/sootr/media/media_files/2025/09/13/obc-reservation-meeting-bhopal-2025-09-13-16-27-31.jpg)
मध्यप्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के मुद्दे पर चल रहा विवाद अब निर्णायक मोड़ पर पहुंचता दिख रहा है। सुप्रीम कोर्ट में 23 सितंबर से इस मामले की नियमित सुनवाई शुरू होने जा रही है। इसी को देखते हुए 13 सितंबर को भोपाल के पलाश होटल में अधिवक्ताओं की एक महत्वपूर्ण बैठक बुलाई गई।
इस बैठक में राज्य सरकार की ओर से अधिवक्ताओं से सहयोग और समर्थन बनाने की एक और कोशिश की जाएगी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में सरकार जो जवाब दाखिल करेगी। उसमें सभी अधिवक्ता एक साथ खड़े नजर आएंगे। बैठक इस समय जारी है और अंतिम निर्णय पर चर्चा अभी बाकी है।
ये भी पढ़ें...27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण पर सियासत, कांग्रेस नेताओं के बयान पर सीएम मोहन यादव का पलटवार
अधिवक्ताओं की सहमति बनाने की कोशिश
जानकारी के अनुसार यह मामला केवल कानूनी पक्ष की तय करने तक सीमित नहीं है बल्कि सामाजिक प्रतिनिधित्व से भी जुड़ा हुआ है। इस बैठक सुप्रीम कोर्ट में सरकार की ओर से दाखिल जवाब में एकजुटता बनाने की कोशिश की जाएगी। इस मामले में जो अधिवक्ता अभी असहमत हैं, उन्हें मनाने की कोशिश जारी है। इस बैठक में याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता भी मौजूद हैं, जिसमें बातचीत के जरिए सहयोग की कोशिश हो रही है।
पिछली बैठक और सुप्रीम कोर्ट में प्रतिनिधित्व का सवाल
गौरतलब है कि सीएम मोहन यादव ने इससे पहले सर्वदलीय बैठक बुलाई थी। इसके बाद महाधिवक्ता ने दिल्ली स्थित मध्य प्रदेश भवन में भी अधिवक्ताओं और संगठनों की बैठक बुलाई थी। उस बैठक में यह निर्णय हुआ था कि सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की पैरवी करने के लिए राज्य सरकार दो अधिवक्ताओं के नाम तय करेगी। आज की बैठक में यह उम्मीद की जा रही है कि ओबीसी वर्ग की ओर से अपनी आपत्तियों का निराकरण हो जाने के बाद इन दो अधिवक्ताओं के नाम भी तय कर दिए जाएंगे। फिलहाल इस बिंदु पर गहन चर्चा चल रही है।
राज्य सरकार से नीति स्पष्ट करने की मांग
पिछली बैठक में ओबीसी पक्ष के अधिवक्ता रामेश्वर ठाकुर ने राज्य सरकार से मांग की थी कि वह 27 प्रतिशत आरक्षण को लेकर अपनी नीति सार्वजनिक करे। उनका कहना है कि यह केवल अदालत की दलीलों का विषय नहीं बल्कि करोड़ों लोगों के अधिकार और भविष्य से जुड़ा सवाल है। अधिवक्ताओं का मानना है कि जब तक सरकार की मंशा स्पष्ट रूप से सामने नहीं आती, तब तक सामाजिक न्याय की दिशा में भरोसेमंद कदम नहीं उठाए जा सकते।
ये भी पढ़ें...SC में सुनवाई से पहले ही ओबीसी आरक्षण बना सियासत का अखाड़ा
ओबीसी प्रतिनिधित्व की मांग को लेकर पत्र
इसी बीच ओबीसी वर्ग की ओर से अपने प्रतिनिधित्व की मांग को लेकर मुख्यमंत्री को एक विस्तृत पत्र भी भेजा गया है। इस पत्र में AJJAKS (अखिल भारतीय अजा-जजा-अजाक्स संगठन) की ओर से साफ कहा गया है कि महाधिवक्ता कार्यालय समेत विभिन्न सरकारी दफ्तरों में एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग के लोगों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाए। पत्र में यह भी उल्लेख किया गया है कि जब तक इन वर्गों का समुचित प्रतिनिधित्व तय नहीं होता, तब तक सामाजिक न्याय की भावना अधूरी रहेगी।
अब सबकी निगाहें इस बैठक के नतीजों और 23 सितंबर से शुरू होने वाली सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पर टिकी हैं, जहां यह तय होगा कि MP में ओबीसी आरक्षण का भविष्य किस दिशा में जाएगा।