल लिफाफे में रखवा दिए गए थे। हालांकि, द सूत्र को मिली जानकारी के अनुसार अधिवक्ताओं ने अपने मोबाइल जमा नहीं किए थे।
महाधिवक्ता बोले- अब सामने है OBC आरक्षण विरोधी वर्ग
बैठक में सबसे बड़ा मुद्दा 13 प्रतिशत पदों का उठा, जो साल 2019 से लेकर अब तक भर्ती परीक्षाओं में होल्ड रखे गए हैं। अधिवक्ताओं का कहना था कि जब सुप्रीम कोर्ट साफ कर चुका है कि सरकार सीधे आरक्षण लागू कर सकती है, तब इन पदों को रोके रखना ओबीसी समाज के साथ अन्याय है।
हालांकि, महाधिवक्ता प्रशांत सिंह ने यह तर्क रखा कि यदि सरकार इन पदों को अनहोल्ड करती है तो दूसरे पक्ष के लोग अदालत चले जाएंगे और पूरा मामला फिर लटक सकता है। उन्होंने साफ कहा कि सरकार की मंशा ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने की है, लेकिन इसे कानूनी रूप से मजबूत करना जरूरी है।
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अधिवक्ता बोले – “अनहोल्ड किए बिना न्याय अधूरा”
बैठक में सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता वरुण ठाकुर और अन्य वकीलों ने कहा कि सरकार यदि सचमुच आरक्षण देने के लिए प्रतिबद्ध है तो उसे तत्काल 13 प्रतिशत पदों को ओबीसी वर्ग के लिए खोलना चाहिए।
उन्होंने तर्क दिया कि हाल ही में आए पीएससी के रिजल्ट में भी ये पद रोके गए हैं, जबकि सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि इस मामले में दोबारा उसके पास आने की जरूरत नहीं है। अधिवक्ताओं का कहना है कि जिसे अदालत जाना है, वह जाएगा, लेकिन सरकार को आरक्षण लागू करने में देरी नहीं करनी चाहिए।
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ओबीसी महासभा ने दिखाया अलग रुख
वहीं, ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय कोर कमेटी सदस्य लोकेंद्र गुर्जर और रामगोपाल लोधी जो इस मामले में याचिकाकर्ता भी हैं उनकी ओर से बैठक के बाद जारी प्रेस नोट में एक अलग तस्वीर सामने आई। महासभा ने कहा कि बैठक में आम सहमति बन चुकी है कि ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण दिया जाना चाहिए।
ओबीसी महासभा ने दावा किया कि मुख्यमंत्री और सरकार की ओर से यह संदेश भी बैठक में रखा गया कि सभी पद ओबीसी वर्ग से भरे जाने हैं और सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में सरकार और समाज एक साथ खड़ा होगा। महासभा ने यह भी कहा कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में सरकार के वकीलों के साथ अपने वकील नियुक्त करने के लिए भी नाम तय कर दिए हैं।
ओबीसी आरक्षण प्रकरण के संदर्भ में आयोजित बैठक में ओबीसी महासभा से अपनी ओर से दो अधिवक्ताओं के नाम सुझाने का अनुरोध किया गया था। इस पर महासभा ने देश के वरिष्ठ अधिवक्ता एवं भारत के पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल पी. विल्सन का नाम प्रस्तावित किया है। शीघ्र ही एक और वरिष्ठ अधिवक्ता का नाम भी ओबीसी महासभा द्वारा प्रदान किया जाएगा।
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दो फाड़ की स्थिति, आगे क्या?
अब दो अलग-अलग बयान सामने आने के बाद यहां साफ दिख रहा है कि एक ओर अधिवक्ता और याचिकाकर्ता 13 प्रतिशत पदों को तुरंत अनहोल्ड करने की मांग पर अड़े हैं, जबकि ओबीसी महासभा सरकार की रणनीति और सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई तक इंतजार करने को सही मान रही है।
यही कारण है कि सवाल उठ रहा है कि क्या ओबीसी वर्ग अब दो हिस्सों में बंट गया है? बैठक में महाधिवक्ता ने सभी अधिवक्ताओं से लिखित सुझाव मांगे हैं, ताकि मुख्यमंत्री के साथ चर्चा कर कोई ठोस फैसला लिया जा सके। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर एक और बैठक बुलाई जाएगी।
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सुप्रीम कोर्ट से ही तय होगा रास्ता
ओबीसी आरक्षण ( OBC RESERVATION ) को लेकर 22 सितम्बर से सुप्रीम कोर्ट में लगातार सुनवाई होगी। सरकार चाहती है कि सभी पक्ष एकजुट होकर अदालत में खड़े हों। लेकिन 13 प्रतिशत पदों के अनहोल्ड करने को लेकर उठे मतभेद ने यह साफ कर दिया है कि ओबीसी समाज के भीतर भी रणनीति को लेकर असहमति बनी हुई है। अब देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई से पहले सरकार इस मुद्दे पर क्या अंतिम कदम उठाती है।